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बारिश से ट्रेनों की रफ्तार को लगा ब्रेक

मूसलाधार बारिश से रेलवे कारशेड व हावड़ा झील साइडिंग हुआ जलमग्न

मूसलाधार बारिश से रेलवे कारशेड व हावड़ा झील साइडिंग हुआ जलमग्न

रेलवे का आरोप : शहरी इलाकों का पानी हावड़ा स्टेशन एरिया की रेल लाइनों पर चला आता है

श्रीकांत शर्मा, कोलकाता

मंगलवार की शाम से जारी मूसलाधार बारिश से जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है. हावड़ा शहर के अधिकांश क्षेत्र जलमग्न हो गये हैं. सड़कें तालाब में तब्दील हो चुकी हैं. अब तो रेलवे ट्रैक भी जलमग्न हो गया है. हावड़ा कारशेड एरिया की रेल लाइनें जलमग्न हो गयी हैं. जिस स्थान पर दर्जनों रेल लाइनें दिखती थीं, वह अब पानी में डूब चुकी हैं. इससे हावड़ा से लिलुआ के बीच रेल सेवा प्रभावित हुई है. गुरुवार सुबह पंजाब मेल, विभूति एक्सप्रेस जैसी कई एक्सप्रेस ट्रेनों को भी कारशेड में काफी इंतजार के बाद धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म पर लाया गया.

इसी तरह से वंदे भारत, राजधानी समेत कई ट्रेनों काे सावधानी पूर्वक धीमी गति से प्लेटफॉर्म पर लाया गया. पटरियों के जलमग्न होने से लंबी दूरी के साथ लोकल ट्रेनों का भी परिचालन गुरुवार को प्रभावित रहा. रेलवे ट्रेक पर जलजमाव से निपटने के लिए रेलवे के इंजीनियर व अन्य अधिकारियों ने टिकियापाड़ा कारशेड और हावड़ा झील साइडिंग निरीक्षण किया. दूसरी तरफ बरसात को लेकर अभी आगे भी अलर्ट है. अगले 24 घंटे में भी शहर में तेज बारिश के आसार हैं. यात्रियों का आरोप है कि बारिश के मौसम में कारशेड में पानी जमा होने से ट्रेन अक्सर लेट हो जाती है, क्योंकि पानी जमा होने से ट्रेनों की गति धीमी कर ट्रेनों का चलाना पड़ता है. यात्री जलजमाव की समस्या से काफी नाराज हैं. हालांकि रेलवे का दावा है कि जलजमाव रेलवे एरिया के पानी से नहीं, बल्कि हावड़ा नगर निगम एरिया का बारिश का पानी रेलवे ट्रेक पर चला आता है. हावड़ा में रेलवे ट्रैक का निर्माण और संचालन एक सदी से भी ज्यादा समय से किया जा रहा है, जबकि हावड़ा का शहरी क्षेत्र बहुत बाद में विकसित हुआ.

समय के साथ हावड़ा शहर विकसित होता गया. हावड़ा स्टेशन के आसपास का इलाका घनी आबादी वाले एरिया में तब्दील हो गया. शहर तो बना, लेकिन जल निकासी व्यवस्था पुरानी ही रह गयी. लिहाजा बारिश के समय पानी रेलवे ट्रैक और आसपास के इलाकों में घुस जाता है. हालांकि इसके बाद भी रेलवे ने हावड़ा स्टेशन एरिया, टिकियापाड़ा कारशेड और हावड़ा झील साइडिंग में जमा पानी को बाहर निकालने के लिए एक मजबूत सिस्टम विकसित किया है. हालांकि इसके बाद भी हावड़ा शहर के आसपास के सिविल इलाकों में जल निकासी की समस्या के कारण यह प्रयास भी विफल हो जाता है.

रेल एरिया से बारिश का पानी निकालने के लिए रेलवे की तैयारी

रेल एरिया से बारिश का पानी निकासी के लिए 10 पंप लगाने के साथ पांच रिजर्वर बनाये गये हैं. रेलवे द्वारा मिली जानकारी के अनुसार टिकियापाड़ा कोचिंग कॉम्प्लेक्स से निकलने वाली नालियां एक तरफ दशरथ घोष लेन में नगरपालिका के नाले से और दूसरी तरफ रेलवे ब्रिज नंबर-2 के जरिए बाईपास रोड के नाले से जुड़ी हुई हैं. इन नालियों से ही रेलवे एरिया का पानी सालों भर निकलता है. हालांकि बारिश में जब शहर जलमग्न हो जाता है, तब इन्हीं निकास प्वाइंटों से शहरी इलाकों का पानी रेल लाइनों में प्रवेश कर जाता है.

पहले कारशेड में दो मौजूदा रिजर्वर (कुएं) थे, जिनमें पिट लाइनों से पानी एकत्र किया जाता था. उसके बाद जमा पानी को 163 क्यूबिक मीटर प्रति घंटे की पंपिंग क्षमता वाले दो पंपों से निकाला जाता था. उक्त दो मौजूदा रिजर्वर (कुएं) के अलावे और तीन वाटर रिजर्वर भी बनाये गये है. सभी रिजर्वर को 903 क्यूबिक मीटर प्रति घंटे की पंपिंग के उच्च क्षमता वाले पंप से लैस किया गया है. झील साइडिंग में बने नवनिर्मित रिजर्वर संख्या-3 में पानी डाला जाता है. इस रिजर्वर से पानी नवनिर्मित रिजर्वर संख्या-4 और फिर रिजर्वर संख्या-5 में डाला जाता है और अंत में यह बारिश का पानी गंगा नदी में जाता है. हावड़ा मंडल के अधिकारियों का कहना है कि झील साइडिंग में भी जल निकासी व्यवस्था है, वहां से पंपिंग के माध्यम से बारिश का पानी चांदमारी ब्रिज की ओर बहता है तथा डबसन रोड से होते हुए गंगा नदी में चला जाता है.

हावड़ा कारशेड में कुल 19 और झील साइडिंग में 19 ट्रैक

रेलवे से मिली जानकारी के अनुसार हावड़ा कारशेड में कुल 19 ट्रैक हैं, जिनमें से आठ लाइनें ट्रेन परिचालन के लिए हैं. जबकि 11 लाइनें शेड के नीचे हैं. इन रेल लाइनों से होते हुए लोकल ट्रेन कारशेड में जाती है, जहां ईएमयू ट्रेनों का रखरखाव किया जा रहा है. कारशेड लगभग 249000 वर्ग मीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें टिकियापाड़ा कोचिंग कॉम्प्लेक्स और इसके सभी प्रशासनिक और रखरखाव भवन भी शामिल हैं. इसी तरह झील साइडिंग में 19 ट्रैक हैं, जिनमें से दो भारी रिपेयरिंग शेड में हैं और दो वंदे भारत निरीक्षण शेड में हैं, जिनका निर्माण हाल ही में हुआ है. दो कैटवॉक लाइनें भी हैं.

झील साइडिंग लगभग 132000 वर्ग मीटर में फैली हुई है, जिसमें इसके सभी प्रशासनिक और रखरखाव सेवा भवन शामिल हैं.

बारिश की वजह से दो सप्ताह में दो बार बाधित हुई सर्कुलर रेल सेवा

कोलकाता. पिछले माह दो सप्ताह में ऐसा दो बार हुआ, जब सर्कुलर रेलवे की पटरियों पर बारिश का पानी भर जाने के कारण ट्रेन सेवा बाधित हुई. अधिकारियों ने बताया कि पटरियों पर इतना पानी जम जाता है कि ट्रेनों के बेपटरी होने का खतरा बना रहता है. पिछले दिनों पूर्व रेलवे ने एक विज्ञप्ति जारी कर बताया कि बारिश में सर्कुलर रेल लाइन डूब गयी. कभी-कभी तो लाइन में डेढ़ फीट ऊंचाई तक पानी जम जाता है, जिस कारण बार-बार ट्रेन सेवा बाधित होती है. आरोप है कि निकासी व्यवस्था सही नहीं के कारण कई दिनों तक पटरियों में बारिश का पानी जमा रहता है. सबसे खराब स्थिति विद्यानगर के पास स्थित ब्रिज संख्या 16/ए के आसपास है. यहां स्थित कॉमन लाइन- एक और दो में पानी जम जाता है. रेलवे का आरोप है कि यहां निकासी व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण स्थिति खराब होती जा रही है. इसके अलावा, जब हुगली नदी में ज्वार आता है, उसका भी असर रेल लाइनों पर दिखता है. कोलकाता स्टेशन पर पानी निकालने के लिए कई बड़े पंप लगाये गये हैं. साथ ही किसी भी आपात स्थिति के लिए दो अतिरिक्त पंप रिजर्वर रखे गये हैं. अधिकारियों का कहना है कि पंप चलने से कुछ समय के लिए पानी तो निकल जाता है. लेकिन स्टेशन के आसपास के इलाकों में जमा पानी स्टेशन एरिया में प्रवेश कर जाता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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