Durga Puja 2024 : बंगाल में सिंदूर खेला का है खास महत्व, 450 साल पहले शुरु हुई थी परंपरा
Durga Puja 2024 : दशमी को सिंदूर खेला यानी कि मां को सिंदूर अर्पित कर विदा किया जाता है. आखिरी दिन बंगाली समुदाय के लोग धुनुची नृत्य कर मां को प्रसन्न करते हैं.
Durga Puja 2024 : दुर्गा पूजा हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध व महत्वपूर्ण त्योहार है, जो शक्ति की आराधना का पर्व है. यह पर्व हिंदू देवी दुर्गा की बुराई के प्रतीक राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है. यह पर्व दुनियाभर में दुर्गा उत्सव के नाम से विख्यात है. नौ दिनों तक मां दुर्गा की आराधना की जाती है. वैसे तो देश भर में इसकी धूम रहती है लेकिन दुर्गा पूजा में पश्चिम बंगाल का नजारा ही कुछ अलग होता है. सिटी ऑफ जॉय के नाम से मशहूर कोलकाता की दुर्गापूजा देश ही नहीं विदेशों तक मशहूर है.
बंगाल में दशकों से चली आ रही परंपरा
यहां की दुर्गा पूजा काफी भव्य होती है. बड़े-बड़े पंडाल सजाये जाते हैं. यहां की दुर्गा पूजा देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. सबसे खास बात यह है कि बंगाल में दुर्गा पूजा में सिंदूर खेला मनाया जाता है, जिसका विशेष महत्व है. इस परंपरा की जानकारी बहुत कम लोगों को ही है कि आखिर यह सिंदूर खेला क्या है, क्यों होता है और इस परंपरा की शुरुआत कब से हुई .
सिंदूर खेला मनाया जाता है धूमधाम से
दुर्गा पूजा के दौरान दशमी पर सिंदूर खेला होता है. कोलकाता समेत बंगाल के समस्त जिलों में मां दुर्गा की धूमधाम से विदाई की जाती है और उसी दिन सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है. उसके बाद ही मां दुर्गा की विदाई की जाती है. इस दौरान कई और रस्में भी निभाई जाती है. विवाहित महिलाओं के लिए सिंदूर खेला परंपरा का विशेष महत्व रखता है.
क्या है सिंदूर खेला
बंगाल में सिंदूर खेला बहुत ही मशहूर है. खासतौर से बंगाली समाज में इसका बहुत महत्व है, जो पंरपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा साल में एक बार अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ अपने मायके आती हैं और इनके साथ मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी पधारती है. वह अपने मायके में 10 दिन रुकती हैं, जिसे दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है. फिर दशमी को सिंदूर खेला यानी कि मां को सिंदूर अर्पित कर विदा किया जाता है. इस दिन महिलाएं सज-धज कर मां दुर्गा को विदाई देती है. नवरात्रि के आखिरी दिन बंगाली समुदाय के लोग धुनुची नृत्य कर मां को प्रसन्न करते हैं.
सिंदूर खेला का है विशेष महत्व
जिस दिन मां दुर्गा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उनकी विदाई होती है, उसी दिन बंगाल में सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव मनाया जाता है. मां दुर्गा की मांग सिंदूर से भर कर उनकी विदाई की जाती है. कई महिलाएं चेहरे पर भी सिंदूर लगाती हैं. यह मां दुर्गा की विदाई उत्सव होता है यह सिंदूर खेला की प्रथा आज की नहीं बल्कि सदियों पुरानी है. सिंदूर खेला कि रस्म पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में पहली बार शुरू हुई थी. लगभग 450 साल पहले यहां की महिलाओं ने मां दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा के बाद उनके विसर्जन से पूर्व उनका श्रृंगार किया और मीठे व्यंजनों का भोग लगाया. खुद भी सोलह श्रृंगार किया. इसके बाद मां को लगाये सिंदूर से अपनी और दूसरी विवाहित महिलाओं की मांग भरी. ऐसी मान्यता है कि भगवान इससे प्रसन्न होकर उन्हें सौभाग्य का वरदना देंगे और उनके लिए स्वर्ग का मार्ग बनायेंगे. पौराणिक कथा के अनुसार, सिंदूर खेला उत्सव की शुरुआत 450 वर्ष पहले हुई थी, जिसके पश्चात पश्चिम बंगाल में दुर्गा विसर्जन के दिन सिंदूर खेला का उत्सव मनाने की शुरुआत हुई.
कैसे होता सिंदूर खेला
मां दुर्गा को पान के पत्ते से सुहागिनें सिंदूर लगाती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इसके बाद महिलाएं एक दूसरे को सिंदूर लगाकर धूम-धाम से ये परंपरा निभाती है. रस्म के अनुसार मां की मांग में सिंदूर लगाकर और उन्हें मिठाई खिलाकर मायके से विदा किया जाता है. सुखद दांपत्य जीवन की कामना के साथ ये अनुष्ठान किया जाता है. मां दुर्गा विसर्जन के दिन महिलाएं एक-दूसरे के साथ मां दुर्गा के लगाए सिंदूर से सिंदूर खेला खेलती हैं. सिंदूर विवाहित महिलाओं की निशानी है और इस अनुष्ठान के जरिए महिलाएं एक दूसरे के लिए सुखद और सौभाग्य से भरे वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं.
देवी पूजा और भोग अनुष्ठान
विसर्जन के दिन अनुष्ठान की शुरुआत महाआरती से होती है. देवी मां को शीतला भोग अर्पित किया जाता है, जिसमें कोचुर शाक, पंता भात और इलिश माछ को शामिल किया जाता है. पूजा के बाद प्रसाद बांटा जाता है. पूजा में एक दर्पण को देवी के ठीक सामने रखा जाता है और भक्त देवी दुर्गा के चरणों की एक झलक पाने के लिए दर्पण में देखते हैं. मान्यता है कि जिसे दपर्ण में मां दुर्गा के चरण दिख जाते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
Also Read : Durga Maa: मां दुर्गा की सवारी: शेर का महत्व और पौराणिक कथा