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माकपा के निष्क्रिय नेताओं पर गिर सकती है गाज

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद माकपा अब शुद्धिकरण की राह पर है. चुनाव के दौरान पार्टी के सदस्य व संगठन ने सटिक भूमिका नहीं निभायी है, उनके खिलाफ कड़े कदम उठाने का तैयारी शुरू की गयी है. प्राथमिक समीक्षा के बाद जो रिपोर्ट तैयार की गयी है,

कोलकाता.

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद माकपा अब शुद्धिकरण की राह पर है. चुनाव के दौरान पार्टी के सदस्य व संगठन ने सटिक भूमिका नहीं निभायी है, उनके खिलाफ कड़े कदम उठाने का तैयारी शुरू की गयी है. प्राथमिक समीक्षा के बाद जो रिपोर्ट तैयार की गयी है, उसमें जिला कमेटियों को यह निर्देश दिया गया है कि चुनाव मैदान में किसी भी स्तर के पार्टी सदस्यों ने अगर सार्थक भूमिका नहीं निभायी है, तो जिला कमेटी को इसकी समीक्षा कर जरूरी कदम उठाना होगा. साथ ही यह भी कहा गया है कि पार्टी दफ्तर में बैठ कर कई नेता दिन गुजार रहे हैं, वे कभी इलाके में नहीं जाते, ऐसे नेताओं को सतर्क करते हुए राज्य नेतृत्व ने कहा है कि पार्टी सदस्यों को जनता के बीच जाना होगा, उनसे बेहतर संपर्क स्थापित करना होगा. पार्टी दफ्तर में खुद को सीमाबद्ध नहीं कर समय-समय पर लोगों के बीच जाकर भी समय गुजारने को कहा गया है.

रिपोर्ट में यह चिंता जतायी गयी है कि बहुत सारे पार्टी के कार्यकर्ताओं व एजी सदस्यों की चुनाव के दौरान निष्क्रिय भूमिका रही है. इसलिए एक के बाद एक हुए चुनावों में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है. इससे राज्य नेतृत्व हताश है. निचले स्तर पर कहां चूक हो रही है, इसकी तलाश में माकपा जुट गयी है.

इसी कड़ी में निष्क्रिय कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की तैयारी है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगले एक महीने में जिला कमेटी को चुनावी नतीजों की समीक्षा पूरी कर लेनी होगी. विधानसभा के नतीजों को आधार बना कर समीक्षा करने को कहा गया है. जनता का पार्टी से मुंह मोड़ लेना, चिंता का विषय है. लोगों की मांग व उनके मनोभाव को लेकर भी आलोचना करने को कहा गया है. समीक्षा करने के दौरान यह भी निर्देश दिया गया है कि शाखा, जिला व एरिया कमेटी की भूमिका भी देखें. पार्टी सदस्यों के साथ राज्य कमेटी समीक्षा करेगी. अब बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत बनाने, इलाके की समस्या की पहचान कर जनता को साथ लेकर आंदोलन करने का निर्देश दिया गया है. रिपोर्ट में यह भी स्वीकार किया गया है कि बहुत सारे मामले में तृणमूल के खिलाफ जितना जोर दिया गया, भाजपा का उस तरह से विरोध नहीं हुआ. प्रचार के दौरान भी पार्टी ने कई चूक की. प्रचार के लिए जो रणनीति अपनायी गयी थी, उसमें भी खामियां थीं, पार्टी ने स्वीकार किया है. घर-घर जाकर जन संपर्क अभियान में भी कमी रही.

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