भातृप्रेम और त्याग के अनुपम उदाहरण हैं भरत : स्वामी गिरिशानंद

श्रीराम और लक्ष्मण का भातृ प्रेम जग विख्यात है, लेकिन रामायण में एक और चरित्र भी है, जो भाई का भाई के प्रति प्रेम, त्याग और आदर भावना का आदर्श उदाहरण हैं और वो हैं प्रभु श्रीराम के छोटे भाई राजा भरत.

By Prabhat Khabar News Desk | December 26, 2024 12:17 AM

कोलकाता. श्रीराम और लक्ष्मण का भातृ प्रेम जग विख्यात है, लेकिन रामायण में एक और चरित्र भी है, जो भाई का भाई के प्रति प्रेम, त्याग और आदर भावना का आदर्श उदाहरण हैं और वो हैं प्रभु श्रीराम के छोटे भाई राजा भरत. भरत का चरित्र समुद्र की भांति अगाध है, बुद्धि की सीमा से परे है. लोक-आदर्श का ऐसा अद्भुत सम्मिश्रण अन्यत्र मिलना कठिन है. भ्रातृ प्रेम की तो ये सजीव मूर्ति थे. भरत के समान शीलवान भाई इस संसार में मिलना दुर्लभ है. अयोध्या राज्य की तो बात ही क्या? ब्रह्मा, विष्णु और महेश का भी पद प्राप्त करके भरत की मदद नहीं हो सकती. उन्होंने बताया कि चित्रकूट में भगवान राम से मिलकर पहले भरत उनसे अयोध्या लौटने का आग्रह करते हैं, किंतु जब देखते हैं कि उनकी रूचि कुछ और है तो भगवान की चरण-पादुका लेकर अयोध्या लौट आते हैं और नंदीग्राम में तपस्वी जीवन बिताते हुए ये श्रीराम के आगमन की चौदह वर्ष तक प्रतीक्षा करते हैं. भगवान को भी इनकी दशा का अनुमान है. वे वनवास की अवधि समाप्त होते ही विलंब किये बिना अयोध्या पहुंचकर इनके विरह को शांत करते हैं. रामायण की कथा में माता शबरी को विशेष महत्व दिया गया है. वह भगवान राम की भक्त थी. उन्होंने सालों तक भगवान राम और माता सीता की प्रतीक्षा की थी. जब भगवान राम माता सीता की खोज करते समय वन के रास्ते में थे, तभी उनकी शबरी से भेंट हुई. उससे पहले माता शबरी रोज मार्ग में पुष्प बिछाकर और चख कर मीठे बेर भगवान राम के लिए चुनकर रखती थी. भगवान राम जब तालाब से पानी लेने के लिए आगे बढ़े तब ऋषियों ने उन्हें रोक दिया और कहा कि इस तालाब से एक अछूत स्त्री जल लेकर जाती है. सभी ऋषियों ने इस तालाब का त्याग कर दिया है. यह सुनकर राम ने ऋषियों से कहा कि कोई स्त्री अछूत नहीं हो सकती. यह सब कहकर भगवान राम ने शबरी की कुटिया का पता पूछा और शबरी के पास पहुंच गये. भगवान राम जैसे ही कुटिया तक पहुंचे शबरी उनके चरणों में आकर गिर गयी. वह भगवान राम और लक्ष्मण को अपनी कुटिया में ले गयी और उनकी आवभगत करने लगी, तब शबरी ने भगवान राम को जूठे बेर परोसे और रामजी बेर खाने लगे, तभी लक्ष्मण बोले कि यह जूठे बेर हैं. आप कैसे खा सकते हैं. इस पर श्रीराम ने कहा कि यह जूठे नहीं, मीठे बेर हैं. इनमें माता शबरी के प्रेम और स्नेह की मिठास है. अंत में शबरी ने भगवान राम का आशीर्वाद ग्रहण कर अपना शरीर त्याग दिया. ये बातें महाराजा अग्रसेन धाम द्वारा आयोजित श्रीराम कथा में स्वामी गिरिशानंद सरस्वती ने डिविनिटी पवेलियन लेकटाउन में कही. इस मौके पर दमकल मंत्री सुजीत बोस ने कहा कि बंगाल की धरती पर सभी धर्म और संस्कृतियों को सम्मान मिलता है. यहां सभी धर्मावलंबी शांतिपूर्वक अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं. आरती में विशेष अतिथि बतौर राज्य के दमकल मंत्री सुजीत बोस, दीनदयाल गुप्ता, सत्यनारायण देवरालिया, विष्णु फोगला, दिनेश अड़ूकिया, सतीश झुनझुनवाला, सुरेश अग्रवाल, गोवर्धन केडिया, मनमोहन सिंहानिया, बजरंग अग्रवाल, श्रवण-स्वाति सराफ, मनोहर अग्रवाल, मनोज बगड़िया. सुशील पोद्दार, संजय गोयनका, सुधीर सतनालीवाला, रतन बांगाणी, पवन खेमका, विनोद अग्रवाल आदि सम्मिलित हुए. आयोजन की सफलता हेतु संस्था के मंत्री निर्मल सराफ, मुरारीलाल दीवान, श्यामसुंदर अग्रवाल, अशोक चूड़ीवाला, अनिल केडिया, कैलाश कयाल, प्रमोद ड्रोलिया, लक्ष्मण अग्रवाल, मनोज बंका, तरूण सरिया, आदि सक्रिय थे. कार्यक्रम का संचालन प्रकाश चंडालिया ने किया.

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