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प्रशासनिक निर्देश से नहीं छीना जा सकता पेंशन का अधिकार : हाइकोर्ट

कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश राजर्षि भारद्वाज ने पश्चिम बंगाल राज्य भंडारण निगम की निष्क्रियता के खिलाफ एक कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रशासनिक निर्देश से पेंशन का अधिकार नहीं छीना जा सकता.

कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट के न्यायाधीश राजर्षि भारद्वाज ने पश्चिम बंगाल राज्य भंडारण निगम की निष्क्रियता के खिलाफ एक कर्मचारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रशासनिक निर्देश से पेंशन का अधिकार नहीं छीना जा सकता. पेंशन और ग्रेच्युटी केवल इनाम या नियोक्ता द्वारा इसे प्रदान करना कोई उदारता नहीं हैं. एक कर्मचारी अपनी लंबी, निरंतर, वफादार और बेदाग सेवा के कारण ये लाभ अर्जित करता है. न्यायमूर्ति राजर्षि भारद्वाज की पीठ ने कहा कि यह अच्छी तरह से स्थापित है कि प्रशासनिक निर्देश द्वारा पेंशन का अधिकार नहीं छीना जा सकता है. पेंशन कोई अनुग्रह भुगतान नहीं है, बल्कि यह कर्मचारी द्वारा वर्षों तक की जाने वाली सेवा का भुगतान है. गौरतलब है कि याचिकाकर्ता परेशनाथ मुखर्जी को एक आपराधिक मामले में गिरफ्तार किया गया था, जो उसकी नौकरी से संबंधित नहीं था. बाद में उसे आइपीसी की धारा 304(1) के तहत 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनायी गयी और पश्चिम बंगाल सेवा (वर्गीकरण नियंत्रण और अपील) नियम, 1971 के तहत उसे नौकरी से निलंबित कर दिया गया. जमानत पर रिहा होने के बाद उसने निगम से अपना निलंबन हटाने का अनुरोध किया. वहीं, निगम ने परेशनाथ मुखर्जी को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा कि उनको नौकरी से क्यों नहीं बर्खास्त किया जाये? याचिकाकर्ता ने निलंबन और कारण बताओ नोटिस को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया था, लेकिन निचली अदालत ने उसके दोनों आवेदनों को रद्द कर दिया था. इस बीच परेशनाथ सेवानिवृत हो गये, पर सेवानिवृत्ति के लाभ के लिए बार-बार का अनुरोध भी काम नहीं आया. इसके बाद मुखर्जी ने किया. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि निगम याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई और सेवा के दौरान उसके द्वारा निभाये जाने वाले कर्तव्यों के बीच कोई संबंध प्रदर्शित करने में विफल रहा है. अदालत ने निर्देश दिया कि तीन महीने में याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्ति लाभ जारी करने के लिए उचित कदम उठाये.

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