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दिवाली पर रोशनी से जगमग हुआ बंगाल, महानगर सहित राज्यभर में हर्षोल्लास से मना दीपोत्सव

रोशनी के त्योहार को मनाने के लिए लोगों ने अपने घरों को दीयों, मोमबत्तियों और बिजली के झालरों से सजाया.

कोलकाता. राज्य में दिवाली के अवसर पर दोहरा उत्सव का माहौल रहता है. क्योंकि यहां दीपावली के साथ-साथ कालीपूजा का भी आयोजन होता है, जो उत्सव के आनंद को दोगुना कर देता है. राज्य में गुरुवार को दिवाली और कालीपूजा हर्षोल्लास के साथ मनायी गयी. रोशनी के त्योहार को मनाने के लिए लोगों ने अपने घरों को दीयों, मोमबत्तियों और बिजली के झालरों से सजाया. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के आवास के करीब शहर के कालीघाट मंदिर में सुबह से ही काफी भीड़ देखी गयी. दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भी यही हाल रहा. यहां भी सुबह से ही भक्तों की लंबी कतार लगी रही. जैसे-जैसे दिन चढ़ा, भीड़ बढ़ती गयी. देवी मां का आशीर्वाद लेने के लिए राज्य के तारापीठ, कल्याणेश्वरी और कंकालिताला काली मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की लंबी कतारें थी. कोलकाता सहित पूरे राज्य में चकाचौंध और जीवंत रोशनी से सजा माहौल देखने को मिला. गुरुवार सुबह से ही मिठाई, दीये, सजावट और उत्सव के कपड़े खरीदने वाले खरीदारों से बाजार भरे हुए थे. काली पूजा के अवसर पर कोलकाता के कई स्ट्रीट को एलईडी लाइटों से सजाया गया है. उत्तर 24 परगना जिले के बारासात व नैहाटी में दर्शनार्थियों की काफी भीड़ उमड़ी. उल्लेखनीय है कि बारासात व नैहाटी में कालीपूजा का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है. काली पूजा हिंदुओं के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है, खासकर पश्चिम बंगाल में. यह उत्सव शक्ति या देवी काली की पूजा के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इसे श्यामा पूजा के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि देवी काली को अक्सर श्यामा के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ काला या गहरा होता है. यह त्योहार बिहार, ओडिशा, असम, त्रिपुरा और महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में भी मनाया जाता है. यह त्योहार आध्यात्मिक अंधकार पर प्रकाश की जीत, बुराई पर अच्छाई और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत का प्रतीक है. स्थानीय बाजारों में भी लोगों की भारी भीड़ दिखी. लोग मिठाई, दीये, रंगोली, नये कपड़े और उपहार आदि खरीदते हुए पाये गये. दिवाली के दौरान रसगुल्ला, संदेश और मिष्टी दोई जैसी लोकप्रिय बंगाली मिठाइयों की काफी मांग रहती है.

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