राज्य के सभी अस्पतालों में रोगी कल्याण समितियां भंग
सीएम ने जूनियर डॉक्टरों के धरनास्थल पर की घोषणा
सीएम ने जूनियर डॉक्टरों के धरनास्थल पर की घोषणा
कोलकाता. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को जूनियर डॉक्टरों के मंच से घोषणा की कि राज्य के सभी अस्पतालों के लिए गठित रोगी कल्याण समिति को भंग कर दिया गया है. आरजी कर कांड के बाद से ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. इस दबाव के कारण शनिवार को जूनियर डॉक्टरों के धरना स्थल पर पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उक्त घोषणा की. उन्होंने बताया कि आरजी कर मेडिकल कॉलेज सहित राज्य के सभी सरकारी अस्पतालों की रोगी कल्याण समितियों को भंग कर दिया गया है. जूनियर डॉक्टर गत मंगलवार से पांच सूत्री मांगों पर स्वास्थ्य भवन के सामने धरना पर बैठे हुए हैं. इससे पहले, गुरुवार को मुख्यमंत्री के साथ जूनियर डॉक्टरों की बैठक होनी थी, जो नहीं हो सकी. इसके बाद शनिवार को ममता खुद जूनियर डॉक्टरों के धरना स्थल पर पहुंच गयीं. यहां उन्होंने जूनियर डॉक्टरों को बताया कि आरजी कर समेत राज्य के सभी मेडिकल कॉलेजों की रोगी कल्याण समिति भंग कर दी गयी है. ज्ञात हो कि इससे पहले, ममता ने नौ सितंबर को नबान्न में हुई प्रशासनिक बैठक में इस रोगी कल्याण समिति के बारे में कुछ सुझाव दी थीं.
विदित हो कि आरजी कर में महिला जूनियर डॉक्टर से दुष्कर्म व हत्या की घटना के बाद 9 अगस्त जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल जारी है. पीड़िता को न्याय दिलाने के अलावा सरकारी अस्पताल में सुरक्षा की भी मांग पर डॉक्टरों की हड़ताल जारी है.
अब अस्पताल के प्रिंसिपल ही होंगे रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष
धरना स्थल पर सीएम ने शनिवार को बताया कि अब प्रत्येक मेडिकल कॉलेजों के मामले में संबंधित अस्पताल के प्रिंसिपल को रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष बनाया जायेगा. इससे पहले, स्थानीय विधायक, सांसद या पार्षद अस्पताल की रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष का पदभार संभालते थे. धरना स्थल पर सीएम ने बताया कि रोगी कल्याण समिति में प्रिंसिपल के साथ एक सीनियर डॉक्टर, एक जूनियर डॉक्टर, एक सिस्टर, स्थानीय विधायक और स्थानीय पुलिस स्टेशन के आइसी को रखा जायेगा. बता दें कि, श्रीरामपुर के तृणमूल विधायक डॉ सुदीप्त राय आरजी कर मेडिकल कॉलेज की रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष थे.
क्या है प्रक्रिया
अस्पतालों के ट्रस्टी प्रबंधन के लिए रोगी कल्याण समिति का गठन किया जाता है, जिसमें स्थानीय पंचायत के सदस्य, स्थानीय निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ स्थानीय सरकारी अधिकारी, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों, स्वैच्छिक संगठनों के सदस्य, प्रतिष्ठित लोगों को चेयरमैन बनाया जाता है. समिति में आइएमए के सदस्य भी रहते हैं. समिति यह तय करती है कि अस्पताल के उचित प्रबंधन के लिए धनराशि कहां और कैसे खर्च की जायेगी. अब आंदोलनकारियों का दावा है कि सरकारी अस्पतालों के बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए कदम नहीं उठाये जा रहे हैं. रुपये हड़पने के भी आरोप लगाये गये हैं. इसके बाद शनिवार को मुख्यमंत्री ने इस समिति को भंग करने की घोषणा कर दी.
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