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महानगर में अपनायें पूजा परिक्रमा का स्मार्ट तरीका

कइयों के सामने उन पूजा पंडालों को पहचानने की दिक्कत के साथ-साथ यह भी समस्या होती है कि ऐसा कौन-सा तरीका अपनाया जाये जिससे एक ही जगह पर श्रेष्ठ पंडालों में पहुंचा जा सके.

आनंद कुमार सिंह, कोलकाताबंगाल के महापर्व दुर्गापूजा में जहां चारों ओर उल्लास का माहौल होता है और जनसमुद्र सड़कों पर उतर आता है, वहीं सबसे बड़ी समस्या उन पूजा पंडालों में पहचानने और पहुंचने की होती है जो पारंपरिक तौर पर अपनी बेहतरीन सज्जा और प्रतिमा के लिए जाने जाते हैं. कइयों के सामने उन पूजा पंडालों को पहचानने की दिक्कत के साथ-साथ यह भी समस्या होती है कि ऐसा कौन-सा तरीका अपनाया जाये जिससे एक ही जगह पर श्रेष्ठ पंडालों में पहुंचा जा सके.

उत्तर कोलकाता

उत्तर कोलकाता के पूजा पंडाल अपनी पारंपरिक प्रस्तुति के लिए जाने जाते हैं. लेकिन कालांतर में यहां भी थीम आधारित पूजा का चलन बढ़ा है.

बागबाजार सार्वजनिन : प्रख्यात बागबाजार सार्वजनिन दुर्गा पूजा 100 वर्ष से अधिक पुरानी है. 1920 के आसपास इसकी शुरूआत हुई थी. यह पूजा कमेटी हर बार एक जैसी प्रतिमा बनाती है जिसके आकार, रंग आदि में कोई फर्क नहीं होता. बावजूद इसके यहां दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है. मेट्रो या बस से श्यामबाजार पहुंचकर पैदल यहां जाया जा सकता है.

कुम्हारटोली पार्क सार्वजनिन : मूर्तिकारों के गढ़ कुम्हारटोली में ही देश-विदेश की अधिकांश दुर्गा प्रतिमाओं को बनाया जाता है. हाटखोला के कुम्हारटोली के पंडाल का दर्शन जरूर करें. यह अपनी अद्भुत प्रतिमा के लिए विख्यात है. शोभाबाजार मेट्रो के करीब ही यह पूजा है.

श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब: तृणमूल विधायक सुजीत बोस द्वारा आयोजित पूजा के तौर पर जाने-जानेवाली यह पूजा कोलकाता के सर्वाधिक चर्चित पूजा आयोजनों में से एक है. हर वर्ष यहां लाखों की तादाद में लोग जुटते हैं. उल्टाडांगा मेट्रो स्टेशन जाकर या सॉल्टलेक की बस में सवार होकर यहां पहुंचा जा सकता है.

शोभाबाजार राजबाड़ी : नाम के मुताबिक यह एक राजबाड़ी यानी जमींदार परिवार की पूजा है. पारंपरिक घरेलू पूजा का आनंद आप लेना चाहते हैं तो यहां जा सकते हैं. यह भी शोभाबाजार मेट्रो स्टेशन के करीब है.

हाथीबागान सार्वजनिन : शोेभाबाजार पहुंचने पर करीब ही एक और पंडाल का दर्शन आप कर सकते हैं. सर्वाधिक पुरानी दुर्गा पूजा में से एक है, अपने आसपास मेले जैसे वातावरण के लिए प्रसिद्ध यह पूजा अपने पंडाल और मेले के माहौल के लिए जानी जाती है.

काशी बोस लेन : हाथीबागान से हेदुआ की ओर जाते हुए स्कॉटिश चर्च स्कूल के विपरीत काशी बोस लेन की पूजा हर वर्ष लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है. यहां का पंडाल अपने अभिनव सज्जा और प्रस्तुति के लिए हर वर्ष नाम कमाता है.

दक्षिण कोलकाता

दक्षिण कोलकाता की पूजा अपनी थीम आधारित पूजा के लिए जानी जाती है. हाल के वर्षोें में यहां के पूजा आयोजनों की चकाचौंध लोगों को खूब भा रही है.

सुरुचि संघ : तृणमूल नेता अरुप विश्वास की पूजा के तौर पर प्रसिद्ध यहां की पूजा में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है. अद्भुत पंडाल सज्जा के लिए यह विख्यात है. 50 वर्ष के करीब पुरानी यह पूजा आमतौर पर हर वर्ष एक भारतीय राज्य को अपना थीम बनाती है. यह माझेरहाट और कालीघाट रेलवे स्टेशनों के करीब है.

चेतला अग्रणी : 1958 में शुरू इस पूजा आयोजन का नेतृत्व मेयर फिरहाद हकीम देते हैं. आमतौर पर यहां की पूजा लोगों को सामाजिक मुद्दों पर जागरूक करती है. इस वर्ष उन्होंने गंगा प्रदूषण को अपना थीम बनाया है.

देशप्रिय पार्क : कालीघाट के देशप्रिय पार्क की पूजा पिछले दशक में सर्वाधिक चर्चित पूजा रही. 2015 में उसने दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा बनायी थी. उनकी लोकप्रियता आसमान छूने लगी थी. तृणमूल के देवाशीष कुमार द्वारा आयोजित यह पूजा कोलकाता के लोकप्रिय पूजा आयोजनों में से एक है. यह भी कालीघाट मेट्रो स्टेशन के करीब है.

मैडोक्स स्क्वायर : 2017 में शुरू मैडोक्स स्क्वायर की पूजा की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. युवाओं में यह खासी लोकप्रिय है क्योंकि यहां अड्डा (दोस्तों के साथ बैठकर गपशप) खूब होता है. बंगाल की सांस्कृतिक विविधता का नजारा यहां किया जा सकता है.

एकडलिया एवरग्रीन : 1943 में शुरू हुई बालीगंज की एकडलिया एवरग्रीन की पूजा प्रतिमा के पारंपरिक रूप के लिए जानी जाती है. इसके अलावा इसका पंडाल भी हमेशा ही वाहवाही बटोरता है. 2012 में क्लब को वेलोर के गोल्डेन टेंपल की तर्ज पर पंडाल बनाने के लिए पुरस्कार भी मिला था. अपनी लाइटिंग के लिए भी यह जानी जाती है. हावड़ा या कहीं से भी गरियाहाट की बस लेकर यहां पहुंचा जा सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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