केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी जानकारी
एजेंसियां, कोलकाता/नयी दिल्ली
केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और निजी सहित देश के 97.5 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग शौचालयों की सुविधा है. केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया है कि दिल्ली, गोवा और पुडुचेरी जैसे राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों ने 100 प्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है और अदालत के पहले के आदेशों का अनुपालन किया है. वहीं, पश्चिम बंगाल में 99.9 प्रतिशत स्कूलों में और उत्तर प्रदेश में 98.8 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों की सुविधा है.केंद्र ने कांग्रेस नेता व सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर की ओर से दायर लंबित जनहित याचिका के संबंध में एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें कक्षा छह से 12 तक की छात्राओं को मुफ्त ‘सैनिटरी पैड’ प्रदान करने और सभी सरकारी, सरकारी सहायता प्राप्त और आवासीय स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग शौचालयों की व्यवस्था करने के वास्ते निर्देश दिये जाने का आग्रह किया गया है.
केंद्र ने अदालत को यह भी बताया कि 10 लाख से अधिक सरकारी स्कूलों में लड़कों के लिए 16 लाख शौचालय और लड़कियों के लिए 17.5 लाख शौचालय बनाये गये हैं और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में लड़कों के लिए 2.5 लाख और लड़कियों के लिए 2.9 लाख शौचालय बनाये गये हैं. केंद्र ने रेखांकित किया कि पश्चिम बंगाल में 99.9 प्रतिशत स्कूलों में और उत्तर प्रदेश में 98.8 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों की सुविधा है.इसने अदालत को सूचित किया कि तमिलनाडु में यह आंकड़ा 99.7 फीसदी, केरल में 99.6 फीसदी, सिक्किम, गुजरात, पंजाब में 99.5 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 99.6 फीसदी, कर्नाटक में 98.7 फीसदी, मध्य प्रदेश में 98.6 फीसदी, महाराष्ट्र में 97.8 फीसदी, राजस्थान में 98 प्रतिशत, बिहार में 98.5 प्रतिशत और ओडिशा में 96.1 प्रतिशत का है.
केंद्र ने कहा है कि पूर्वोत्तर राज्य राष्ट्रीय औसत 98 प्रतिशत से पीछे हैं. इसने कहा कि जम्मू-कश्मीर में 89.2 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालयों की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है.केंद्र ने आठ जुलाई को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि स्कूल जाने वाली किशोर उम्र की लड़कियों में मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों के वितरण को लेकर बनायी जा रही एक राष्ट्रीय नीति तैयार होने के उन्नत चरण में है. जया ठाकुर द्वारा दायर जनहित याचिका में स्कूलों में गरीब पृष्ठभूमि की किशोरियों को होने वालीं कठिनाइयों पर प्रकाश डाला गया है.
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