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West Bengal : धूमकेतू की तरह राज्य की राजनीति में उभरी आईएसएफ के अस्तित्व पर उठने लगा है सवाल

West Bengal : राज्य के किसी भी सीट पर आईएसएफ इस बार मजबूत टक्कर नहीं दे पा रही है. खुद आईएसएफ का गढ़ माने जाने वाले भांगड़ को चुनावी सभाओं में भीड़ नहीं हो रही है. नतीजतन कार्यकर्ता और समर्थकों का मनोबल गिर गया है. पार्टी के कई नेता अपने समर्थकों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये हैं.

कोलकाता, नवीन राॅय : कांग्रेस व वामपंथियों के साथ मिलकर राज्य में भाजपा व तृणमूल कांग्रेस को टक्कर देने का दावा करने वाली नव गठित आईएसएफ की मौजूदा स्थिति चर्चा का विषय बन गयी है. वर्ष 2012 में जन्म लेने वाली यह नई नवेली पार्टी कांग्रेस वाममोर्चे के साथ विधान सभा का चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस व वाममोर्चा तो अपना खाता नहीं खोल पाई थी. लेकिन आईएसएफ भांगड़ से अपना प्रतिनिधि विधान सभा में भेजने में सफल रहा. साल 2022 में आईएसएफ के प्रधान नौशाद सिद्दीकी को पुलिस ने गिरफ्तार किया था. इसके बाद से ही उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी थी.

नौशाद ने घोषण की थी कि वह डायमंड हार्बर से अभिषेक बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ेगे

इसके बाद पंचायत चुनाव में तमाम हिंसा के बीच आईएसएफ ने जिस तरह से तृणमूल कांग्रेस को टक्कर दिया,उसकी वजह से भांगड़ के आराबुल इस्लाम जैसा बाहुबली भी सत्ताधारी दल का नेता होने के बावजूद सिमट के रह गये. आईएसएफ ने अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी थी. पंचायत व विधान सभा में अपनी दमदार मौजूदगी दिखाने वाली आईएसएफ लोकसभा चुनाव में हाशिए पर है. लोकसभा चुनाव में नौशाद ने चुनाव के पहले ही एलान किया था कि वह डायमंड हार्बर केंद्र से अभिषेक बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ेगे. अचानक नौशाद चुनाव लड़ने से पीछे हट गये. इसको लेकर उनकी पार्टी में खिलाफ प्रतिक्रिया हुई है. जिसका असर संगठन पर पड़ा है.

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पार्टी के कई नेता अपने समर्थकों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये

हालत यह है कि राज्य के किसी भी सीट पर आईएसएफ इस बार मजबूत टक्कर नहीं दे पा रही है. खुद आईएसएफ का गढ़ माने जाने वाले भांगड़ को चुनावी सभाओं में भीड़ नहीं हो रही है. नतीजतन कार्यकर्ता और समर्थकों का मनोबल गिर गया है. पार्टी के कई नेता अपने समर्थकों के साथ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये हैं. आईएसएफ की ओर से जिस हुसैन गाजी को पांच विधान सभा केंद्रों का संयोजक बनाया गया था. वह पार्टी के साथ अपना संर्पक तोड़ लिये हैं. जबकि तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ भ्रष्टाचार व अन्य आरोप लगाकर विरोधी दल जो घेर रहे थे. उसे काफी हद तक तृणमूल कांग्रेस संभालने में सफल रही है.

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पार्टी फिर से अपने तेवर में नजर आयेगी : नौशाद सिद्दीकी

भांगड़ में कामन शौरत मोल्ला को देने से अराबूल व काइजर अहमद जैसे नेता पर्दे के पीछे चले गये. जिसका सीधा फायदा तृणमूल कांग्रेस को मिला. पार्टी की मौजूदा स्थिति पर चर्चा करने पर नौशाद सिद्दीकी इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं है. उनका कहना है कि उनकी पार्टी का जोश ठंडा नहीं हुआ है. नतीजा आने पर सब कुछ साफ हो जाएगा. पार्टी फिर से अपने तेवर में नजर आयेगी.

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