पूरे उत्साह के साथ यौनकर्मियों ने भी किया मतदान
बैद्यबाटी-सेवड़ाफुली नगरपालिका के सात नंबर वार्ड के गढ़बागान इलाके में स्थित विकास चंद्र दां प्राइमरी स्कूल में इस बार चुनाव के दौरान अलग ही माहौल देखने को मिला.
मुरली चौधरी, हुगली
बैद्यबाटी-सेवड़ाफुली नगरपालिका के सात नंबर वार्ड के गढ़बागान इलाके में स्थित विकास चंद्र दां प्राइमरी स्कूल में इस बार चुनाव के दौरान अलग ही माहौल देखने को मिला. सेवड़ाफुली दुर्बार समिति की सचिव एफुरा बेगम और ज्योत्सना दास ने बताया कि यहां लगभग 400 यौनकर्मियों में से लगभग 250 ने स्वेच्छा से मतदान में हिस्सा लिया.बैद्यबाटी-सेवड़ाफुली नगरपालिका के चेयरमैन पिंटू महतो ने बताया कि इस इलाके में करीब 850 वोटर हैं. गढ़बागान में रहने वाले सेक्स वर्कर्स में अधिकतर बाहर से आये हुए हैं, जबकि लगभग 200 लोग स्थाई रूप से यहीं बस गये हैं. पिंटू महतो ने बताया : सभ्य जगत से अलग, अंधेरी गलियों में भले ही इनकी जिंदगी गुजरती हो, लेकिन लोकतंत्र के इस महा उत्सव में यौनकर्मी स्वेच्छापूर्वक हिस्सा ले रही हैं. यहां कभी भी गड़बड़ी नहीं होती है और चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से होता है.
यौनकर्मियों से यह पूछने पर कि वोट देने के बाद उन्हें क्या मिला? क्या मन की शांति मिली? या वोट देने पर नेताओं से कुछ मिलता है? इस पर नाम न छापने की शर्त पर, उन्होंने बताया कि चुनाव के मौसम में नेता और मंत्रियों का आना-जाना बढ़ जाता है. चुनाव के बाद कई बार राजनीतिक रंग बदल जाते हैं. कई बार स्थिर भी रहते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी में कभी कोई बदलाव नहीं आता है. उन्हें कोई सुख-सुविधा भी नहीं मिलती है.
मतदान के दिन सोमवार सुबह इलाके की यौनकर्मियां सुबह-सुबह मतदान केंद्र पर पहुंचीं. लाइन में खड़ी होकर उन्होंने अपना मतदान किया. न कोई झंझट, न कोई झमेला हुआ. मतदान करना था और उन्होंने वही किया. मतदान से लौटकर वे फिर रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर रोजगार की उम्मीद में खड़ी हो गयीं.
यौनकर्मियों ने कहा कि वोट डालने से उनका पेट नहीं भरेगा, इसलिए कमाई करना जरूरी है. उन्हें न तो लक्ष्मी भंडार का लाभ मिलता है, न ही कोई अन्य सरकारी सुविधाएं प्राप्त हैं. यौनकर्मियों ने बताया कि रोज सुबह-शाम लोग उनके पास आते हैं. वे हैं, इसलिए शहर और गांवों की महिलाएं सुरक्षित हैं. राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करते हैं. फिर भी उन्हें हर सुविधाओं से वंचित रखा जाता है. यौनकर्मियों का यह अनुभव बताता है कि लोकतंत्र के इस पर्व में उनकी भागीदारी भले ही उत्साहजनक हो, लेकिन उनके जीवन की कठोर सच्चाई और समस्याएं अब भी वहीं की वहीं हैं.
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