उत्पादन बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने झोंकी ताकत
उत्तर बंगाल में भी तीन स्थानों पर परियोजना की शुरुआत जमकर खाइए और खिलाइए मछली भात मयना मॉडल को अन्य स्थानों पर लागू करने की तैयारी मोहन झा सिलीगुड़ी : पश्चिम बंगाल का मुख्य भोजन ही चावल और मछली है. राज्य में मछली की भारी मांग है और इसकी आपूर्ति करना मुश्किल हो गया है. […]
उत्तर बंगाल में भी तीन स्थानों पर परियोजना की शुरुआत
जमकर खाइए और खिलाइए मछली भात
मयना मॉडल को अन्य स्थानों पर लागू करने की तैयारी
मोहन झा
सिलीगुड़ी : पश्चिम बंगाल का मुख्य भोजन ही चावल और मछली है. राज्य में मछली की भारी मांग है और इसकी आपूर्ति करना मुश्किल हो गया है. मछली उत्पादन करने वाले किसान व मत्स्य विभाग भी अधिक मांग को पूरी करने में विफल है. अभी भी राज्य में कुल उत्पादन से 17 लाख मिट्रिक टन मछली की मांग अधिक है. पड़ोसी राज्य बिहार और आंध्र प्रदेश इसकी भरपाई कर रहे हैं.
मछली उत्पादन में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने के लिए राज्य सरकार कई योजनाओं पर काम कर रही है. इसी क्रम में सरकार ने मयना मॉडल तैयार किया है. राज्य के पश्चिम मेदिनीपुर जिले में मयना नामक स्थान पर मछली उत्पादन का काम शुरू हुआ है. अब सरकार का ध्यान उत्तर बंगाल पर गया है.उत्तर बंगाल के तीन जिले में मयना मॉडल योजना की शुरूआत फरवरी महीने से की जायेगी. वर्ष 2020 तक मछली उत्पादन में राज्य को आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य लेकर सरकार ने प्रति वर्ष 18.50 लाख मिट्रिक टन मछली उत्पादन कराने की योजना बनायी है.
बंगाल मछली उत्पादन में देश में अग्रणी रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से मछली उत्पादन की गलत पद्धति व योजना के अभाव में उत्पादन काफी गिर गया है. मछली की मांग को पूरा करने के लिए बिहार व आंध्र प्रदेश से बड़ी मछलियों से साथ ही झींगा व अन्य छोटी मछलियों को मंगाया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि मयना पश्चिम मेदिनीपुर जिले में है.
यहां व्यापक स्तर पर मछली उत्पादन का काम हो रहा है. इस क्षेत्र में रेहू, कतला व मृगा मछली का उत्पादन किया जा रहा है. राज्य मत्स्य विभाग ने भी मयना क्षेत्र के मछली उत्पादक किसानों को काफी सहायता मुहैया करायी है. यहां का उत्पादन प्रतिशत देखकर सरकार ने मयना मॉडल को लांच किया है. उत्तर बंगाल के दक्षिण दिनाजपुर, कूचबिहार व मालदा में मयना मॉडल परीक्षण के तौर पर लांच किया जा रहा है. इसके अतिरिक्त राज्य के नदिया, कल्याणी आदि क्षेत्रों में इस मॉडल की शुरूआत की जा रही है. इस योजना के अंतर्गत आने वाले किसानों को तीन वर्ष तक उत्पादन करना होगा.
मत्स्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार मयना मॉडल के तहत पांच हेक्टेयर वाले तालाबों का चयन किया गया है. दक्षिण दिनाजपुर में पांच हेक्टेयर वाली तीन यूनिट, कूचबिहार में पांच हेक्टेयर वाली तीन यूनिट और मालदा में पांच हेक्टेयर की एक यूनिट का लगाने का निर्णय लिया गया है. उत्पादकों को 45 लाख 55 हजार रुपए प्रति यूनिट आवंटित किये गये हैं. मत्स्य विभाग मयना मॉडल के तहत उत्पादन करने वाले किसानों को पहले वर्ष रेहू, कतला और मृगा मछली का चारा मुहैया करायेगी. इसके साथ ही मछली के वर्ष भर का खाद्य व सुरक्षा के अन्य उपकरण भी प्रदान किये जायेंगे.
क्या कहते हैं अधिकारी
उत्तर बंगाल मत्स्य विभाग के अतिरिक्त निदेशक आर फोनिंग लेप्चा ने बताया कि वर्तमान में करीब 5 लाख मिट्रिक टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मछली का उत्पादन किया जा रहा है, जबकि 8 से 10 लाख मिट्रिक टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
उत्पादन को दोगुना करने के उद्देश्य से मयना मॉडल के तहत किसानों को एरिवेटव मशीन भी मुहैया करायी जायेगी. यह मशीन तालाब में ऑक्सीजन को बनाये रखती है जिसकी वजह से उत्पादन काफी अधिक होने की संभावना रहती है. श्री लेप्चा ने आगे बताया कि मयना मॉडल के तहत उत्पादन करने वाले किसानों को पहले वर्ष हर सुविधा मत्स्य विभाग की ओर से मुहैया करायी जायेगी. दूसरे वर्ष से किसान मछली बेचकर स्वयं उत्पादन बढ़ायेंगे. उन्होंने बताया कि वित्तीय वर्ष 2017-18 में ही मयना मॉडल की अनुमति दे दी गयी थी. अनुमति मिलते ही इस योजना पर कार्य शुरू किया गया. इस मॉडल के तहत पूरे राज्य में तालाबों का चयन कर लिया गया है. फरवरी महीने की शुरूआत से तालाबों में मछली का जीरा छोड़ने का काम शुरू कर दिया जायेगा.
बड़ी मछलियों की मांग अधिक
इधर, दो किलो से अधिक भार वाली मछलियों का उत्पादन राज्य में कम हो रहा है. शादी व अन्य कार्यक्रमों में बड़ी मछलियों की मांग काफी होती है. इसकी भरपाई करने के लिए बिहार व आंध्र प्रदेश से बड़ी मछलियों का आयात कराया जाता है. सरकार ने बड़ी मछलियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी कदम बढ़ाया है.
इसके लिए मत्स्य विभाग ने मल्टीपल हार्वेस्टिंग व मल्टीपल स्टॉकिंग की योजना बनायी है. इस योजना के तहत पहले वर्ष किसान को मछली का जीरा व दो वर्ष की खाद्य सामग्री मुहैया करायेगी. हालांकि इस योजना के तहत किसानों का मत्स्य विभाग के साथ दो वर्ष तक तालाब से मछली न निकलाने का एग्रीमेंट किया जायेगा.
दो वर्ष में दो किलो से अधिक वजन की मछलियां तैयार हो जायेंगी. श्री लेप्चा ने बताया कि बिग फीस कल्चर के लिए उत्तर बंगाल के मालदा और कूचबिहार में 200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में तालाब निर्धारित किया गया है. इसके लिए प्रति हेक्यटेयर 7 लाख 75 हजार रुपये आवंटित किये जायेंगे.