दार्जिलिंग-सिक्किम का हो एकीकरण

मांग. कर्सियांग में गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्थापना दिवस पर उठायी आवाज, कहा कर्सियांग : गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस ने कर्सियांग में अपना सोलहवां स्थापना दिवस मनाया. भरत दोंग की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य को-आर्डिनेटर सुबोध पाखरीन ने बाद में पत्रकारों से कहा कि पहले से ही हम जनता के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 9, 2018 7:01 AM

मांग. कर्सियांग में गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस ने स्थापना दिवस पर उठायी आवाज, कहा

कर्सियांग : गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस ने कर्सियांग में अपना सोलहवां स्थापना दिवस मनाया. भरत दोंग की अध्यक्षता में आयोजित कार्यक्रम में गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य को-आर्डिनेटर सुबोध पाखरीन ने बाद में पत्रकारों से कहा कि पहले से ही हम जनता के बीच जनसभा का आयोजन कर स्थापना दिवस मनाया करते थे. परंतु इस वर्ष दार्जिलिंग में जनसभा करने की प्रशासनिक अनुमति नहीं मिलने से यहां छोटा कार्यक्रम करना पड़ा.उन्होंने कहा कि दार्जिलिंग में गणतंत्र नहीं है. यहां राजतंत्र व एकतंत्र है.दार्जिलिंग बंगाल का अभिन्न भूभाग नहीं है. अद्भुत व्यवस्थाओं के बीच हम घिरे हैं.अभी भी हम बंगाल के दासत्व में जी रहे हैं.
श्री पाखरीन ने कहा कि दार्जिलिंग में कानून अधिक व न्याय कम है. गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस सिक्किम -दार्जिलिंग एकीकरण के पक्ष में है.पार्टी के प्रमुख सलाहकार निमा लामा ने कहा कि गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन 7 जनवरी 2004 को सिक्किम-दार्जिलिंग एकीकरण की मांग को लेकर लेकर स्वर्गीय डीके बम्जन ने किया था. परंतु षड्यंत्र कर इस मुद्दे को अधर में लटका दिया गया है जबकि भारत सरकार ने भी सिक्किम -दार्जिलिंग एकीकरण को अपने एजेंडे में शामिल किया है. वर्ष 2013 में कई केंद्रीय मंत्रियों ने इसको लेकर साकारात्मक आश्वासन दिया था.
श्री लामा नें दार्जिलिंग पहाड़ी क्षेत्र की समस्याओं के यथाशीघ्र समाधान की भी मांग की. उन्होंने कहा कि हमें बंगाल से मुक्ति चाहिए. मुक्ति का सरल उपाय सिक्किम -दार्जिलिंग एकीकरण ही है.सभा के अध्यक्ष भरत दोंग ने कहा कि ऐतिहासिक दस्तावेजों के आधार पर यह भूभाग हमारा है. हमें अपना भूभाग चाहिए.गोरखालैंड को भावनात्मक मांग की संज्ञा देते हुए उन्होंने कहा कि यह भावना से प्रेरित मांग है.
उन्होंने कहा कि हाल ही में दार्जिलिंग पहाड़ पहाड़ पर 105 दिन का बंद अलग राज्य की मांग को लेकर हुआ. गांधीजी ने भी आंदोलन किया था. वे जंगल में नहीं गये थे. परंतु यहां गांधीवादी तरीके से आंदोलन करने वाले नेता को जंगल जाने को मजबूर होना पड़ा.श्री दोंग ने कहा कि 9 अगस्त1986 के दिन जब केंद्र शासित प्रदेश देने की बात केन्द्र सरकार ने की थी तो गोरामुमो के संस्थापक अध्यक्ष व पार्टी सुप्रीमो स्वर्गीय सुवास घीसिंग ने कहा था कि यह तो असभ्य लोग लेंगे,हम नहीं लेंगे. स्वर्गीय घीसिंग ने कहा था कि भारत सरकार कभी भी गोरखालैंड नहीं दे सकती. हमें समझ में आ गया. परंतु कुछ लोगों गोरखालैंड को मांग कर खानेवाला बर्तन बना दिया है.
गोरखालैंड की मांग देहरादून जाकर करें
दार्जिलिंग में सात लाख तो उत्तराखंड में 65 लाख गोरखा
श्री दोंग ने कहा कि यदि गोरखालैंड की मांग करनी हो तो देहरादून में करना चाहिए. कारण यहां 60 लाख नेपालियों की संख्या है. दार्जिलिंग में तो मात्र 7 लाख नेपाली हैं. गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अमर लक्सम ने कहा कि जनता के बीच हमारी बातों को नहीं रखने देने के लिए प्रशासनिक अनुमति नहीं दी गयी. दार्जिलिंग प्रशासन की हम घोर भत्सर्ना करते हैं. बंगाल से अलग होने का एक ही सरल व सहज उपाय सिक्किम -दार्जिलिंग एकीकरण है. उन्होंने जनता को खुले रूप से इसका समर्थन करने का आह्वान भी किया.

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