फर्जी प्रमाण पत्र पर पेंशन प्राप्त करने का आरोप

कलकत्ता हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर पेंशन प्राप्त करने के आरोपों पर सीबीआइ से जांच की प्रगति पर रिपोर्ट मांगी है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 15, 2025 2:14 AM

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच एजेंसी से 19 फरवरी तक जांच रिपोर्ट सौंपने का दिया निर्देश

संवाददाता, कोलकाता

कलकत्ता हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर पेंशन प्राप्त करने के आरोपों पर सीबीआइ से जांच की प्रगति पर रिपोर्ट मांगी है. हाइकोर्ट ने केंद्रीय जांच एजेंसी को 19 फरवरी तक अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया. साथ ही मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले पर रोक लगा दी है. मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कलकत्ता उच्च न्यायालय को बताया कि राज्य के पास 1947 में आजादी से पहले के स्वतंत्रता सेनानियों का कोई रिकॉर्ड नहीं है. रामलाल माइति पूर्व मेदिनीपुर के तमलुक के निवासी हैं. उनके बेटे शुकदेव माइति ने अपने पिता की पेंशन की मांग को लेकर कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. बेटे का दावा है कि उसके पिता रामलाल माइति स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके पिता तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासन की नजर से बचने के लिए 1943-1945 तक छिपे रहे, इसलिए उनके पिता स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली पेंशन के हकदार हैं. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके पास इस बात के सबूत हैं कि उसके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे. एक अन्य स्वतंत्रता सेनानी आरएन गिरि ने उनके पिता को यह प्रमाण पत्र दिया.

केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक चक्रवर्ती ने कहा कि यह सच है कि आरएन गिरि स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पेंशन भी मिलती थी. उन्होंने वर्ष 1942-1943 का जिक्र करते हुए कई लोगों को स्वतंत्रता सेनानी के प्रमाण पत्र प्रदान किये. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में मामले के दौरान पाया गया कि आरएन गिरि ने देश भर में करीब 3,200 लोगों को अवैध तरीके से प्रमाण पत्र जारी किये थे. सुप्रीम कोर्ट ने इस फर्जी प्रमाण पत्र मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिये थे.

इस संदर्भ में सरकारी वकील तपन मुखर्जी ने बताया कि गणना से पता चला है कि 1943-1944 में रामलाल माइति की उम्र सिर्फ 13 साल थी. इसके अलावा, राज्य के पास 1947 से पहले के स्वतंत्रता सेनानियों का कोई रिकॉर्ड नहीं है. रामलाल माइति के स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र ही एकमात्र दस्तावेज है, जो आरएन गिरि द्वारा जारी किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही आरएन गिरि द्वारा दिये गये प्रमाण पत्र की सीबीआइ जांच का आदेश दे दिया है. इसलिए राज्य सरकार रामलाल के प्रमाण पत्र की वैधता को लेकर संशय में है.

मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सीबीआइ जांच से यह साबित हो गया है कि आरएन गिरि द्वारा दिया गया प्रमाण पत्र फर्जी है. इसलिए इस मामले में रामलाल माइति के बेटे द्वारा दिया गया आवेदन कोई आधार नहीं रखता. इसके बाद ही मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने केंद्र सरकार को 19 फरवरी तक हलफनामे के जरिये रामलाल माइति के संबंध में अपनी स्थिति साफ करने और सीबीआइ को जांच की प्रगति पर रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया.

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