संवाददाता, कोलकाता
मॉब लिंचिंग विरोधी विधेयक विधानसभा में पास होने के बावजूद पांच साल से राजभवन में ही अटका हुआ है. गुरुवार को अलीपुर में बुद्धिजीवियों के साथ चाय पर बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि यदि यह कानून राज्य में लागू हो गया होता, तो शायद इतनी घटनाएं नहीं होतीं. बता दें कि वर्ष 2019 में यह कानून विधानसभा में पास हुआ था. मॉब लिंचिंग पर कड़ी सजा का प्रावधान रखा गया था. बिल को राज्यपाल के हस्ताक्षर के लिए राजभवन भेजा गया था. लेकिन तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने बिल पर हस्ताक्षर नहीं किया. उनका आरोप था कि जो बिल विधानसभा में पास हुआ है और जो राजभवन में भेजा गया है, उसमें काफी अंतर है. उन्होंने स्पीकर से इसे लेकर जवाब मांगा था. स्पीकर बिमान बनर्जी ने कहा कि जवाब राजभवन को भेज दिया गया था. इस बीच, राज्यपाल की मियाद खत्म हो गयी. कुछ दिन के लिए ला गणेशन ने राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाली. बाद में सीवी आनंद बोस राज्यपाल बन कर आये. लेकिन बिल अब भी राजभवन में ही अटका हुआ है. बातचीत में मुख्यमंत्री ने बताया कि मॉब लिंचिंग जैसी घटना की वह घोर विरोधी हैं. बिल पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं होने के कारण सरकार कड़ा कदम नहीं उठा पा रही है. इस प्रसंग में मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश की कुछ घटनाओं का भी उल्लेख किया.चुनाव में तृणमूल का समर्थन करने के लिए जताया आभार :
गुरुवार को मुख्यमंत्री ने राज्य के बुद्धिजीवियों के साथ बैठक की और हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस का समर्थन करने के लिए आभार जताया. मुख्यमंत्री ने बुद्धिजीवियों से केंद्र सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद जारी रखने का आह्वान किया. मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार लगातार बंगाल की उपेक्षा कर रही है. इस बैठक में कबीर सुमन, नचिकेता चक्रवर्ती, इंद्रनील सेन, प्रतुल मुखोपाध्याय, जय गोस्वामी सहित 45 बुद्धिजीवी मौजूद रहे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है