ओपीडी से अक्सर नदारद रहते हैं फिजियो-थैरेपिस्ट

बालुरघाट: जिला अस्पताल के ओपीडी से अक्सर फिजियो-थैरेपिस्ट के गैरहाजिर रहने के आरोप लग रहे हैं. इस वजह से यहां आने वाले दिव्यांगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है. आरोप है कि फिजियो-थैरेपिस्ट अस्पताल से अधिक ध्यान अपने व्यक्तिगत व्यवसाय पर दे रहे हैं. फिजियो-थैरेपिस्ट शाश्वत कुंडू पर आरोप है कि सुबह 9 बजे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 26, 2018 2:15 AM
बालुरघाट: जिला अस्पताल के ओपीडी से अक्सर फिजियो-थैरेपिस्ट के गैरहाजिर रहने के आरोप लग रहे हैं. इस वजह से यहां आने वाले दिव्यांगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही है. आरोप है कि फिजियो-थैरेपिस्ट अस्पताल से अधिक ध्यान अपने व्यक्तिगत व्यवसाय पर दे रहे हैं.
फिजियो-थैरेपिस्ट शाश्वत कुंडू पर आरोप है कि सुबह 9 बजे से लेकर दोपहर दो बजे तक खुले रहने वाले ओपीडी के 17 नंबर कमरे से वह अक्सर अनुपस्थित रहते हैं. उल्लेखनीय है कि ज्यादातर दिव्यांग दिव्यांगता प्रमाणपत्र लेने और उनका नवीकरण कराने के लिये आते हैं. हालांकि आधा दिन इंतजार में बिताने के बावजूद उन्हें बैरंग वापस जाना पड़ता है.
वहीं, आरोप के घेरे में फिजियो-थैरेपिस्ट ने अपने उपर लगे आरोपों से इंकार करते हुए कहा है कि कभी कभी अस्पताल के काम से ही उन्हें सुपर स्पेशलियटी अस्पताल जाना पड़ता है. अक्सर अनुपस्थित रहने का आरोप बेबुनियाद है.
जानकारी अनुसार जिला अस्पताल में दो फिजियो-थैरेपिस्ट हैं. इनमें से एक हृदयानंद साई अस्पताल के बाहर विभिन्न शिविरों के आयोजन में व्यस्त रहते हैं. दूसरे शाश्वत कुंडू ओपीडी के दायित्व में हैं.
सारा बांग्ला प्रतिबंधी कल्याण समिति के सचिव नारायण चंद्र महंत ने बताया कि शाश्वत कुंडू का अस्पताल के बाहर उनकी दवाखाना और कई अन्य व्यवसाय हैं. ज्यादातर समय वह वहीं देते हैं. अक्सर वे ओपीडी से नदारद रहते हैं. जब कभी कभार मिल जाते हैं तो दिव्यांगों से उनका व्यवहार अत्यंत रुखा होता है. प्रमाणपत्र के लिये तारीख पर तारीख दी जाती है. इस तरह से दिव्यांगों को परेशान किया जाता है. प्रमाणपत्र नहीं मिलने या उनका नवीकरण नहीं होने से दिव्यांगों को उनकी सरकारी सुविधाओं से वंचित होना पड़ता है.
इस बारे में फिजियो-थैरेपिस्ट शाश्वत कुंडू ने आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए कहा कि वह नियमित रुप से ओपीडी में मौजूद रहते हैं. चूंकि उन्हें अकेले ही ओपीडी संभालना पड़ता है इसलिये कभी कभी अनुपस्थित होना उनकी मजबूरी हो जाती है. वे सरकारी काम से ही दस मंजिले पर स्थित सुपर स्पेशलियटी अस्पताल चले जाते हैं तो वहां पर देर हो जाती है. कभी कभी उन्हें बाहर शिविर में जाना पड़ता है.

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