Calcutta High Court : कानून आइवीएफ की इच्छुक विवाहिता या अविवाहिता के बीच अंतर नहीं करता : हाइकोर्ट

कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि इन-विट्रियो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) के मामलों में यह अनिवार्य नहीं कि शुक्राणु या अंडाणु आइवीएफ की इच्छुक दंपती का ही हो

By Prabhat Khabar News Desk | May 1, 2024 12:35 AM

कहा : शुक्राणु/ अंडाणु दंपती का ही हो, यह आवश्यक नहीं कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि इन-विट्रियो फर्टिलाइजेशन (आइवीएफ) के मामलों में यह अनिवार्य नहीं कि शुक्राणु या अंडाणु आइवीएफ की इच्छुक दंपती का ही हो. हाइकोर्ट के न्यायाधीश सब्यसाची भट्टाचार्य की एकल पीठ ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के तहत मौजूद नियमों का अवलोकन किया और एक पति की याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसने किशोर उम्र की अपनी बेटी को खोने के बाद आइवीएफ के माध्यम से संतानोत्पत्ति की मांग की थी. गौरतलब है कि याचिकाकर्ता पति की उम्र 59 वर्ष है. अधिनियम के अनुसार वह आइवीएफ तकनीकी के प्रयोग के लिए निर्धारित अधिकतम उम्र की सीमा पार कर चुके हैं. हालांकि पत्नी की उम्र 46 वर्ष है और वह इसके लिए अभी पात्र है. पति की उम्र अधिक होने के कारण उन्हें कानूनी अड़चनों का सामना करना पड़ रहा था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक ऐसी महिला, जो व्यक्तिगत रूप से ऐसी तकनीक का सहारा लेने के लिए क्लिनिक जाती है और दूसरी ऐसी महिला, जो दांपत्य का हिस्सा है और ऐसे उद्देश्यों के लिए क्लिनिक जाती है. धारा 21(जी) ऐसी दोनों महिलाओं के बीच कोई अंतर नहीं करती है. चूंकि अधिनियम विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेदभाव नहीं करता है, इसलिए वर्तमान मामले में भी ऐसा अंतर नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि मानव शरीर के बाहर शुक्राणु या अंडाणु को संभालकर गर्भावस्था प्राप्त की जा सकती है. ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है कि दोनों दपंती का ही हो. कोर्ट ने यह माना कि हालांकि पति इस प्रक्रिया के लिए अपने युग्मक दान करने की उम्र पार कर चुका है, पत्नी अभी भी अधिनियम के तहत पात्र थी, और आइवीएफ उपचार लेने के लिए उस पर कोई रोक नहीं थी. तदनुसार, अदालत ने दंपती की आइवीएफ उपचार प्राप्त करने की याचिका को अनुमति दे दी.

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