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सत्संग से ही होता है कल्याण : हुजूर कवंर

सिलीगुड़ी: धर्म गुरु हुजूर कवंर साहब जी महाराज (हरियाणा वाले)इनदिनों सिलीगुड़ी दौरे पर हैं. स्थानीय प्रधान नगर के निवेदिता रोड संलग्न राधास्वामी आश्रम में उनका सत्संग व भजन-कीर्तन कार्यक्रम आयोजित हो रहा है. इसी दौरान आज एक खास मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि सत्संग से ही लोगों का कल्याण होता है.इसके लिए आत्मा शुद्ध […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 26, 2014 8:49 AM

सिलीगुड़ी: धर्म गुरु हुजूर कवंर साहब जी महाराज (हरियाणा वाले)इनदिनों सिलीगुड़ी दौरे पर हैं. स्थानीय प्रधान नगर के निवेदिता रोड संलग्न राधास्वामी आश्रम में उनका सत्संग व भजन-कीर्तन कार्यक्रम आयोजित हो रहा है.

इसी दौरान आज एक खास मुलाकात के दौरान उन्होंने कहा कि सत्संग से ही लोगों का कल्याण होता है.इसके लिए आत्मा शुद्ध होनी चाहिए.रूह की पवित्रता के लिए सत्संग आवश्यक है. इंसानों की बुराईयां दूर करने के लिए सत्संग बहुत ही सरल मार्ग है. सत्संग में अच्छे गुण अपनाने के महत्व को समझाया जाता है.

जब इंसान की आत्मा निर्मल होगी, अपने आप ही उसका मिलन परमात्मा से हो जायेगा. गृहस्थ एवं आध्यात्म में समानताएं व अंतर पर अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि आज तक जितने भी सच्चे संत हुए हैं, उनका जुड़ाव पहले प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से गृहस्थ जीवन से रहा है. भक्ति करने के लिए गृहत्याग करने या गृहस्थ जीवन छोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. बल्कि बुराईयों को त्याग कर एवं अपने कर्तव्य को ईमानदारी पूर्वक निभाते हुए जीवन यापन करना भी एक तरह से धार्मिक कार्य ही है. उन्होंने बताया कि धर्म व अध्यात्म के साथ गृहस्थ जीवन जी रहे लोगों को जोड़े रखने का एक मात्र माध्यम गुरु ही हैं.

कई धर्म गुरुओं के मोह, माया व काम में फंसे होने के सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि ऐसे गुरुओं के कारण ही धर्म बदनाम हो रहा है. बाबा-गुरु का चोला पहन कर ऐसे लोग धर्म की आड़ में अपना अवैध कारोबार चलाते हैं, जो उचित नहीं है. ऐसे पाखंडियों से लोगों को सतर्क रहना चाहिए. सच्चे गुरु की पहचान के सवाल पर उन्होंने कहा कि जो गुरु बाबा का चोला धारण कर हमेशा मोह-माया व काम में लिप्त रहें, वह कभी गुरु नहीं हो सकता. सच्चे संत व गुरु की पहचान तप, त्याग व साधना है. कुछ कथित गुरुओं के कारण अब भक्त सच्चे गुरुओं पर भी संदेह करने लगे हैं और उनका विश्वास कम होते जा रहा है. आज के इस कलियुगी दौर में कुछ लोगों ने गुरु -शिष्य की परिभाषा ही बदल दी है. धर्म व राजनीति में सामंजस्य के सवाल पर उन्होंने कहा कि मेरे विचार से धर्म में कभी भी राजनीति का सामंजस्य नहीं होना चाहिए. आज के दौर में कुछ लोग बाबा गुरुओं का चोला पहन कर अध्यात्म की जगह राजनैतिक बातें कर रहे हैं. वह धर्म की आड़ में अपनी राजनीति सेंक रहे हैं.

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