कोलकाता.
वक्फ बोर्ड कानून के विरोध में अल्पसंख्यक अधिवक्ताओं ने कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में ”लैंड जिहाद” और ”वक्फ टेरर” जैसे शब्दों की कड़ी आलोचना की, उन्हें निराधार और स्थापित कानूनी सिद्धांतों के विपरीत बताया. वक्फ फोरम के अधिवक्ता खुर्शीद आलम ने कहा कि वक्फ पर वर्तमान मीडिया नैरेटिव कानूनी निर्णयों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि एकतरफा दावों पर आधारित हैं. यह समझना महत्वपूर्ण है कि वक्फ बोर्डों, किसानों या व्यक्तियों द्वारा किये गये दावों का न्यायिक अधिकारियों जैसे वक्फ ट्रिब्यूनल, उच्च न्यायालयों या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा फैसला किया जाता है. उन्होंने चेन्नू राधा कृष्ण बनाम तेलंगाना वक्फ बोर्ड (2024) सहित प्रमुख निर्णयों का हवाला दिया, जहां तेलंगाना उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चेन्नू राधा कृष्ण द्वारा अतिक्रमित 300 एकड़ भूमि कानूनी तौर पर वक्फ बोर्ड की थी. उनका कहना था कि कमीशन की रिपोर्ट व्यापक अतिक्रमण की ओर इशारा करती है.अधिवक्ता एताउल मुस्तफा ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का हवाला दिया, जो पृष्ठ 243 और परिशिष्ट 11.1 में देश भर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ), सरकारी संस्थानों और निजी संगठनों जैसे संस्थाओं द्वारा अतिक्रमित 600 से अधिक वक्फ संपत्तियों की सूची देती है. उन्होंने भाजपा सरकार की 2019 की अनुवर्ती कार्रवाई रिपोर्ट की ओर भी इशारा किया, जिसमें सच्चर समिति की सिफारिशों के आधार पर 267 संपत्तियों पर अतिक्रमण को संबोधित करने के लिए एएसआइ के प्रयासों का उल्लेख है. तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू के लोकसभा के जवाब से और पुष्टि मिली, जिन्होंने खुलासा किया कि 58,929 वक्फ संपत्तियां अतिक्रमण के अधीन थीं, और वक्फ बोर्ड उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया बयान कि बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा हमें दिये गये संविधान में वक्फ कानून के लिए कोई जगह नहीं है. इसे कोलकाता उच्च न्यायालय में अभ्यास करने वाले अधिवक्ता मोहम्मद आमिर जकी ने दावे को चुनौती दी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है