Buddhadeb Bhattacharjee : माकपा के दिग्गज नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य को नम आंखों से दी गयी अंतिम विदाई, उमड़ा जनशैलाब
Buddhadeb Bhattacharjee : भट्टाचार्य का पार्थिव शरीर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के लाल झंडे में लिपटा हुआ और लाल गुलाबों से ढका हुआ था.
Buddhadeb Bhattacharjee : पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य (Buddhadeb Bhattacharjee) का देह श्रद्धा व सम्मान के साथ चिकित्सा जगत के शोध कार्य के लिए नील रतन सरकार अस्पताल को दान कर दिया गया. नम आंखों से हजारों की संख्या में माकपा कार्यकर्ता व बुद्धदेव को चाहने वालों ने लाल झंड़े के साथ उनको क्रांतिकारी सलाम देते हुे विदाई दिया. इस दौरान राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जगत की तमाम हस्तियां मौजूद थी. राजनीति के मैदान में ईमानदार व बेदाग छवि के खिलाड़ी बुद्धदेव भट्टाचार्य को याद करने वाले लोगों की कमी नहीं हैं. उनको अंतिम विदाई देते समय लोग उनके व्यक्तित्व व कार्यों की चर्चा करते रहे. वाममोर्चा सरकार के 34 सालों के शासन की समाप्ति भी उन्ही के कार्यकाल में हुई. लेकिन कभी भी उनको अपने विरोधियों के प्रति अपशब्द या बदले की कार्रवाई करते हुए कोई नहीं देखा.
लाल झंडे में लिपटा हुआ था भट्टाचार्य का पार्थिव शरीर
भट्टाचार्य का पार्थिव शरीर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के लाल झंडे में लिपटा हुआ और लाल गुलाबों से ढका हुआ था. इस दौरान उनकी पत्नी मीरा भट्टाचार्य और पुत्र सुचेतन मौजूद थे. भट्टाचार्य का पार्थिव शरीर शवगृह से जब विधानसभा लाया गया तो उनके समर्थक गमगीन नजर आए. तृणमूल कांग्रेस के सांसद अभिषेक बनर्जी, कोलकाता के महापौर फिरहाद हकीम, ऊर्जा मंत्री अरूप बिस्वास और कृषि मंत्री शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने माकपा के दिग्ग्ज नेता को पुष्पांजलि अर्पित की.
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राजनीति में शालिनता के विलोप से दुखी थे बुध्ददेव भट्टाचार्य
देश की राजनीति में उनकी पहचान बेदाग भद्रलोक की रही, जो अंत समय तक बरकरार रही. राजनीति के काली कोठरी में उन पर आज तक कोई दाग नहीं लगा. इसके लिए पार्टी के अंदर भी उनको कई बार समालोचना का शिकार होना पड़ा. पुराने दिनों को याद करते हुए उनके करीबी साल 2013 में एक संवाद संस्था को दिए गये उनके साक्षात्कार को याद करते हैं. जिसमें उन्होने राजनीति के मैदान में प्रयोग किये जाने वाले अपशब्दों पर अपना पक्ष रखा था. उस दौर में माकपा के साथ तृणमूल कांग्रेस का विरोध अपने चरम पर था. दोनों ही दलों के नेता एक दूसरे पर अप शब्दों का प्रयोग करने से परहेज नहीं करते थे. उस वक्त बुद्धदेव ने राजनीति में शालिनता को बरकरार रखने के पक्ष में अपनी राय दिया. वह राजनीति को भद्र समाज का प्रतिबिंब मानते थे. उनके मुताबिक रानेताओं के आचरण व भाषा शैली का प्रभाव आम लोगों पर ज्यादा होता है.
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