धैर्य व सहनशीलता ही मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी : पूजा जोशी

मेवाड़ बैंक्वेट में श्रीराम कथा के दूसरे दिन शिव पार्वती विवाह का सुंदर वर्णन किया गया

By Prabhat Khabar News Desk | August 1, 2024 12:52 AM

कोलकाता. कलकत्ता टेक्सटाइल एजेंट्स एसोसिएशन के तत्वावधान में व्यापारी वर्ग के कल्याणार्थ आयोजित श्रीराम कथा के दूसरे दिन आज व्यास पीठ से विदुषी पूजा जोशी ने शिव पार्वती विवाह का बड़े ही सुंदर ढंग से वर्णन किया. उन्होंने कहा कि आज के दौर में रिश्ते स्वार्थ से वशीभूत होकर सिर्फ अपने तथा अपने परिवार तक ही सिमटते जा रहे हैं. अपने बच्चों, अपने परिवार की देखभाल तो सामान्य ज्ञान रखने वाले पशु भी करते हैं. रिश्तों की कद्र कीजिए क्योंकि ये सभी एक निश्चित अवधि के लिए मिले हैं. कोशिश कीजिए कि परिवार के सभी लोग साथ बैठें, साथ मिलकर खाना खायें. इससे निकटता आयेगी और प्यार बढ़ेगा. विदुषी पूजा जोशी ने कहा कि घर परिवार को बांधे रखने के लिए धैर्य, सहनशीलता सबसे पहली और बड़ी जरूरत है. मानस हमें सहनशीलता सिखाती है. राम का राज्याभिषेक किये जाने की घोषणा के बाद अगले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा, पर उन्होंने किसी तरह का प्रतिरोध अथवा विरोध नहीं किया. त्याग उच्चारण में नहीं आचरण में होना चाहिए. साधु कोई वेश धारण करने से नहीं बनता, साधुता तो मनुष्य के स्वभाव में होनी चाहिए. किसी से अनबन हो, तो उसका विरोध मत कीजिए. शांत रहिए. मौन पालन कीजिए. क्योंकि सहनशीलता का ही दूसरा नाम तपस्या है. संदेह विष के समान है जो हृदय से किसी को दूर कर देता है. सीता हरण से व्याकुल श्रीराम द्वारा वन के पशु पक्षियों से सीता के बारे में पूछे जाने पर सती को संदेह हुआ कि क्या ये वही राम हैं जो ज्ञान के भंडार हैं, यदि हैं तो फिर अपनी ही लीला से अनजान क्यों हैं. क्यों किसी आम व्यक्ति की तरह सीता के वियोग में इस तरह से रुदन कर रहे हैं ? संदेह ने सती को श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए विवश किया. वह माता सीता का वेश धारण कर भगवान श्रीराम के सामने से होते हुए उनके समक्ष आ उपस्थित हुईं. राम ने पहचान लिया क्योंकि सीता तो हमेशा उनके पीछे-पीछे ही चली थीं. भगवान शिव को जब मालूम हुआ कि सती ने माता का रूप धारण कर लिया था, तो वे सत्तासी हजार साल के लिए समाधि अवस्था पर चले गये. समाधि टूटी, तो उन्होंने सती से बिना कुछ कहे उनका आसन वामअंग से हटाकर सामने की ओर लगा दिया. सती में माता सीता दर्शन करने के बाद भगवान शिव ने मन ही मन विचार कर लिया कि इस शरीर के प्रति तो अब पत्नी वाली भाव स्थिति उत्पन्न नहीं हो पायेगी. दक्ष से सभा में हुई अनबन होने की बात भी उन्होंने सती से न कह कर सिर्फ उन्होंने उसकी प्रशंसा ही की. पति के मना करने के बावजूद सती अपने पिता दक्ष द्वारा कराये गये यज्ञ अनुष्ठान में पहुंचीं. सती ने यज्ञशाला में कूदकर देह त्याग दिया. दक्ष के अहंकार का मर्दन हुआ. एसोसिएशन के अध्यक्ष हरिशंकर झंवर, मंत्री ललित सिंघी ने परिवार-सदस्यों सहित आरती के आयोजन में हिस्सा लिया. आनंद झुनझुनवाला, जगदीश मूंधड़ा, दुर्गा व्यास, मदनलाल जोशी, बाबूलाल अग्रवाल, विश्वनाथ भुवालका, कैलाश बिहानी, संरक्षक रमेश नांगलिया आदि कई गणमान्य व्यक्ति आयोजन में उपस्थित रहे. संचालन महावीर प्रसाद रावत ने किया.

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