Lok Sabha Election 2024 : रायगंज लोकसभा क्षेत्र (Lok Sabha Election) से कभी कांग्रेस के दिग्गज नेता सिद्धार्थ शंकर रे सांसद चुने गए थे. बाद में कांग्रेस नेता प्रियरंजन दासमुंशी व उनकी पत्नी दीपा दासमुंशी को लेकर यह क्षेत्र चर्चा में रहा. इस क्षेत्र का समीकरण समझना राजनीतिक दलों के लिए काफी मुश्किल है. राजनीति यहां कब करवट लेगी, यह कहना मुश्किल है. उत्तर दिनाजपुर जिले में स्थित रायगंज उत्तर दिनाजपुर का जिला मुख्यालय है. एक अप्रैल, 1992 को पश्चिमी दिनाजपुर जिले को विभाजित कर यह जिला बना था. यहां दो सब-डिवीजन-रायगंज और इस्लामपुर हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की देवश्री चौधरी ने जीत हासिल की थी
18वीं-19वीं सदी में यह जिला संन्यासी-फकीर विद्रोह का गढ़ रहा था. इस संसदीय क्षेत्र में स्थित रायगंज वन्यजीव अभयारण्य (कुलिक पक्षी अभयारण्य) काफी प्रसिद्ध है. यह एशियाई ओपनबिल्स और अन्य जलपक्षियों का एशिया का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है. कुलिक, नागर, महानंदा आदि प्रमुख नदियां हैं. उत्तर दिनाजपुर जिले की मुख्य फसल धान, जूट, मक्का और गन्ना आदि हैं और यह शहर उत्तर बंगाल के प्रमुख व्यापार केंद्रों में से एक है. इस क्षेत्र की राजनीतिक पृष्ठभूमि किसी जादूगरी से कम नहीं है. यह क्षेत्र कभी कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन बाद में माकपा ने यहां ताकत बढ़ायी. अब यह सीट भाजपा की झोली में है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की देवश्री चौधरी ने टीएमसी उम्मीदवार कन्हैयालाल अग्रवाल को लगभग 60,000 वोटों से पराजित किया था.
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लोकसभा चुनाव को देखें तो चार विस सीटों पर भाजपा ने बनायी बढ़त
यूं तो यहां की सात विधानसभा सीटों में छह पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा है. एक सीट भाजपा की झोली में आयी थी. लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो करणदिघी, कालियागंज, हेमताबाद व रायगंज विस सीटों पर भाजपा ने बढ़त बनायी है. बता दें कि कालियागंज के विधायक सौमेन रॉय और रायगंज के कृष्ण कल्याणी भाजपा के टिकट पर 2021 में निर्वाचित हुए थे, लेकिन बाद में वे तृणमूल में शामिल हो गये.
कभी सिद्धार्थ शंकर रे भी बने थे रायगंज से सांसद
2014 लोकसभा चुनाव में माकपा नेता मोहम्मद सलीम ने कांग्रेस की दीपा दासमुंशी को केवल 1634 वोटों से पराजित किया था. माकपा को 3,17,515 एवं कांग्रेस को 3,15,881 मत मिले थे. राज्य के मुख्यमंत्री रहे सिद्धार्थ शंकर रे इस सीट से कांग्रेस के सांसद रहे थे. वह वर्ष 1971 में इस सीट से सांसद निर्वाचित हुए थे, लेकिन अगले साल 1972 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भारी जीत के बाद वह मुख्यमंत्री बन गये. उन्होंने लोस से इस्तीफा दे दिया. 1972 में उपचुनाव हुआ तो उनकी पत्नी माया राय सांसद बनीं. भारी अंतर से जीत कर. 2024 के लिए अभी तृणमूल को छोड़ बाकी दल यहां हिसाब-किताब में ही लगे हैं.