कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम 1956 के तहत फंसे एक ग्राहक के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया है. अदालत ने निर्धारित किया कि ग्राहक के रूप में व्यक्ति की भूमिका अधिनियम के तहत अभियोजन के मानदंडों को पूरा नहीं करती है, क्योंकि कथित वेश्यालय के प्रबंधन या संचालन में शामिल होने का कोई सबूत नहीं था. न्यायमूर्ति अजय कुमार मुखर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि केवल ग्राहकों तक आपराधिक दायित्व बढ़ाने से अधिनियम का उद्देश्य विकृत हो जायेगा और न्यायिक निष्पक्षता कम हो जायेगी. क्या है मामला: कोलकाता शहर के भवानीपुर में स्थित एक ‘पारिवारिक सैलून और स्पा’ के नाम पर देह व्यापार का धंधा किया जा रहा है, जहां पुलिस ने आठ दिसंबर 2019 को छापेमारी कर एक ग्राहक को गिरफ्तार किया था. छापेमारी के दौरान, आरोपी ग्राहक कथित तौर पर एक महिला के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पाया गया था. इसके बाद पुलिस ने उसके खिलाफ अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिसमें धारा तीन, चार, पांच और सात शामिल हैं. इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश अजय कुमार मुखर्जी ने कहा कि प्रबंधन या खरीद में संलिप्तता के साक्ष्य के बिना किसी ग्राहक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करना, न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का जोखिम है. न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि इस तरह की कार्यवाही अनैतिक तस्करी (रोकथाम) अधिनियम के दायरे को उसके इच्छित उद्देश्य से परे अनुचित रूप से विस्तारित करेगी. यह कहते हुए न्यायाधीश ने आरोपी पर लगाये गये अनैतिक तस्करी के आरोपों को खारिज कर दिया.
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