राज्य के जूट उद्योग पर फिर मंडराया संकट

चीनी मिलों की याचिका और कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले का पड़ रहा प्रभाव

By Prabhat Khabar News Desk | September 6, 2024 10:40 PM

चीनी मिलों की याचिका और कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले का पड़ रहा प्रभाव

कोलकाता. राज्य के जूट उद्योग पर फिर संकट मंडरा गया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने साउथ इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (एसआइएसएमए) की याचिका पर अंतरिम स्थगन आदेश जारी किया, जिसने चीनी उत्पादन के 20 प्रतिशत को जूट की बोरियों में पैक करने के सरकार के निर्देश को अस्थायी रूप से रोक दिया.

यह फैसला जूट पैकेजिंग सामग्री (अनिवार्य उपयोग) अधिनियम, 1987 के तहत दिये गये निर्देशों पर आधारित था. इस निर्णय ने जूट उद्योग में गहरा संकट पैदा कर दिया है, जहां पहले से ही मांग में गिरावट और उत्पादन कटौती के चलते लाखों किसानों और श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हो रही है.

चीनी उद्योग की आपत्तियां : चीनी मिलों का दावा है कि जूट की बोरियां नमी को अवशोषित करती हैं, जिससे चीनी की गुणवत्ता प्रभावित होती है. उन्होंने जूट बोरियों में इस्तेमाल होनेवाले जूट बैचिंग ऑयल के कैंसरजन्य (ट्यूमर जनक) होने की बात कही. मिलों ने जूट बोरियों पर आवश्यक जानकारी छापने में कठिनाइयों का हवाला दिया. अंतरराष्ट्रीय मानक यह है कि चीनी निर्यात के लिए जूट बोरियों को उपयुक्त नहीं माना जाता.

जूट मिलों का पक्ष : वहीं, इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आइजेएमए) ने इन मुद्दों का जवाब दिया, लेकिन अदालत में उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला. उनका तर्क था कि जूट बोरियां मानक के अनुसार नमी को नियंत्रित करती हैं. बैचिंग ऑयल का उपयोग निर्धारित मानकों के तहत सुरक्षित है. आधुनिक प्रिंटिंग तकनीक और बैक-अप उपाय जूट बोरियों पर आवश्यक जानकारी को आसानी से प्रिंट करने में सक्षम हैं.

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