कलकत्ता हाइकोर्ट में दुर्गापूजा की छुट्टी में सात दिनों की कटौती का प्रस्ताव, वकीलों ने जतायी आपत्ति

वकीलों का कहना है कि यदि इस प्रस्ताव पर अमल किया गया, तो वे लोग आंदोलन पर उतरेंगे.

By Prabhat Khabar News Desk | November 11, 2024 1:09 AM

कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट में मामलों की लंबी कतार लगी है. लोगों को जल्द इंसाफ मिले, इसे लेकर हाइकोर्ट ने वर्ष 2025 में छुट्टी में सात दिनों की कटौती करने के लिए चार न्यायाधीशों की एक विशेष कमेटी गठिन करने का प्रस्ताव दिया है. इस बीच, प्रस्ताव की चिट्ठी वायरल होने पर अधिवक्ताओं ने नाराजगी जतायी है. वकीलों का कहना है कि यदि इस प्रस्ताव पर अमल किया गया, तो वे लोग आंदोलन पर उतरेंगे. अभी तक दुर्गापूजा की षष्ठी से भाईफोटा तक लगातार छुट्टी रहती है. हाइकोर्ट का सामान्य कामकाज इस दौरान बंद रहता है. कुछ दिनों के लिए अवकाशकालीन बेंच बैठती है. इससे कुछ असर नहीं पड़ता है. प्रस्ताव में कहा गया है कि लक्ष्मीपूजा से कालीपूजा के बीच सात दिन छुट्टी खत्म की जाये. सुप्रीम कोर्ट ने साल में 222 दिन कार्य दिवस का फैसला लिया है. इसे देखते हुए छुट्टी मामले को लेकर चार न्यायाधीशों की विशेष कमेटी ने यह प्रस्ताव दिया है. विशेष कमेटी में न्यायाधीश हरीश टंडन, न्यायाधीश सोमेन सेन, न्यायाधीश जयमाल्य बागची व न्यायाधीश तपोव्रत चक्रवर्ती शामिल हैं. वहीं, अधिवक्ताओं की तीन कमेटी के साथ बैठक में कमेटी ने प्रस्ताव को लेकर तीखी प्रतिक्रिया देखी है. लेकिन कमेटी सात दिन और कार्य दिवस बढ़ाने के लिए सक्रिय है. इस प्रस्ताव को लागू करने के लिए वकीलों के तीन संगठन से राय मांगी गयी थी. बार एसोसिएशन व बार लाइब्रेरी कमेटी ने प्रस्ताव पर आपत्ति जतायी. वहीं, इंकॉरपोरेटेड लॉ सोसाइटी ने प्रस्ताव का समर्थन किया. बार एसोसिएशन के सचिव शंकर प्रसाद दलपति ने बताया कि छुट्टी में कटौती कर कार्य दिवस बढ़ाने से भी मामलों का जो पहाड़ दिख रहा है, वह कम नहीं होगा. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को यह नजर रखना होगा कि वर्तमान में कलकत्ता हाइकोर्ट में कुल 72 न्यायाधीशों के रहने की बात है. लेकिन फिलहाल 20 से 22 पद खाली हैं. वहीं बार एसोसिएशन के पूर्व सचिव विश्वब्रत बसु मल्लिक ने कहा कि केवल कार्य दिवस बढ़ाने से कुछ नहीं होगा. हाइकोर्ट में सभी न्यायाधीशों की कार्य क्षमता समान नहीं है. कोई न्यायाधीश एक दिन में 50 मामले की सुनवाई कर लेते हैं, वहीं कुछ पांच मामले भी नहीं सुन पाते. जबरन कोई प्रस्ताव लादना उचित नहीं है.

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