सीमा की निगरानी में अत्याधुनिक तकनीकों का हो रहा इस्तेमाल

भारत-बांग्लादेश सीमा की िनगहबानी नहीं है आसान, संवेदनशील इलाकों में लगाये गये हैं आधुनिक उपकरण

By Prabhat Khabar News Desk | January 9, 2025 12:58 AM

भारत-बांग्लादेश सीमा की िनगहबानी नहीं है आसान, संवेदनशील इलाकों में लगाये गये हैं आधुनिक उपकरण

सुरक्षा को लेकर बीजीबी के रवैये का फायदा उठाने की कोशिश में रहते हैं तस्कर व घुसपैठिये

अमित शर्मा, पेट्रापोल

भारत और बांग्लादेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की रक्षा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जिम्मे में है. बांग्लादेश में राजनीतिक और आर्थिक स्थितियां बिगड़ने के बाद चौकसी और बढ़ा दी गयी है. भारत-बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमा करीब 4,096.7 किलोमीटर लंबी है. पश्चिम बंगाल में यह सीमा करीब 2,216.7 किलोमीटर लंबी है. अंतरराष्ट्रीय सीमा का करीब 913.32 किलोमीटर का हिस्सा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के साउथ बंगाल फ्रंटियर के अधिकार क्षेत्र में है. भौगोलिक कारणों से दक्षिण बंगाल फ्रंटियर के अंतर्गत आने वाले भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा दुनिया के पांच प्रमुख खतरनाक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में से एक माना जाता है. यह क्षेत्र पांच जिलों में है, जिनमें उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, नदिया, मुर्शिदाबाद व मालदा शामिल हैं. इस अंतरराष्ट्रीय सीमा की लंबाई करीब 913.32 किलोमीटर है, जिसमें थल सीमा 549.39 किलोमीटर और नदी सीमा 363.93 किलोमीटर है. यहां करीब 405.39 किलोमीटर क्षेत्र में ही कंटीले बाड़ लगे हैं. यानी लगभग आधे क्षेत्र में कंटीले बाड़ नहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय सीमा से बिल्कुल सटे दोनों ही देशों में बड़ी तादाद में आबादी निवास कर रही है. ऐसे में भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा के इस क्षेत्र की निगरानी आसान नहीं है. हालांकि, बीएसएफ हर विषम परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए सीमा की निगरानी में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. ऐसे में घुसपैठ, तस्करी व सीमा पर होने वाले अन्य आपराधिक घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए बीएसएफ केवल सुरक्षा चौकियों और पैदल गश्त जैसी पारंपरिक तरीका ही नहीं, बल्कि अत्याधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल कर रही है. इनमें इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है.

संवेदनशील क्षेत्रों में स्पेशल कैमरों से निगरानी :

कोलकाता से करीब 110 किलोमीटर की दूरी पर सीमावर्ती क्षेत्र उत्तर 24 परगना का पेट्रापोल मौजूद है, उक्त क्षेत्र के करीब 32 से 34.2 किलोमीटर लंबी सीमा में से केवल 11 किलोमीटर क्षेत्र पर बाड़ लगाना संभव हुआ है, जबकि शेष क्षेत्र की सुरक्षा पारंपरिक व अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से की जा रही है. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय सीमा के 150 गज के भीतर सुरक्षा के लिए कुछ क्षेत्रों में सिंगल फेंसिंग (बाड़) लगाने के लिए जमीन अधिग्रहण का काम जारी है. यहां के दुर्गम इलाकों और नदी क्षेत्रों के संवेदनशील क्षेत्रों में यानी जहां घुसपैठ व तस्करी की संभावना ज्यादा रहती है, वहां हर तरह की गतिविधि पर नजर रखने के लिए बुलेट कैमरों (मुविंग नहीं होने वाले) के अलावा ‘पैन टिल्ट जूम’ (पीटीजेड) कैमरे भी लगाये गये हैं, जो 360 पीटीजेड कैमरा 360 डिग्री घूम सकता है. दोनों ही प्रकार के कैमरे ‘नाइट विजन’ सुविधाओं से लैस हैं व इन कैमरों में सेंसर लगे हैं, जो सीमा पर किसी भी मानवीय गतिविधि का पता लगा सकते हैं. पीटीजेड कैमरे में दिन में करीब दो किलोमीटर व रात में लगभग 400 मीटर की दूरी से गुजरने वाले हर चीज की आसानी से निगरानी की जा सकती है. जबकि बुलेट कैमरे में इसका रेंज कम है. बार्डर आउटपोस्ट में मौजूद कंट्रोल रूम के जरिये कैमरों से निगरानी की जाती है. संबंधित क्षेत्रों से किसी के गुजरते ही कंट्रोल रूम में ड्रग्स व तस्करी की घटनाओं को रोकने के लिए सुरक्षाकर्मियों, प्रौद्योगिकी और संसाधनों का उचित तरीके से उपयोग किया जाता है.

रिवर लाइन पर निगरानी और हो जाती है मुश्किल :

उत्तर 24 परगना स्थित बॉर्डर आउटपोस्ट हकीमपुर-बिठारी इलाके में मौजूद भारत-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा का एक बड़ा हिस्सा रिवर लाइन से गुजरती है. यानी सोनाई नदी के दोनों ओर बड़ी तादाद में दोनों देशों के लोग निवास करते हैं. ऐसे में वहां पर निगरानी चुनौती से कम नहीं है. नदी को तैर कर पार कर घुसपैठ व तस्करी की संभावना काफी ज्यादा रहती है. सीमा के पास ही लोगों के बसे और दुर्गम क्षेत्र होने से दिक्कत और होती है. मजे की बात यह है कि बांग्लादेश की ओर बाॅर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) का महज एक ही बटालियन सुरक्षा के लिए तैनात रहता है और वहां उनके जवानों की संख्या करीब 800 रहती है. इसके ठीक विपरीत भारतीय सीमा के सिर्फ इस हिस्से की रक्षा के लिए बीएसएफ के जवानों की संख्या करीब 2400 रहती है. बीजीबी की सुरक्षा को लेकर बरते रवैये का फायदा पड़ोसी मुल्क के तस्कर व आपराधिक लोग उठाने की कोशिश में रहते हैं. बारिश के मौसम में सोनाई नदी का पानी बढ़ना, ठंड के मौसम में कुहासे भी बीएसएफ के जवानों की समस्या बढ़ाते हैं. रात में निगरानी और कठिन हो जाती है. बल ने अपने स्तर पर रिवर लाइन बार्डर के चुनिंदा क्षेत्रों लाइट की व्यवस्था की है, लेकिन यह संभवत: पर्याप्त नहीं है. बीएसएफ की ओर से रिवर पेट्रोलिंग 24 घंटे होती है. प्रति गश्ती दल करीब तीन घंटों तक लगातार पेट्रोलिंग करता है.

इंट्रूडर अलार्म लगाया गया है

संवेदनशील क्षेत्रों,जहां बाड़ नहीं है, में बीएसएफ की ओर से इंट्रूडर अलार्म सिस्टम के प्रयोग पर भी जोर दिया जा रहा है. यदि कोई अवैध तरीके से भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश करता है, तो दुर्गम क्षेत्र में लगे इंट्रूडर अलार्म से तेज सायरन बजने लगता है. ऐसे में बीएसएफ के जवान अवैध गतिविधि को रोक पाने में सक्षम हो पाते हैं.

घुसपैठ रोकने के लिए ट्रिपफ्लेयर का भी इस्तेमाल करती है बीएसएफ

इतना ही नहीं बीएसएफ, भारतीय सेना की तर्ज पर सीमा पर ट्रिपफ्लेयर की भी प्रयोग कर रही है. ट्रिपफ्लेयर एक ऐसा उपकरण है, जिसका इस्तेमाल घुसपैठ से बचाव के लिए किया जाता है. इसमें क्षेत्र के चारों ओर ट्रिपवायर होता है, जो एक या अधिक फ्लेयर्स से जुड़ा होता है. जब ट्रिपवायर को ट्रिगर किया जाता है. घुसपैठ की कोशिश कर रहा शख्स के वायर छूते ही फ्लेयर सक्रिय हो जाता है और जलने लगता है.

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