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पैरोडी व रैप सॉन्ग से वोटरों लुभाने में जुटे हैं वामपंथी

वाममोर्चा खासकर माकपा इस बार चुनाव में नयी पीढ़ी को लक्ष्य कर आगे बढ़ रही है.

कोलकाता. वाममोर्चा खासकर माकपा इस बार चुनाव में नयी पीढ़ी को लक्ष्य कर आगे बढ़ रही है. मोहम्मद सलीम के राज्य सचिव की कमान संभालते ही पार्टी में प्रचार की कमान एक तरह से युवाओं के हाथ में ही है.आर्टिफिशियल इंटेलीजेंसी के मार्फत बुद्धदेव भट्टाचार्य का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के बाद परंपरागत लोक संगीत व अपने सांस्कृतिक धरोहर को बरकरार रखते हुए माकपा प्रचार कर रही है. इसी के तहत अपनी परिचित शैली से अलग हट कर टूंपा सोना और जामाल कूदू जैसे लोकप्रिय पैरोडी का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर माकपा जमकर कर रही है. साथ ही रैप सॉन्ग का भी सहारा ले रही है.उल्लेखनीय है कि वामपंथी पहले अपने प्रचार में लोक संगीत व गनसंगीत को अहमियत देते थे. लेकिन अब वक्त के साथ कदमताल करते हुए उन्होंने भी रणनीति बदली है. उसकी जगह अब पैरोडी और रैप गानों ने ले लिया है. लेकिन इसमें प्रयोग भाषा को लेकर शिक्षित व भद्र बंगाली छवि वाले कामरेड आपत्ति कर रहे हैं. उनका का कहना है कि वामपंथी संस्कृति के साथ यह सब मेल नहीं खाता. माकपा केंद्रीय कमेटी के सदस्य शमिक लाहिड़ी का कहना है कि यह सॉन्ग माकपा की ओर से नहीं बनाया गया है. जिन लोगों ने बनाया है, वहीं इस बारे में प्रतिक्रिया देंगे.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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