गोरखालैंड की आग में झुलसा पहाड़ पर चाय उद्योग, दोहरी मार झेलने को मजबूर हैं चाय श्रमिक

सिलीगुड़ी. गोरखालैंड आंदोलन की आग में पहाड़ पर पर्यटन उद्योग के बाद अब चाय उद्योग भी झूलसने लगा है. पहाड़ पर आंदोलन के 15 दिनों से भी अधिक बीत जाने की वजह से विश्वविख्यात दार्जीलिंग चाय की खुशबू भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मंद हो गयी है. चाय उद्योग से जुड़े कारोबारियों की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2017 8:22 AM
सिलीगुड़ी. गोरखालैंड आंदोलन की आग में पहाड़ पर पर्यटन उद्योग के बाद अब चाय उद्योग भी झूलसने लगा है. पहाड़ पर आंदोलन के 15 दिनों से भी अधिक बीत जाने की वजह से विश्वविख्यात दार्जीलिंग चाय की खुशबू भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मंद हो गयी है. चाय उद्योग से जुड़े कारोबारियों की माने तो आंदोलन से पहाड़ के समस्त चाय फैक्ट्रियों और बगानों में कामकाज नहीं हो रहा है.

चाय के विशेष जानकार सह सिलीगुड़ी टी ट्रेडर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष त्रिलोक चंद्र अग्रवाल ने चाय उद्योग के अपने वर्षों के तजुर्बे के आधार पर प्रभात खबर को विशेष भेंट में बताया कि प्रत्येक वर्ष यह मौसम चाय पत्ती के सेकेंड फ्लश का होता है. इस चाय की पूरे विश्व में काफी मांग है. इस चाय की कीमत भी उसके गुणवत्ता के आधार पर अच्छी खासी मिलती है. लेकिन इसबार गोरखालैंड आंदोलन ने दार्जीलिंग के सेकेंड फ्लश चाय के कारोबार को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है.

श्री अग्रवाल का मानना है कि अगर पहाड़ पर आंदोलन को जल्द समाप्त नहीं किया गया तो दार्जीलिंग का चाय उद्योग का हाल और भी बुरा हो जायेगा. इसका असर चाय श्रमिकों पर भी काफी पड़ेगा. चाय श्रमिकों पर संकट काफी गहराते जा रहा है. राज्य सभा में माकपा के पूर्व सांसद सह सीटू के दार्जीलिंग जिला अध्यक्ष समन पाठक उर्फ सूरज का कहना है कि आंदोलन से पहाड़ के चाय श्रमिक दोहरी मार झेलने को मजबूर हैं.

श्रमिक पहले से ही न्यूनतम मजदूरी को लेकर मालिकों के शोषण और सरकार की लापरवाही का शिकार हैं. वहीं, 15 दिनों से लगातार आंदोलन ने उनकी कमर ही तोड़ दी है. श्री पाठक का कहना है कि पहाड़ पर चाय उद्योग के बंद होने से उन्हें मजदूरी नहीं मिल रही और उनके सामने खाने-पीने के लाले पड़ गये हैं. उनका कहना है कि अगर सरकार पहाड़ की समस्या का जल्द निपटारा नहीं करती है तो चाय श्रमिकों की जिंदगी और भी नारकीय हो जायेगी.

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