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पश्चिम बंगाल : शिक्षण संस्थानों में कविराज गंगाधर राय के कार्यों पर रिसर्च

पश्चिम बंगाल : गंगाधर राय कविराज होने के साथ-साथ वह बड़े दार्शनिक, समाज सुधारक और शिक्षाविद थे. आयुर्वेद के क्षेत्र चरक संहिता पर उन्होंने विख्यात टीका जल्पकल्पतरु लिखा था. इस टीका में पांच हजार से अधिक पृष्ठ है और इसे लिखने में करीब 20 वर्ष लगे थे.

By Shinki Singh | April 1, 2024 1:33 PM


कोलकाता, शिव कुमार राउत : पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद एक शाही जिला है, जो अपने इतिहास और संस्कृति से समृद्ध है. भारत में पर्यटन के लिहाज से मुर्शिदाबाद को काफी खास माना जाता है. पर इस जिले से संबंधित कुछ और रोचक तथ्य भी हैं, जिसके विषय में बहुत कम लोग ही जानते हैं. देश की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की आधुनिक काल में उत्थान की कहानी कभी इस जिले में ही लिखी गयी थी. विशिष्ट कविराज गंगाधर राय (Kaviraj Gangadhar Rai) ने मुर्शिदाबाद में रह कर आयुर्वेद ग्रंथों की न केवल रचना की, बल्कि देश में चिकित्सा के प्रचार-प्रसार पर भी जोर दिया था.

100 से अधिक आयुर्वेदिक ग्रंथों की रचना की थी कविराज गंगाधर राय ने

आयुर्वेद के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गये कार्यों को आज भी याद किया जाता है. शोध-विशेषज्ञों के अनुसार कविराज गंगाधर ने अपने जीवन काल में 100 से अधिक आयुर्वेदिक ग्रंथों की रचना की थी. जो आज भी प्रासंगिक हैं. आयुर्वेद के क्षेत्र में गंगाधर द्वारा किये गये कार्यों पर अब देश-विदेश के संस्थानों में रिसर्च हो रहा है.


यहां हो रहा है रिसर्च

गंगाधर राय कविराज होने के साथ-साथ वह बड़े दार्शनिक, समाज सुधारक और शिक्षाविद थे. आयुर्वेद के क्षेत्र चरक संहिता पर उन्होंने विख्यात टीका जल्पकल्पतरु लिखा था. इस टीका में पांच हजार से अधिक पृष्ठ है और इसे लिखने में करीब 20 वर्ष लगे थे. ऐसे महान कविराज द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में किये कार्यों एवं उनके ग्रंथों पर देश के सबसे बड़े संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद के आयुर्वेद पांडुलिपि विभाग में पिछले पांच वर्षों से शोध चल रहा है. वहीं अब ऑस्ट्रिया की वियना यूनिवर्सिटी में भी गंगाधर पर रिसर्च शुरू किया गया है. इस विश्वविद्यालय के साउथ एशियन, तिब्बती और बौद्ध अध्ययन विभाग की ओर से यह रिसर्च किया जा रहा है. यहां के डॉ क्रिस्टीना पेकिया और डॉ सुदीप्त मुंशी शोध कार्य को कर रही हैं.

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कौन थे गंगाधर राय

आयुर्वेद भारत की सदियों पुरानी चिकित्सा प्रणाली है और संभवतः सबसे पुराना चिकित्सा विज्ञान है. आयुर्वेद अभी भी भारत में एक प्रमुख चिकित्सा प्रणाली के रूप में प्रचलित है और विश्व स्तर पर फैल गया है. पर आयुर्वेद की यात्रा सहज नहीं थी. आयुर्वेद के अस्तित्व में अनेक बाधाएं आयीं. सबसे कठिन बाधा भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान आयी थी. ब्रिटिश शासकों ने पारंपरिक भारतीय विरासत और संस्कृति की कीमत पर अपने ज्ञान और संस्कृति का परिचय और स्थापना की.

अब ऑस्ट्रिया की वियना यूनिवर्सिटी ने भी शुरू किया शोध कार्य

भारत में चिकित्सा विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान के रूप में आयुर्वेद को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. कविराज गंगाधर राय और अन्य लोगों के कुशल नेतृत्व के कारण ही भारत में पारंपरिक आयुर्वेदिक ज्ञान की सफलतापूर्वक रक्षा हुई थी. उनका जन्म 9 जुलाई 1798 में बांग्लादेश के जेशोर जिले के मगुरा गांव में हुआ था. पिता भवानीप्रसाद राय नटौर राजबाड़ी के प्रमुख आयुर्वेदिक चिकित्सक थे. पहले उन्होंने अपनी प्रैक्टिस कोलकाता के अमहर्स्ट स्ट्रीट में शुरू किया था, पर स्वास्थ्य समस्याओं के कारण वह पिता के कहने पर मुर्शिदाबाद चले गये थे. गंगाधर नाड़ी परीक्षण में विशेष निपुण थे. गंगाधार की मौत 26 जून 1885 को हुई थी.

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असाध्य बीमारियों का इलाज करने में निपुण थे गंगाधर

मालदा जिले के कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (आयुष) डॉ विश्वजीत घोष ने हमें बताया कि गंगाधर को कठिन से कठिन रोगों को ठीक करने में प्रसिद्धि हासिल थी. उन्होंने बहरमपुर शहर में “गंगाधर निकेतन” नामक एक टोल (शिक्षा केंद्र) की स्थापना की थी. जहां बड़ी संख्या में छात्रों को नि:शुल्क आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती थी. गंगाधर निकेतन में अब राज्य सरकार द्वारा आयुष सुस्वास्थ्य केंद्र चलाया जा रहा है, पर यहां बोर्ड पर गंगाधर राय के नाम का उल्लेख नहीं किया गया है.
क्या कहते हैं शोधकर्ता

प्रो. डॉ असित कुमार पांजा, नोडल ऑफिसर आयुर्वेद मैनुस्क्रिप्टोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद का कहना है कि जयपुर स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद में गंगाधर पर रिसर्च किया जा रहा है. कविराज बहुत बड़े दार्शनिक, शिक्षाविद थे. उन्होंने 100 से अधिक ग्रन्थ लिखी है. पर अब तक आठ रचनाएं ही पुस्तक के रूप में देख रही हैं. संस्कृत में लिखी गयी उनकी रचनाओं की भाषा काफी जटिल है. ऐसे में शोध से गंगाधर की रचनाओं की आधुनिक युगोपयोगी स्वरूप में किया जायेगा. अब शोध के पूरा होने से विश्व के गवेषक व आयुर्वेद की पढ़ाई करने वाले छात्र गंगाधर के विषय में विस्तार से जान सकेंगे. इस संस्थान में 2018 से शोध जारी है. हमें आशा है कि पश्चिम बंगाल सरकार मुर्शिदाबाद जिले में गंगाधर की जीवनी पर आधारित एक अत्याधुनिक म्यूजियम व स्मारक बनायेगी.

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डॉ. सुदीप्त मुंशी, गवेषक वियना यूनिवर्सिटी

गंगाधर की सबसे बड़ी उपलब्धि आयुर्वेद के दार्शनिक आधारों को भारतीय दर्शन के अनुरूप दृढ़ता से समझाकर आयुर्वेद को जीवन के एक विशिष्ट दर्शन के रूप में स्थापित करना था. इस दार्शनिक व्याख्या का न केवल सैद्धांतिक मूल्य है, बल्कि उपचार का व्यावहारिक पहलू अधिक तर्कसंगत है. इसके लिए अंतःविषय दृष्टिकोण से गंगाधर के संपूर्ण साहित्य का व्यापक और आलोचनात्मक अध्ययन आवश्यक है.

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