गोरखालैंड आंदोलन: जीटीए के डिप्टी चेयरमैन अनित थापा ने लगाया आरोप, हिंसक राजनीति के कारण विफल हुए गुरुंग
दार्जिलिंग. गोजमुमो के बागी नेता और जीटीए के चेयरमैन विनय तमांग के निकटतम सहयोगी अनित थापा ने पहली बार गोजमुमो अध्यक्ष विमल गुरुंग के खिलाफ प्रेस बयान जारी कर उन पर गंभीर आरोप लगाये हैं. अनित थापा ने कहा है कि गोरखालैंड आंदोलन की नाकामी के पीछे असली वजह अध्यक्ष विमल गुरुंग द्वारा गांधीवादी नीतियों […]
दार्जिलिंग. गोजमुमो के बागी नेता और जीटीए के चेयरमैन विनय तमांग के निकटतम सहयोगी अनित थापा ने पहली बार गोजमुमो अध्यक्ष विमल गुरुंग के खिलाफ प्रेस बयान जारी कर उन पर गंभीर आरोप लगाये हैं. अनित थापा ने कहा है कि गोरखालैंड आंदोलन की नाकामी के पीछे असली वजह अध्यक्ष विमल गुरुंग द्वारा गांधीवादी नीतियों को त्यागकर हिंसक राजनीति रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि विमल गुरुंग ने केंद्र सरकार से गोरखालैंड राज्य गठन के लिए कमेटी गठित करने समेत 11 उपजातियों के लिये जनजाति का दर्जा दिलाने, पहाड़ में केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग रखी. लेकिन इनमें से किसी पर वह ठोस कामयाबी नहीं हासिल कर सके.
जीटीए के डिप्टी चेयरमैन अनित ने आरोप लगाया कि शुरू से ही विनय तमांग का विमल गुरुंग से नीतिगत मतभेद था. ऐसा नहीं है कि अचानक ही आंदोलन हिंसक हो गया. बल्कि विमल गुरुंग की शुरू से ही योजना सुभाष घीसिंग की तरह उग्र व सशस्त्र आंदोलन संचालित कर गोरखालैंड हासिल करना था, जिसमें वह बुरी तरह असफल हुए. इस नीति को सुभाष घीसिंग ने 1986 में अपनाया था, लेकिन वे भी गोरखालैंड राज्य का गठन नहीं करवा सके. आखिर में उन्हें भी समझौता करते हुए दागोपाप से संतोष करना पड़ा. उसी तरह विमल गुरुंग ने भी जो आंदोलन किया था, उसका हश्र जीटीए के रूप में हुआ. आज हालत यह है कि विमल गुरुंग और उनके सहयोगी भूमिगत हैं. अनित थापा ने कहा कि हिंसक राजनीति से तेलंगाना राज्य का भी गठन संभव नहीं होता. फिर क्या विमल गुरुंग ही ने ऐसी नीति अख्तियार कर बड़ी गलती नहीं की?
2007 से 2011 के दौरान गोरखालैंड मसले को केंद्र तक पहुंचाने में कामयाबी विमल गुरुंग को इसलिए मिली कि उनका आंदोलन तब गांधीवादी राह पर चला. हालांकि उनके मन में हिंसक विचार शुरू से रहे हैं.
2013 में तेलंगाना राज्य गठन के बाद उन्होंने दोबारा गोरखालैंड के लिए आंदोलन छेड़ा. उन्होंने इसके लिए जीटीए चीफ के पद से इस्तीफा भी दिया. लेकिन हश्र क्या हुआ? 43 दिन के पहाड़ बंद के बाद उन्हें पुन: जीटीए की व्यवस्था स्वीकार करनी पड़ी. लौटकर फिर से जीटीए का प्रशासन संभाला. 2014 से 2017 के दौरान उन्होंने कभी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से अनुनय-विनय किया तो कभी उन्हें भूतनी तक कहा. यह उनके दोमुंहे चरित्र को दर्शाता है. उन्होंने गोरखालैंड को लेकर कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह व अन्य मंत्रियों से भेंट की. लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें कभी तवज्जो नहीं दी.
इस बार भी जनता आंदोलन में पूरी तरह से शामिल रही, लेकिन आंदोलन के शुरुआत से ही विमल भूमिगत रूप से आंदोलन का नेतृत्व करने लगे. वह आंदोलन को शुरू से ही उग्र व सशस्त्र रूप में चलाना चाहते थे. इसलिये उन्होंने अपने सभासद को पूर्वोत्तर क्षेत्र में आग्नेयास्त्र खरीदने के भेजा और अपने चुनिंदा युवाओं को प्रशिक्षित करना शुरू किया. वास्तव में पहाड़ के तीन जनप्रतिनिधि शहीदों की अंतिम यात्रा में कभी भी शामिल नहीं हुए. ये हैं विमल गुरुंग, रोशन गिरि और सांसद एसएस अहलुवालिया. चूंकि जनता सड़क पर आ गयी थी इसलिए पुलिस प्रशासन को भी पीछे हटना पड़ा था. प्रदर्शनकारियों को जेल में बंद किया गया. लेकिन आंदोलन का नेतृत्व देने के लिए विमल गुरुंग आज तक पातलेबास से दार्जिलिंग शहर आने की हिम्मत नहीं जुटा सके हैं. अपने सहयोगियों को भी उन्होंने भूमिगत रहते हुए उग्र आंदोलन और अलोकतांत्रिक क्रियाकलापों के लिये उकसाते रहे हैं. इससे राज्य पुलिस को भी इनके खिलाफ गंभीर मामले दर्ज करने का अवसर मिला. आंदोलन के दौरान पुलिसकर्मियों पर पथराव करने से ही पुलिस को फायरिंग का मौका मिला. इससे हमारे कई साथियों को अपनी जान देनी पड़ी. विमल गुरुंग भी अपने समर्थकों को ‘माटी खून मांग रही है, तुम्हें उसे अपना खून देना होगा’ जैसे उग्र नारे देते रहे.
विनय तमांग ने अनशन पर बैठने की इच्छा जतायी थी. लेकिन विमल गुरुंग ने उन्हें ऐसा करने से मना किया. विनय ने आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से चलाने का सुझाव दिया जिसे उन्होंने अनसुना कर दिया. दरअसल, विमल गुरुंग शुरू से ही अपने समर्थकों की बातों को महत्व देते रहे. उनके लोग विनय तमांग और अनित थापा के खिलाफ अनापशनाप बोलते रहे और अध्यक्ष उन पर गौर करते रहे. उन्होंने अपने सच्चे और कर्मठ कार्यकर्ताओं पर कभी भरोसा ही नहीं किया. पहाड़ में हुए सीरियल बम ब्लास्ट विमल गुरुंग के लिए घातक साबित हुए. वहीं से उनका पतन शुरु हुआ. अब समय आ गया है कि विमल जंगल से निकलकर आंदोलन का नेतृत्व देने बाहर आयें. जरूरत पड़ी, तो इसके लिए उसी तरह गिरफ्तार होने के लिये तैयार रहें, जिस तरह से पिछले आंदोलन में विनय तमांग समेत 120 समर्थक गिरफ्तार हुए थे.
संयाेग से पहाड़ के नेता बन गये गुरुंग
अनित का कहना है कि विमल गुरुंग राजनैतिक संयोग से पहाड़ के नेता बन गये. उन्होंने 2007 में इंडियन आइडल प्रशांत तमांग के प्रकरण को लेकर गोरखा जाति को एकजुट कर लोकप्रियता हासिल की. दरअसल, सुभाष घीसिंग के खिलाफ जन आक्रोश का नेतृत्व देने के चलते ही वह राजनीति के क्षितिज पर यकायक चमक गये. सुभाष घीसिंग भी अपने 21 वर्ष के कार्यकाल के एकाउंट का ऑडिट कराने से बचते रहे. इसी वजह से उन्होंने विमल गुरुंग के लिए राजनीतिक नेतृत्व छोड़ दिया.