Lok Sabha Election 2024 : कभी वामो का गढ़ रहे मथुरापुर पर अब है तृणमूल का दबदबा, भाजपा भी वोट बढ़ाने में लगा रही जोर

Lok Sabha Election 2024 : कभी वाम किले के तौर पर जाने जानेवाले मथुरापुर लोकसभा क्षेत्र को अब तृणमूल के गढ़ के तौर पर देखा जाता है. पिछले तीन लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को यहां से जीत मिली है. हालांकि आहिस्ता-आहिस्ता, भाजपा ने भी अपनी स्थिति यहां मजबूत की है.

By Shinki Singh | April 11, 2024 1:18 PM

Lok Sabha Election 2024 : पश्चिम बंगाल के मथुरापुर लोकसभा क्षेत्र (Lok Sabha constituency) तेभागा आंदोलन के लिए जाना जाता है. इसलिए इस संसदीय सीट पर माकपा का खासा दबदबा रहा है. 1962 में जब यह सीट अस्तित्व में आयी तो यहां से कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया. कांग्रेस के पूर्णेंदु शेखर नस्कर ने इस सीट से जीत का खाता खोला था. लेकिन 1967 में जब यहां चुनाव हुआ तो माकपा ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली. माकपा के कंसारी हलदर ने चुनाव जीता. 1971 में माकपा के ही मधुरजया हलदर, 1977 में माकपा के मुकुंद राम मंडल यहां से चुनाव जीते.

1989 में फिर से यह सीट माकपा के खाते में आ गयी

1980 में भी माकपा के मुकुंद राम मंडल यहां से फिर से चुनाव जीतने में सफल रहे. 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में यह सीट फिर से कांग्रेस के कब्जे में आ गयी. कांग्रेस के मनोरंजन हलदर ने यहां से जीत दर्ज की. 1989 में फिर से यह सीट माकपा के खाते में आ गयी. माकपा के राधिका रंजन प्रमाणिक यहां से चुनाव जीते. 2004 तक वह लगातार पांच बार सांसद चुने गए. 2004 में हुए चुनाव में माकपा के बासुदेव बर्मन ने यहां से चुनाव जीता था. माकपा ने यहां से लगातार छह बार चुनाव जीत कर अपना दबदबा बनाए रखा था. 2009 में इस सीट से माकपा का वर्चस्व जैसे खत्म हो गया. यहां पर तृणमूल कांग्रेस ने जबरदस्त एंट्री की. 2009 में तृणमूल कांग्रेस ने यहां से चौधरी मोहन जाटुआ को उम्मीदवार बनाया.

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2014 के चुनाव में भी तृणमूल के चौधरी मोहन जाटुआ ने हासिल की जीत


उन्होंने 54.95 फीसदी वोट अपनी झोली में लेकर विजयी घोषित हुए. उन्होंने माकपा के अनिमेष नस्कर को हराया. नस्कर को 41.55 फीसदी वोट मिला. जबकि भाजपा के विनय कुमार विश्वास को 2.62 फीसदी वोट ही मिल पाया. चौधरी मोहन जाटुआ इस बार माकपा पर भारी पड़े. 2014 के चुनाव में भी तृणमूल के चौधरी मोहन जाटुआ फिर से जीत हासिल की. उन्हें 49.58 फीसदी वोट मिला. पिछली बार की तुलना में उनके वोट में 5.37 फीसदी की कमी आयी. माकपा के रिंकू नस्कर को 38.56 फीसदी वोट मिला. माकपा का वोट प्रतिशत 5.88 फीसदी बढ़ा तो जरूर, लेकिन वह जीतने में सफल नहीं रही. भाजपा ने 5.21 फीसदी वोट हासिल कर पिछले चुनाव की तुलना में अपना वोट 2.59 फीसदी बढ़ा लिया. इस तरह भाजपा भी यहां अपनी ताकत का एहसास कराने लगी. 2019 में हुए चुनाव में तृणमूल ने फिर से चौधरी मोहन जाटुआ को ही यहां से टिकट दिया. उन्होंने 2.46 फीसदी वोट बढ़ाते हुए 51.84 फीसदी वोट हासिल किया.

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भाजपा के वोट में जबरदस्त उछाल आया

भाजपा के वोट में इस चुनाव में जबरदस्त उछाल आया. पांच फीसदी वोट हासिल करनेवाली भाजपा इस सीट पर दूसरे स्थान पर आ गयी. भाजपा के श्यामा प्रसाद हलदर को 37.29 फीसदी वोट मिला. भाजपा का वोट 32.08 फीसदी बढ़ गया. माकपा के डॉ. शरत चंद्र हलदर को महज 6.59 फीसदी ही वोट मिला. माकपा के वोट में 32.08 फीसदी की कमी आ गयी. इस बार यहां के समीकरण को देखते हुए ऐसा लग रहा है कि इस बार भी मुकाबला भाजपा व तृणमूल के बीच होगी. जानकारों के मुताबिक इस बार रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है.

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एकतरफा उम्मीदवार की घोषणा करने से कांग्रेस में नाराजगी

मथुरापुर लोकसभा क्षेत्र के लिए माकपा की ओर से उम्मीदवार की घोषणा कर दी गयी है. यहां से शरतचंद्र हालदार को माकपा ने उम्मीदवार बनाया है. इसके बाद से ही कांग्रेस-माकपा गठबंधन को लेकर नये सिरे से तनाव देखा जा रहा है. इससे पहले बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र से माकपा ने अभिनेता देवदूत घोष और बशीरहाट से निरापद सरदार को उम्मीदवार के तौर पर घोषणा की थी. मथुरापुर, बशीरहाट और बैरकपुर से उम्मीदवार खड़ा करने से कांग्रेस में नाराजगी देखी जा रही है. कांग्रेस के सूत्रों के मुताबिक किसी प्रकार की चर्चा के बगैर ही इन सीटों पर माकपा नेतृत्व ने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. जो उन्हें स्वीकार नहीं है. इसकी वजह है कि कांग्रेस ने वाममोर्चा के समक्ष इन तीनों सीटों से उम्मीदवार उतारने की इच्छा जतायी थी. प्रदेश कांग्रेस के संगठन इनचार्ज नीलय प्रमाणिक के मुताबिक मथुरापुर सीट से प्रदेश कांग्रेस ने उम्मीदवार उतारने का फैसला बहुत पहले ही ले लिया था. दिल्ली में चुनावी कमेटी ने यह प्रस्ताव मान भी लिया था.

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मूड़ी गंगा पर सेतु निर्माण यहां के लोगों के लिए है बड़ा मुद्दा

सागर में मूड़ी गंगा पर सेतु का निर्माण एक बड़ा व राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा है, क्योंकि हर साल मकर संक्रांति पर गंगासागर जाने वाले लाखों तीर्थयात्रियों को सेतु न होने के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कुलपी में बंदरगाह का निर्माण भी बड़ा मसला है. चूंकि अरब की एक कंपनी ने लंबे समय से फंसी इस परियोजना में हाथ लगाया है इसलिए तृणमूल इसका श्रेय लेने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी. चुनाव के इस मौसम में गंगासागर की प्रासंगिकता और अधिक हो बढ़ गयी है.

अमित शाह भी गंगासागर का दौरा कर इसे अंतरराष्ट्रीय टूरिस्ट प्लेस बनाने का दे चुके हैं भरोसा

गृहमंत्री अमित शाह गंगासागर के दौरे पर आए थे. उन्होंने यहां कई वादे किए. शाह ने कहा कि अगर भाजपा सत्ता में आयी तो हम गंगासागर को इंटरनेशनल टूरिस्ट प्लेस के रूप में डेवलप करेंगे. इसके साथ ही उन्होंने यहां नमामि गंगे और केंद्र सरकार की दूसरी योजनाओं को लागू करने का भी वादा किया है. 2017 में मकर संक्रांति के दिन जब यहां भगदड़ मची थी तब प्रधानमंत्री मोदी ने मृतकों के परिजनों और घायलों के लिए मुआवजे की घोषणा की थी. उस वक्त राज्य सरकार ने भी मुआवजे का ऐलान किया था. विकास के अपने वादों को लेकर भाजपा भी यहां जोर लगा रही है. पुल बना देने का भरोसा भी भाजपा नेता दिला रहे हैं. पुल बनाने को लेकर भाजपा व तृणमूल में जुबानी जंग भी होती रहती है.

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बजट में राज्य सरकार ने ब्रिज बनाने का किया है वादा

गंगासागर में कपिल मुनि का एक बहुत ही पुराना आश्रम है, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. कुंभ के बाद देश का सबसे बड़ा मेला यहां लगता है. कपिल मुनि आश्रम के पुजारी अजीत दास कहते हैं कि अगर यहां पुल बनता है तो स्थानीय लोगों को सहूलियत तो होगी, लेकिन यह तीर्थ स्थान न रहकर एक टूरिस्ट प्लेस बन जायेगा. हालांकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार गंगासागर द्वीप को मुख्य भूमि से जोड़ने के लिए एक पुल बनाने पर काम कर रही है. उन्होंने कहा ‘हमने केंद्र सरकार को मूड़ी गंगा (नदी) पर एक पुल बनाने के लिए लिखा है, लेकिन वे उस पर भी चुप हैं. वहां पुल बनाने में काफी पैसा लगेगा. हम उसके लिए एक डीपीआर तैयार कर रहे हैं. राज्य सरकार ने 2024-25 के राज्य बजट में सेतु निर्माण के लिए फंड देने की घोषणा की है. 3.1 किलोमीटर लंबा यह ब्रिज लॉट नंबर आठ से कचूबेड़िया को जोड़ेगी. इसके निर्माण में तीन साल का समय लगेगा. बजट में इसके लिए 1200 करोड़ रुपये मंजूर किए गये हैं.

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तेभागा किसान आंदोलन के प्रभाव से मथुरापुर बना माकपा का गढ़

थुरापुर दक्षिण 24 परगना जिले के डायमंड हार्बर उपखंड में स्थित है. इस क्षेत्र ने तेभागा किसान आंदोलन में अहम भूमिका निभायी थी. यह क्षेत्र 1943 के विनाशकारी बंगाल अकाल के दौरान भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राहत प्रयासों का गवाह था, जिसमें सुंदरवन क्षेत्र के किसानों को निशाना बनाया गया था. अकाल के बाद सितंबर 1946 में बंगीय प्रादेशिक किसान सभा द्वारा तेभागा आंदोलन की शुरुआत हुई, जिसका उद्देश्य किसानों के लिए उपज का बेहतर हिस्सा सुरक्षित करना था. यह आंदोलन 1950 में बरगादारी अधिनियम लागू होने तक जारी रहा, जिसके तहत बटाईदारों को फसल की उपज का दो-तिहाई हिस्सा दिया गया. आंदोलनों के प्रभाव का प्रमाण, मथुरापुर संसदीय क्षेत्र अक्सर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) का गढ़ रहा है, जिसे 1962 में लोकसभा सीट के रूप में स्थापित किया गया और अनुसूचित जाति के लिए नामित किया गया. 2011 की जनगणना के अनुसार, इसकी आबादी 2,216,787 है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण (94%) है, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति क्रमशः 29.06% और 0.53% हैं. तेभागा आंदलन के संचालक ‘कंपाराम सिंह’ तथा ‘भवन सिंह चड्डा’ थे. उस समय बटाईदारों ने अपनी फसल का आधा हिस्सा जमींदारों को देने का अनुबंध किया था. तेभागा (तिहाई हिस्सा) आंदोलन की मांग ज़मींदारों के हिस्से को घटाकर एक तिहाई करने की थी.

जीत की हैट्रिक करने वाले चौधरी मोहन जटुआ का कैसा रहा रिपोर्ट कार्ड

कभी मथुरापुर लोकसभा क्षेत्र को वाममोर्चा का किला कहा जाता था. मथुरापुर में माकपा के किले में 2009 में तृणमूल उम्मीदवार चौथरी मोहन जटुआ ने सेंध लगायी. 2009 से 2019 तक मथुरापुर लोकसभा क्षेत्र से उन्होंने जीत की हैट्रिक की. लेकिन उम्र हो जाने पर इस बार के लोकसभा चुनाव के मैदान से श्री जटुआ ने खुद को हटा लिया है. लोकसभा चुनाव में तृणमूल ने इस बार सुंदरवन सांगठनिक जिले के तृणमूल युवा अध्यक्ष बापी हालदार पर भरोसा जताया है. चौधरी मोहन जटुआ के जीत के सिलसिले को क्या युवा नेता आगे ले जा पायेंगे? इलाके के लोग क्या श्री जटुआ के लंबे 15 वर्षों के कार्यकाल से संतुष्ट हैं? या फिर सत्ताविरोधी नाराजगी बापी हालदार के लिए चुनौती रहेगी? राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पिछले पांच वर्षों में इलाके में विकास नहीं हुआ, ऐसा शायद कोई न कहे लेकिन इलाके के लोगों में कई मामलों को लेकर नाराजगी है.

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भाजपा की बढ़ती ताकत बनी तृणमूल के लिए चुनौती

मथुरापुर संसदीय क्षेत्र की सातों विधानसभा पर तृणमूल का कब्जा है. यहां से एक भी विधानसभा सीट भाजपा भले ही नहीं जीत पायी है, लेकिन जिस तेजी से भाजपा ने यहां अपना पांव पसारा है, यह अब तृणमूल के लिए चुनौती बन गयी है. कभी दो फीसदी से भी कम वोट हासिल करनेवाली भाजपा 2019 के चुनाव में यहां टक्कर देने की स्थिति में पहुंच गयी थी. 2009 में हुए चुनाव में भाजपा को यहां महज 2.62 फीसदी वोट मिला था. इस चुनाव में वह कहीं दिख नहीं रही थी. 2014 में जब चुनाव हुए, भाजपा केंद्र की सत्ता में भी आयी. लेकिन यहां भाजपा का वोट मात्र 2.59 फीसदी ही बढ़ा. उसे कुल 5.21 फीसदी ही वोट मिल पाया था. लेकिन 2019 के चुनाव में भाजपा ने यहां अपनी ताकत का एहसास कराया. उसके वोट प्रतिशत में भारी उछाल आया. अचानक इस चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत 32.08 फीसदी बढ़ गया. भाजपा दूसरे स्थान पर आयी. भाजपा को 37.29 फीसदी वोट हासिल हुआ.

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मथुरापुर में 07 विधानसभा क्षेत्र

  • पाथरप्रतिमा तृणमूल कांग्रेस समीर कुमार जाना
  • काकद्वीप तृणमूल कांग्रेस मंटूराम पाखीरा
  • सागर तृणमूल कांग्रेस बंकिम चंद्र हाजरा
  • कुल्पी तृणमूल कांग्रेस जोगरंजन हाल्दार
  • रायदिघी तृणमूल कांग्रेस आलोक जलदाता
  • मंदिरबाजार तृणमूल कांग्रेस जयदेव हाल्दार
  • मगराहाट पश्चिम तृणमूल कांग्रेस गियासुद्दीन मोल्ला

मतदाताओं के आंकड़े

    • कुल मतदाता 1816454
    • पुरुष मतदाता 933226
    • महिला मतदाता 883193
    • थर्ड जेंडर 000035

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