संवाददाता, कोलकाता
ममता बनर्जी के सपनों का मेट्रो रेलवे आज खतरे में है. तत्कालीन सत्तारूढ़ दल से लड़कर ममता बनर्जी ने मेट्रो रेलवे को यहां तक पहुंचाया है. उनके प्रयासों से ही कोलकाता मेट्रो रेलवे को भारतीय रेलवे के 17वें जोन के रूप में मान्यता मिली. 29 दिसंबर 2010 को उन्होंने मेट्रो रेलवे की बिल्डिंग में इसकी घोषणा करते हुए अधिसूचना जारी की थी.
ये बातें मेट्रो रेलवे प्रगतिशील श्रमिक कर्मचारी यूनियन (एमआरपीएसकेयू) के अध्यक्ष मदन मित्रा ने कहीं. वह यूनियन द्वारा मेट्रो भवन परिसर में आयोजित एक जनसभा में बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि कोलकाता मेट्रो रेलवे भारत सरकार के रेल मंत्रालय के अधीन एकमात्र मेट्रो रेल है. अब इसका निजीकरण करने का षडयंत्र चल रहा है. लेकिन एमआरपीएसकेयू किसी भी सूरत में ऐसा नहीं होने देगी. मित्रा ने मेट्रो कर्मियों से आग्रह किया कि वे चार और पांच दिसंबर को मेट्रो रेलवे में मान्यता के लिए होने वाले चुनाव में एमआरपीएसकेयू को विजयी बनायें.
यूनियन के उपाध्यक्ष शुभाशीष सेनगुप्ता ने कहा कि 2013 में अंतिम बार चुनाव हुआ था. 11 वर्षों बाद फिर चुनाव हो रहा है. हमारी यूनियन ने मेट्रो रेलवे और मेट्रो कर्मियों के हितों को ध्यान में रखते हुए 20 सूत्री मांगें रखी हैं. इसमें मुख्य रूप से कोलकाता मेट्रो को जोन की मान्यता बनाये रखने के साथ मेट्रो की किसी भी लाइन या भाग का निजीकरण नहीं होने देना शामिल है. हमें ऐसी सूचना मिली है कि ईस्ट-वेस्ट मेट्रो को निजी हाथों में देने की बात चल रही है, जिसका हम पुरजोर विरोध करे रहे हैं.
यूनियन के महासचिव समीर बेरा ने मात्र 3322 कर्मचारियों को लेकर कोलकाता मेट्रो रेल का कामकाज चल रहा है. रनिंग स्टॉफ के सैकड़ों पद खाली पड़े हैं. हमारी मांग है कि जल्द ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू किया जाये. मौके पर कार्यकारी अध्यक्ष कार्तिक बनर्जी, ज्वाइंट सेक्रेटरी शंभुनाथ दे आदि मौजूद थे.
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