पुलिस ने फंड नहीं होने का रोना रोया
सिलीगुड़ी : तस्करी से राजस्थान के जहाजों कहने का मतलब है ऊंट को बचा तो लिया गया लेकिन अब इन्हें मौत से कौन बचायेगा यह देखने वाली बात होगी. कई तो मरने की अवस्था में चले गये हैं तो कुछ पागलों की तरह चिल्लाते हैं. इनकी आवाज से इलाके के लोगों की नींद हराम हो गयी है. इलाकाई लोगों ने ऊंटों की देखरेख की मांग प्रशासन से की है.
जबकि पुलिस प्रशासन ने नियमों की आड़ में अपना पल्ला झाड़ लिया है. यहां बता दें कि करीब 22 दिन पहले बीएसएफ ने 12 ऊंटों को तस्करों के हाथ से बचाया था. इस मामले में दो लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी. बाद में बीएसएफ ने ऊंटों व तस्करों को सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नरेट की न्यू जलपाईगुड़ी थाने को सौंप दिया था.
पुलिस ने आरोपियों को अदालत में पेश कर निर्देशानुसार ऊटों को फूलबाड़ी के आमायीदिघी स्थित एक ख्वार में रखवा दिया. बाद में आरोपियों को भी जमानत मिल गयी. लेकिन रेगिस्तान के ये जहाज अब भूखे मरने के कगार पर हैं. सिर्फ 12 ऊटों की ही बात नहीं है, बल्कि जानकारी के मुताबिक पूरे उत्तर बंगाल में ऐसे कुल 44 ऊंट हैं, जिन्हें तस्करी होने से बचाया गया था. कुछ ऊंटो को हुजूर साहब के मेले तो कुछ को बांग्लादेश पहुंचाने की योजना थी. अदालत के निर्देशानुसार ऊटों को ख्वार में रखा तो गया लेकिन इनके खाने-पीने का कोई इंतजाम नहीं किया गया. ख्वार प्रबंधन इस चिंता में इन्हें खाना-पीना नहीं दे रही है कि रुपया कौन देगा.
आलम यह है कि भूख से ये बेजुबान जानवर अब मौत का इंतजार कर रहे हैं. इनके पेट की ज्वाला अब इस कदर दहक रही है कि इलाकावासियों की नींद हराम है. कामकाज में दिन तो गुजर जाता है लेकिन रात में ऊंटों की आवाज बर्दाश्त करना इलाकाई लोगों के लिए भी मुश्किल हो रहा है.
क्या कहते हैं डिप्टी पुलिस कमिश्नर
पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जांच में ये सभी ऊंट राजस्थान के पाये गये हैं. अदालत ने किसी स्वेच्छा सेवी संस्था के माध्यम से इन ऊटों को वापस भेजने का निर्देश दिया है. राजस्थान की एक संस्था से संपर्क किया गया है. उनका एक प्रतिनिधि सुदीप चौधरी उत्तर बंगाल पहुंचा भी है. वह उत्तर बंगाल के विभिन्न इलाकों में जब्त किये गये ऊटों को एकत्र करने में जुटा है. पशुधन शोध केंद्र से इन ऊंटों के फिटनेस सर्टिफिकेट की आवश्यकता हैं. अब तक केवल 4 ऊंट के सर्टिफिकेट मिले हैं. ऊंट के खाने-पीने, दवा-दारू के संबंध में सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नरेट के डिप्टी पुलिस कमिश्नर गौरव लाल ने कहा कि अदालत ने जिस संस्था को सौंपा है यह उनकी जिम्मेदारी है. पुलिस को इनकी देखरेख, खाना-पीना व इलाज के लिए फंड नहीं मिलता है. फिर भी वे अपने स्तर पर व्यवस्था करने का प्रयास करेंगे.