कोलकाता. राज्य में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम का खतरा बढ़ा रहा है, एक छात्र की भी मौत हो चुकी है. ऐसे में राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से राज्य को लोगों को सचेत रहने की अपील की गयी है. स्थिति को ध्यान में रखते हुए राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से स्वास्थ्य सचिव नारायण स्वरूप निगम ने एक बयान जारी किया है. उन्होंने कहा कि चिकित्सकों ने उन्हें आश्वस्त किया कि इसमें अनावश्यक रूप से चिंतित होनेवाली कोई बात नहीं है. यह कोई नयी बीमारी नहीं है और यह छुआछूत से फैलने वाली बीमारी भी नहीं है. उन्होंने राज्य वासियों से सचेत रहने की अपील की है. गुइलेन-बैरे सिंड्रोम किसी भी मौसम में किसी भी उम्र के लोगों को हो सकती है. यह रोग सर्वप्रथम महाराष्ट्र में सामने आया. गुइलेन-बैरे सिंड्रोम सिंड्रोम जैसी दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी है. यदि गुइलेन-बैरे सिंड्रोम से पीड़ित लोगों का तुरंत इलाज न किया जाये तो उन्हें लकवाग्रस्त होने का खतरा रहता है. मंगलवार को स्वास्थ्य सचिव नारायणस्वरूप निगम ने बताया कि यह बीमारी एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस या एएफपी के कारण होती है. इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में देखे जाते हैं. हालांकि, राज्य सरकार की पोलियो टीम लगातार इस मामले पर नजर रख रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि दिसंबर के अंत से राज्य में एएफपी या जीबीएस (गुइलेन-बैरे सिंड्रोम) के मामलों की कोई रिपोर्ट नहीं आयी है.
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