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पर्यावरण के अनुकूल हुआ कई दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन

इस प्रक्रिया में विसर्जन से पहले की सभी रस्मों का पालन किया गया. पर्यावरणविदों ने भी विसर्जन के इस अनूठे तरीके की प्रशंसा की.

कोलकाता. जलाशयों को प्रदूषण से बचाने के लिए कोलकाता और उसके आसपास कई स्थानों पर देवी दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियों को नदियों और तालाबों में प्रवाहित करने के बजाय पंडाल के अंदर ही पर्यावरण अनुकूल विसर्जन की प्रक्रिया पूरी की गयी. इस प्रक्रिया में विसर्जन से पहले की सभी रस्मों का पालन किया गया. पर्यावरणविदों ने भी विसर्जन के इस अनूठे तरीके की प्रशंसा की. उत्तर कोलकाता के पूजा आयोजक ताला प्रत्तय के एक प्रवक्ता ने कहा कि अतीत में हुगली नदी तक गाजे-बाजे के साथ भव्य विसर्जन जुलूस निकालने की प्रथा को त्यागते हुए हमने इस पर्यावरण-अनुकूल विसर्जन का विकल्प चुना. उन्होंने कहा कि यद्यपि, मूर्ति को तुरंत क्रेन द्वारा पानी से बाहर निकाल लिया जाता है, लेकिन मूर्तियों को बनाने में इस्तेमाल किये गये रसायनों से नदी का पानी दूषित होने का खतरा होता है. पाटुली में केंदुआ शांति संघ पूजा के आयोजकों ने भी ‘फायर ब्रिगेड’ के माध्यम से पानी का छिड़काव कर अपनी मूर्ति के ‘विसर्जन’ की व्यवस्था की. पूजा समिति के प्रमुख आयोजक बप्पादित्या दासगुप्ता ने कहा कि हमने सभी रिवाजों का पालन किया. लेकिन पर्यावरण एवं जल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए हमने पंडाल के अंदर ही विसर्जन करने का तरीका अपनाया. उन्होंने कहा कि मूर्ति को पंडाल के अंदर ही ‘विसर्जन’ किया गया.

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