नेताजी का ‘पार्थिव अवशेष’ भारत लाने की अपील

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते चंद्र कुमार बोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जापान के रेंकोजी मंदिर में रखे स्वतंत्रता सेनानी के ‘पार्थिव अवशेषों’ को भारत लाने की अपील की है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बोस ने शनिवार को कहा : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि 18 अगस्त की पूर्व संध्या पर मैं आपसे नेताजी के अवशेषों को रेंकोजी से भारत लाने की एक बार फिर अपील करता हूं.

By Prabhat Khabar News Desk | August 17, 2024 11:15 PM

कोलकाता.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते चंद्र कुमार बोस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जापान के रेंकोजी मंदिर में रखे स्वतंत्रता सेनानी के ‘पार्थिव अवशेषों’ को भारत लाने की अपील की है. प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में बोस ने शनिवार को कहा : नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथि 18 अगस्त की पूर्व संध्या पर मैं आपसे नेताजी के अवशेषों को रेंकोजी से भारत लाने की एक बार फिर अपील करता हूं. नेताजी के पोते ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन किंवदंती बन गया है. उन्होंने कहा : उनके (नेताजी के) आकर्षक व्यक्तित्व, प्रखर बुद्धि, असाधारण साहस, नि:स्वार्थ भाव और भारत की स्वतंत्रता के लिए अटूट समर्पण ने उन्हें न केवल भारत के पुरुषों और महिलाओं, बल्कि विश्व भर के स्वतंत्रता-प्रेमी लोगों के दिलों और दिमागों में हमेशा के लिए एक नायक बना दिया है.चंद्र कुमार बोस ने कहा कि अगस्त 1945 में जापान के आत्मसमर्पण के बाद एक जापानी सैन्य विमान से ताइवान से रवाना होते समय हवाई दुर्घटना में उनकी (नेताजी की) मौत से जुड़ीं परिस्थितियों को कई लोग दुश्मनों से बचने की उनकी योजना के रूप में देखते हैं. उन्होंने कहा : दक्षिण भारत में ब्रितानी हिरासत में रहे सुभाष के भाई शरत चंद्र बोस और वियना में उनकी विधवा एमिली सहित उनके परिवार के करीबी सदस्य उनकी वापसी के लिए तरसते रहे, लेकिन उनमें से किसी को भी 18 अगस्त 1945 के बाद सुभाष के जीवित होने की कोई निश्चित जानकारी नहीं मिली.

नेताजी के पोते ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ लोगों को इस बात पर सचमुच भरोसा नहीं है कि नेताजी की मौत उसी तरह हुई, जैसा कि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त समकालीन विवरणों में बताया गया है. चंद्र कुमार बोस ने कहा कि 1956 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने आजाद हिंद फौज के जनरल शाहनवाज खान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की थी और ताइवान में दुर्घटना में नेताजी की मौत के 11 प्रत्यक्ष गवाहों से प्राप्त विस्तृत जानकारी आधिकारिक रिपोर्ट में पहली बार दर्ज की गयी. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा नियुक्त खोसला आयोग की 1974 की रिपोर्ट ने शाहनवाज की अगुवाई वाली समिति के निष्कर्षों की पुष्टि की जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया था.

चंद्र कुमार बोस ने कहा कि सरकार द्वारा नियुक्त न्यायमूर्ति मुखर्जी जांच आयोग की 2005 की रिपोर्ट में यह पाया गया कि नेताजी की मौत उक्त हवाई दुर्घटना में नहीं हुई थी, लेकिन इस रिपोर्ट में मौलिक त्रुटियां पायी गयीं और इसलिए भारत सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि सभी फाइल (10 जांच-राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय) जारी होने के बाद यह स्पष्ट है कि नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 को हुई थी, इसलिए यह जरूरी है कि भारत सरकार की ओर से अंतिम बयान दिया जाये, ताकि भारत को आजादी दिलानेवाले नायक के बारे में झूठी कहानियों पर विराम लग सके. चंद्र कुमार बोस ने कहा : अब इस अमर नायक के पार्थिव अवशेषों को उनके भारत देश लाने के प्रयास किये जाने चाहिए, जिसे उन्होंने आजाद कराया था.

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