13.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Buddhadeb Bhattacharjee Death: बेदाग छवि वाले उत्कृष्ट बंगाली ‘भद्रलोक’ थे बुद्धदेव भट्टाचार्य

Buddhadeb Bhattacharjee Death : 1977 में पहली बार कोसीपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए और 33 साल की उम्र में ज्योति बसु के नेतृत्व में वाम मोर्चा की पहली सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्री बने.

Buddhadeb Bhattacharjee Death : पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और कद्दावर मार्क्सवादी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य (Buddhadeb Bhattacharjee) को इतिहास में एक व्यावहारिक कम्युनिस्ट के रूप में जाना जाएगा, जिन्होंने अपने राज्य में औद्योगीकरण के लिए पूंजीवादियों को लुभाने के वास्ते अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता तक की परवाह नहीं की थी. बेदाग छवि वाले उत्कृष्ट बंगाली ‘भद्रलोक’ कहे जाने वाले भट्टाचार्य को 2011 में राज्य में 34 साल के वामपंथी शासन के पतन के लिए भी याद रखा जाएगा. उन्होंने एक ऐसे युग का अंत देखा, जिसमें उन्होंने सबसे लंबे समय तक लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार का नेतृत्व किया, लेकिन राजनीतिक रूप से अत्यधिक ध्रुवीकृत राज्य में वाम मोर्चे को लगातार आठवीं बार जीत दिलाने में असफल रहे.

बुद्धदेव भट्टाचार्य का 80 वर्ष की आयु में कोलकाता में हुआ निधन

भट्टाचार्य का 80 वर्ष की आयु में कोलकाता में उनके घर में गुरुवार को निधन हो गया. उनके परिवार में पत्नी और एक बेटी है.पश्चिम बंगाल के सातवें मुख्यमंत्री रहे भट्टाचार्य ने अपनी पार्टी की उद्योग विरोधी छवि मिटाने तथा बंगाल की मरणासन्न अर्थव्यवस्था में नयी जान फूंकने के उद्देश्य से औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए जी तोड़ मेहनत की. वह युवाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर पैदा करने के मुख्य लक्ष्य के साथ राज्य में उद्योग स्थापित करने के लिए निवेशकों और बड़े पूंजीवादियों को लुभाने में सक्रिय रूप से लगे रहे.

Also Read: Buddhadeb Bhattacharjee death LIVE : बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन, ममता बनर्जी पहुंची उनके घर

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने निडरता से ‘बंद’ की राजनीति की निंदा की

पार्टी के शक्तिशाली पोलित ब्यूरो के सदस्य होने के बावजूद, उन्होंने निडरता से ‘बंद’ की राजनीति की निंदा की, जिसे वाम दल विभिन्न मुद्दों पर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए बात-बात पर इस्तेमाल करते थे. पार्टी में और उसके बाहर इसके लिए उनकी आलोचना और प्रशंसा दोनों हुई. हालांकि, तेजी से औद्योगीकरण की महत्वाकांक्षा उनके और माकपा दोनों के लिए नासूर बन गई, क्योंकि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने भूमि अधिग्रहण विरोधी प्रदर्शनों का चतुराई से फायदा उठाया.

Also Read: Mamata Banerjee : ममता बनर्जी ने कहा, बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन से स्तब्ध और दुखी, सरकारी छुट्टी का किया ऐलान

1977 में पहली बार काशीपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए

भट्टाचार्य को सादगीपूर्ण जीवन जीने के लिए जाना जाता था क्योंकि वह मुख्यमंत्री रहने के दौरान और उसके बाद पाम एवेन्यू स्थित अपने दो कमरे के सरकारी फ्लैट में ही रहे. बांग्ला में प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक करने के बाद उन्होंने पूरी तरह से राजनीति में आने से पहले एक शिक्षक के रूप में काम किया और 1960 के दशक के मध्य में माकपा में शामिल हो गए. इस दौरान प्रमोद दासगुप्ता की नजर उन पर पड़ी, जिन्होंने बिमान बोस, अनिल विश्वास, सुभाष चक्रवर्ती और श्यामल चक्रवर्ती जैसे बंगाल के अन्य पार्टी नेताओं के साथ भट्टाचार्य को राजनीति का ककहरा सिखाया. वह 1977 में पहली बार काशीपुर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के लिए चुने गए और 33 साल की उम्र में ज्योति बसु के नेतृत्व में वाम मोर्चा की पहली सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्री बने.

संदेशखाली के विकास पर मंत्री सुजीत बोस ने की चर्चा

बुद्धदेव भट्टाचार्य 1987 में बंगाल के मंत्रिमंडल में लौटे

बुद्धदेव भट्टाचार्य ने बंगाली संस्कृति, रंगमंच, साहित्य और गुणवत्तापूर्ण फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए प्रशंसा अर्जित की और कोलकाता में फिल्म एवं सांस्कृतिक केंद्र ‘नंदन’ की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन 1982 में वह चुनाव हार गये. इसने उन्हें अपना निर्वाचन क्षेत्र बदलकर शहर के दक्षिणी हिस्से में जादवपुर से चुनाव लड़ना पड़ा और वह 1987 में राज्य मंत्रिमंडल में लौटे. हालांकि, एक नौकरशाह के साथ अपने अशिष्ट व्यवहार के लिए कथित तौर पर फटकार लगाए जाने के बाद उन्होंने 1993 में अचानक कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से दूरी बना ली और उन्होंने ‘दुष्शामाई’ (बैड टाइम्स) नामक नाटक लिखा.

वर्ष 2000 में ज्योति बसु के बाद बने बंगाल के मुख्यमंत्री

माकपा ने भट्टाचार्य को राज्य के गृह मंत्री के रूप में मंत्रिमंडल में फिर से शामिल किया. तीन साल के भीतर ही वह उपमुख्यमंत्री बने और आखिरकार नवंबर 2000 में मुख्यमंत्री के रूप में बसु का स्थान लिया. अगले वर्ष उन्होंने राज्य विधानसभा चुनावों में वाम मोर्चे को जीत दिलाई और कृषि प्रधान राज्य में तेजी से औद्योगीकरण के लिए महत्वाकांक्षी पहल शुरू की. उन्होंने निवेशकों को आकर्षिक करने के लिए अपनी विचारधारा तक की परवाह नहीं की और आए दिन बंद व हड़ताल का आह्वान करने वाले पार्टी के मजदूर संघ सीआईटीयू की सार्वजनिक रूप से निंदा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. लोगों को उनका यह कदम पसंद आया और उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी और वाम मोर्चा ने 2006 के विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की.

सिंगूर परियोजना का हुआ पुरजोर विरोध, खत्म हो गया वाम शासन

अपनी सरकार की विकासात्मक पहलों के कारण मीडिया ने उन्हें ‘ब्रांड बुद्ध’ की ख्याति दे डाली. उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि टाटा मोटर्स को सिंगूर में एक कार संयंत्र स्थापित करने के लिए आकर्षित करना था. हालांकि, इस परियोजना को किसानों का कड़ा विरोध झेलना पड़ा, जो कि वाम दलों का प्रमुख वोट बैंक था. अंतत: यह मार्क्सवादी सरकार के पतन का कारण बना. उनकी सरकार को नंदीग्राम में आंदोलन का खमियाजा भी भुगतना पड़ा. ममता बनर्जी के आंदोलन के कारण वाम मोर्चा का वोट बैंक बिखर गया और अगले चुनाव में उसकी सरकार गिर गई.

Mamata Banerjee : ममता बनर्जी देंगी जंगलमहल के सभी जिलों को नई परियोजनाओं की सौगात

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें