नेताजी की अस्थियां सौंपने में रेंकोजी के पुजारी बाधक नहीं
जापान के रेंकोजी में एक मंदिर में कलश में रखीं गयी अस्थियों के संबंध में माना जा है कि वे महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की हैं
एजेंसियां, कोलकाता
जापान के रेंकोजी में एक मंदिर में कलश में रखीं गयी अस्थियों के संबंध में माना जा है कि वे महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस की हैं और उन्हें स्वदेश लाने में अनेक अड़चनें आने संबंधी अटकलों को खारिज करते हुए बोस के वंशजों का दावा है कि उनके पास यह साबित करने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य हैं कि मंदिर के पदाधिकारियों की ओर से ‘अस्थियां’ भारत को सौंपने में कभी कोई बाधा नहीं डाली गयी. नेताजी के प्रशंसक उनकी अस्थियों को वापस लाने और ‘डीएनए’ जांच कराने की मांग करते रहे हैं, ताकि इस बात की पुष्टि हो सके कि क्या वे वाकई नेताजी की ही अस्थियां हैं या नहीं. साथ ही वे यह भी चाहते हैं कि इस राज से भी पर्दा उठना चाहिए कि क्या बोस 18 अगस्त 1945 को जापानी सैन्य विमान हादसे के बाद मारे गये थे? राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई 10 जांचों में पुष्टि हुई है कि बोस की मौत ताइहोकू (अब ताइवान) में जापानी सैन्य हवाई अड्डे के एक अस्पताल में हुई थी, जहां दुर्घटना में गंभीर रूप से जलने के कारण उन्हें भर्ती कराया गया था. ये जांच रिपोर्ट अब नयी दिल्ली में राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध हैं. हालांकि, उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनोज कुमार मुखर्जी की अध्यक्षता वाले आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्ष अलग थे. मुखर्जी आयोग केंद्र सरकार द्वारा गठित जांच पैनल में से अंतिम था, जिसने नवंबर 2005 में अपनी रिपोर्ट पेश की और रिपोर्ट में कहा गया था कि बोस की ‘मौत हो चुकी है’, हालांकि उनकी ‘मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई, जैसा कहा जाता है.’आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि जापान के मंदिर में रखीं अस्थियां नेताजी की नहीं हैं. हालांकि भारत सरकार ने आयोग के निष्कर्षों को खारिज कर दिया था. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि मंदिर के अधिकारियों ने उनके पास रखे कलश को ठीक से देखने नहीं दिया और कम जली हड्डियों में से कुछ अंश डीएनए जांच के लिए देने में आनाकानी की. नेताजी की 128वीं जयंती की पूर्व संध्या पर नेताजी के वशंज चंद्र कुमार बोस ने कहा : प्रधानमंत्री कार्यालय और भारत सरकार को विदेशी धरती पर मौजूद नेताजी की अस्थियों को भारत लाने की व्यवस्था के बारे में नेताजी की बेटी प्रोफेसर अनीता बोस और बोस परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा भेजे गये कई पत्रों का जवाब देना चाहिए. उन्होंने कहा : नेताजी स्वतंत्र भारत में लौटना चाहते थे, लेकिन वे ऐसा नहीं कर सके, क्योंकि उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी. यह अपमानजनक है कि उनकी अस्थियां अब भी जापान में हैं. 10 जांच रिपोर्टों में इस बात के निर्णायक सबूत हैं कि अस्थियां नेताजी की हैं. उन्होंने कहा : हां, अगर सरकार को लगता है कि अस्थियां नेताजी की नहीं हैं, तो इस आशय का एक बयान जारी किया जाना चाहिए. चुप्पी साध लेना इस महान नेता की स्मृति का अपमान है.
रेंकोजी में लगभग आठ दशकों से संरक्षित हैं सुभाषचंद्र बोस की अस्थियां
रेंकोजी में लगभग आठ दशकों से बोस की अस्थियां संरक्षित हैं. सुभाष चंद्र बोस की वशंज माधुरी बोस का कहना है कि रेंकोजी मंदिर के मुख्य पुजारी रेवरेंड मोचिजुकी के साथ-साथ भारत और जापान की सरकारें उस समय अस्थियों के डीएनए परीक्षण के वास्ते पूरी तरह से सहयोग के लिए तैयार थीं और निश्चित रूप से अस्थियों तक पहुंच के लिए कोई बाधा नहीं उत्पन्न की गयी. शोधकर्ता सुमेरु रायचौधरी द्वारा लिखित व हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘फ्रॉम शैडोज टू लाइट: द ट्रुथ ऑफ नेताजीज मॉर्टल एंड’ की प्रस्तावना में माधुरी ने आरोप लगाया कि मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में शामिल मंदिर के पदाधिकारियों के मूल पत्र के जापानी से अनुवाद के कुछ हिस्से ‘अस्पष्ट रूप से गायब’ हैं. उन्होंने कहा : परिवार में हममें से कई लोग इस बात पर सहमत हैं कि नेताजी की मृत्यु 1945 में गंभीर रूप से घायल होने से हुई थी. जो लोग इसके विपरीत सोचते हैं, वे अपनी जांच को आगे बढ़ाने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए निर्णायक सबूत पेश करने होंगे. लेखक-शोधकर्ता रायचौधरी ने कहा : पूर्व मनमोहन सिंह सरकार ने तोक्यो में नवनिर्मित भारतीय दूतावास कार्यालय में अस्थियों को स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण प्रगति की थी. सिंह का कार्यकाल समाप्त होने के बाद इस पर कोई काम नहीं हुआ. नेताजी के वशंज अमिय नाथ बोस के सबसे बड़े बेटे सूर्य कुमार बोस रेंकोजी मंदिर में कई बार जा चुके हैं और इसके मौजूदा पुजारियों से भी बातचीत कर चुके हैं. उन्होंने कहा कि अस्थियों की वैज्ञानिक जांच में सहयोग करने के लिए पदाधिकारियों को कोई दिक्कत नहीं है और वे इसके लिए तैयार हैं. सूर्य बोस ने कहा : किसी भी अन्य भारतीय नेता की तुलना में नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री और भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर सबसे ज्यादा बार जापान की यात्रा की, लेकिन मैं नहीं कह सकता कि उन्होंने रेंकोजी का दौरा क्यों नहीं किया?
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