अलग राज्य के गठन में कई बाधाओं का हवाला, अब सवा करोड़ गोरखाओं की बात करने में जुटी भाजपा
सिलीगुड़ी: दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में जारी आंदोलन के बीच भाजपा ने सिर्फ पहाड़ के 10 से 12 लाख गोरखाओं की नहीं बल्कि पूरे देश में रह रहे सवा करोड़ गोरखाओं के हक और सुरक्षा की बात की है. इससे जाहिर है कि पहाड़ पर गोरखालैंड राज्य की मांग को […]
सिलीगुड़ी: दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में जारी आंदोलन के बीच भाजपा ने सिर्फ पहाड़ के 10 से 12 लाख गोरखाओं की नहीं बल्कि पूरे देश में रह रहे सवा करोड़ गोरखाओं के हक और सुरक्षा की बात की है. इससे जाहिर है कि पहाड़ पर गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर आंदोलन की अगुवाई कर रहे गोजमुमो के विमल गुरूंग को तगड़ा झटका लगा है.
हाल में ही में हुए आंदोलन तथा 104 दिनों तक पहाड़ बंद के दौरान हुई हिंसक घटनाओं को लेकर एक दर्जन से भी अधिक मुकदमा दर्ज होने के बाद श्री गुरूंग भूमिगत हो गए हैं और सुप्रीम कोर्ट में उनका मुकदमा चल रहा है. गोजमुमो में भी इसबीच दो भाग हो चुका है. विमल गुरूंग से अलग होकर विनय तमांग गोजमुमो के बॉस बने हैं. उन्होंने अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन को तिलांजलि दे दी है. जबकि विमल गुट के तमाम नेता यो तो गिरफ्तार हो चुके हैं या फिर भूमिगत हो गए हैं. इसलिए विमल गुट के किसी नेता से इस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पा रही है. भाजपा के इस नये स्टैंउ का अंदाजा हाल में संपन्न भाजपा में गोरखा पदाधिकारियों की बैठक के बाद लगा है. सिलीगुड़ी में दो दिनों पहले ही भाजपा के गोरखा पदाधिकारियों की एक बैठक हुई थी. इसमें कई प्रस्ताव पारित किए गए.
मिली जानकारी के अनुसार इस प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत के सवा करोड़ से ऊपर गोरखाओं के राष्ट्रीय पहचान संकट के मुद्दे पर बहुत सालों से आन्दोलन चल रहा है. राष्ट्रीय पहचान सुनिश्चित न होने के कारण अपनी ही मातृभूमि में राष्ट्रभक्त गोरखा जाति के लोग खुद को दोयम दर्जे का नागरिक और असुरक्षित महसूस करते हैं. बैठक में पारित प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि राष्ट्रीय शासन में भागीदारी ही एक ऐसा उपाय है जिससे गोरखाओं की राष्ट्रीय पहचान पुख्ता की जा सकती है. गोरखालैंड की मांग के आधार में भी मूलत: यही सोच है .हांलाकि इस मांग में कई बाधाएं भी है. प्रस्ताव में साफ कहा गया है कि दार्जिलिंग पहाड़ पर अलग राज्य बनने से देश की सुरक्षा को खतरा होने की आशंका है. उसमें कहा गया है कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील अन्तरराष्ट्रीय सीमान्त क्षेत्र में गोरखालैंड जैसे छोटे राज्य के गठन से राष्ट्रीय सुरक्षा में आंच आने की आशंका और बंगाल के साथ सत्ता-संघर्ष की संभावना है.इसके साथ ही गोरखाओं की राष्ट्रीय पहचान और राजनैतिक सुरक्षा की इस मांग में भारत के डेढ़ करोड़ में से केवल 10-12 लाख गोरखाओं को ही प्रत्यक्ष लाभ मिलने की संभावना है. इससे भी नया राज्य का बन पाना संभव नहीं दिखता.