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ओबीसी सूची विवाद: सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई का किया अनुरोध

पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाइकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपनी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई का मंगलवार को अनुरोध किया.

कोलकाता/नयी दिल्ली. पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाइकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपनी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई का मंगलवार को अनुरोध किया, जिसमें कई जातियों, खासकर मुस्लिम समूहों को सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण देने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का दर्जा देने से इनकार कर दिया गया था.तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की पीठ से कहा कि अन्य याचिकाओं के साथ इस याचिका पर भी सुनवाई की जरूरत है, क्योंकि ओबीसी प्रमाण पत्र जारी करने जैसे मुद्दे रुके हुए हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि अधिकारी मेडिकल कॉलेज सहित अन्य संस्थानों में प्रवेश के लिए आरक्षण का लाभ लेने के इच्छुक लोगों को जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं कर पा रहे हैं.

उन्होंने कहा कि हालांकि ये मामले आज के लिए सूचीबद्ध है लेकिन उन पर सुनवाई हो पाने की संभावना कम है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि पीठ आज की सूची में इन मामलों से पहले निर्धारित मुकदमों की सुनवाई के तुरंत बाद इन पर विचार करेगी. इससे पहले 13 सितंबर को भी इस मामले का तत्काल सुनवाई के लिए उल्लेख किया गया था. न्यायालय ने कहा था कि वह कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका पर सुनवाई की तारीख पहले करने पर विचार करेगा .

शीर्ष अदालत ने इससे पहले पांच अगस्त को राज्य सरकार से ओबीसी सूची में शामिल की गयी नयी जातियों के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व पर आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा था.

उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर वादियों को नोटिस जारी करते हुए पीठ ने प्राधिकारियों से हलफनामा दाखिल कर जातियों, खासकर मुस्लिम समूहों को ओबीसी सूची में शामिल करने से पहले उसके और राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा किये गये परामर्श (यदि कोई हो) का ब्यौरा देने को कहा था.

उच्च न्यायालय ने 22 मई को पश्चिम बंगाल में कई जातियों को 2010 से दिया गया ओबीसी का दर्जा रद्द कर दिया था और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों तथा सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में उनके लिए आरक्षण को अवैध करार दिया था.

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