संवाददाता, कोलकाता
जाकिर हुसैन के निधन पर तबला वादक विक्रम घोष ने कहा कि उनकी कई स्मृतियां हैं. सब एक-एक कर सामने आ रही हैं. पिछले वर्ष 15 दिसंबर को गोवा में उनके साथ मुलाकात हुई थी. अब किसी को जाकिर भाई व जाकिर जी कह कर नहीं बुला पाऊंगा. उन्होंने कहा कि 73 साल की उम्र क्या किसी के अलविदा होने की होती है. कई यादें छोड़ कर उस्ताद अलविदा हो गये. वह हमारे बड़े भाई से कहीं भी कम नहीं थे. उन्होंने कहा कि जब वे छोटे थे, तो एक ही कमरे में रहते थे. अमेरिका अपने माता-पिता के साथ हम ऊपरी तल में रहते थे. नीचे फ्लैट में पंडित चित्रेश दास के साथ जाकिर भाई रहते थे. उस समय उनकी उम्र लगभग 18 या 19 रही होगी और मेरी उम्र तीन या चार वर्ष. मेरे माता-पिता कभी जाकिर भाई के पास देखभाल के लिए छोड़ कर चले जाते थे. उनके पास सुर-ताल की दुनिया घूमती थी. उनका जाना अकल्पनीय लग रहा है.
जीवन में आगे बढ़ने का रास्ता उन्होंने ही दिखाया था. उनके साथ स्नेह का एक गहरा रिश्ता था. जब कभी मिलते, तो गले मिल कर गाल दबाते. माथे के बाल सहलाने लगते. जाकिर भाई कहते, अब तुम कितने बड़े हो गये हो. मजाकिया लहजे में भी उनके साथ बातचीत का आनंद उठाते थे. उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में जाकिर हुसैन जैसा कलाकार मिलना मुश्किल है. उनके जाने से कितनी क्षति पहुंची है, इसे वह कह नहीं पा रहे हैं. यह कल्पना नहीं कर पा रहे हैं कि उस्ताद अब इस दुनिया में नहीं है.
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