कोलकाता/नयी दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने धनशोधन मामलों में दोषसिद्धि की कम दर पर सवाल उठाते हुए बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (इडी) से पूछा कि शिक्षकों एवं गैर-शिक्षण कर्मियों की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं को लेकर गिरफ्तार किये गये पश्चिम बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को कब तक जेल में रखा जा सकता है? न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि पार्थ चटर्जी दो साल से अधिक समय से जेल में बंद हैं और मुकदमा अभी शुरू भी नहीं हुआ है. पीठ ने इडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू से पूछा, ‘अगर हम जमानत नहीं देंगे तो क्या होगा? मुकदमा अभी शुरू भी नहीं हुआ है, मामलों में 183 गवाह हैं. मुकदमे में समय लगेगा. हम उन्हें कब तक रख सकते हैं? यही सवाल है. यहां एक मामला है जहां दो साल से अधिक समय बीत चुका है. ऐसे में कैसे संतुलन बनाया जाये.’ शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि वह इस बात को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती कि पूर्व मंत्री के खिलाफ आरोप गंभीर प्रकृति के हैं. इसने पूछा, ‘श्री राजू, अगर अंततः वह (चटर्जी) दोषी नहीं ठहराये जाते हैं तो क्या होगा? ढाई-तीन साल तक इंतजार करना कोई छोटी अवधि नहीं है. आपकी दोषसिद्धि की दर क्या है? भले ही यह दर 60-70 प्रतिशत हो, हम समझ सकते हैं लेकिन यह बहुत खराब है.’ पार्थ चटर्जी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि पूर्व मंत्री को 23 जुलाई, 2022 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में हैं. उन्होंने यह भी कहा कि 73 वर्षीय पूर्व मंत्री स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं. उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में मुकदमे के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि 183 गवाह और चार पूरक अभियोजन शिकायतें हैं. मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि पार्थ चटर्जी धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत अधिकतम सजा का एक तिहाई से अधिक हिस्सा पहले ही काट चुके हैं, जिसमें सात साल की कैद हो सकती है. राजू ने जमानत याचिका का विरोध किया और कहा कि मंत्री ‘बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार’ में लिप्त थे, जिससे 50,000 से अधिक अभ्यर्थी प्रभावित हुए. अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि चटर्जी जमानत के हकदार नहीं हैं क्योंकि वह ‘बहुत प्रभावशाली’ हैं और रिहा होने पर गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं. राजू ने पूर्व मंत्री पर अनुकूल चिकित्सा प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए डॉक्टरों को प्रभावित करने का आरोप लगाया और कहा कि सह-अभियुक्त अर्पिता मुखर्जी ने बताया था कि पैसा आवेदक का था. पीठ ने रोहतगी से कहा कि वह संबंधित सीबीआइ मामलों में चटर्जी की हिरासत के बारे में विवरण प्रस्तुत करें. मामले में अगली सुनवाई दो दिसंबर को होगी. शीर्ष अदालत ने अक्तूबर में कलकत्ता हाइकोर्ट के 30 अप्रैल के आदेश के खिलाफ चटर्जी द्वारा दायर अपील पर इडी को नोटिस जारी किया था, जिसमें उन्हें इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया गया था कि धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित होता है. चटर्जी को पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रायोजित और सहायता प्राप्त प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण एवं गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था. पूर्व मंत्री और उनकी कथित करीबी सहयोगी मुखर्जी को इडी ने कथित अवैध भर्तियों में धन के लेन-देन की जांच के सिलसिले में गिरफ्तार किया था. इडी ने दावा किया था कि अर्पिता मुखर्जी के स्वामित्व वाले फ्लैटों से आभूषण, सोने की छड़ों के अलावा संपत्तियों और संयुक्त हिस्सेदारी वाली एक कंपनी के दस्तावेज के अलावा 49.80 करोड़ रुपये नकद बरामद किये गये. गिरफ्तारी के बाद पार्थ चटर्जी को ममता बनर्जी सरकार ने मंत्री पद से हटा दिया था. तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें महासचिव सहित पार्टी के सभी पदों से भी हटा दिया.
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