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अभिव्यक्ति के खतरों के बीच प्रेमचंद हैं प्रेरणा

सिलीगुड़ी : उत्तरबंग हिंदी ग्रंथागार की ओर से प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में ‘आलोचना के बदलते प्रतिमान और प्रेमचंद’ विषय पर सिलीगुड़ी के दागापुर स्थित माउंटेन ग्रीन क्लब के सभागार में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. अपने विचार व्यक्त करते हुए कवि कालिका प्रसाद सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की आजादी पर […]

सिलीगुड़ी : उत्तरबंग हिंदी ग्रंथागार की ओर से प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में ‘आलोचना के बदलते प्रतिमान और प्रेमचंद’ विषय पर सिलीगुड़ी के दागापुर स्थित माउंटेन ग्रीन क्लब के सभागार में संगोष्ठी का आयोजन किया गया. अपने विचार व्यक्त करते हुए कवि कालिका प्रसाद सिंह ने कहा कि वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की आजादी पर जो अघोषित इमरजेंसी लगी है, उसमें प्रेमचंद का लेखकीय व्यक्तित्व एक प्रेरणा है.
साहित्यकार देवेंद्रनाथ शुक्ल ने ‘तिलस्मी राजकुमार’ से लेकर ‘कफन’ कहानी तक प्रेमचंद के लेखन में आये बदलाव रेखांकित किया. कवयित्री रंजना श्रीवास्तव ने प्रेमचंद के साहित्य संबंधी आलोचना के प्रतिमानों के केंद्र में यथार्थवादी अवधारणाओं को महत्वपूर्ण बताया और कहा कि प्रेमचंद स्वयं का अतिक्रमण करने वाले विरल कथाकार हैं. बानरहाट गवर्नमेंट कॉलेज के प्रोफेसर रहीम मियां ने मार्क्सवादी व जनवादी आलोचना के तहत प्रेमचंद के साहित्य को देखने की पैरवी की.
डॉ ओम प्रकाश पांडे ने आलोचकीय प्रतिमान की मौलिक जरूरत को यह कहकर प्रस्तुत किया कि आलोचक रचना के साथ कसाई का काम ना करें. रचना में निहित मूक स्वर को केंद्र में लाते हुए देखने की जरूरत है.
डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह ने प्रेमचंद के साहित्य को वर्तमान नव- साम्राज्यवादी परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता की कसौटी पर परखने का संदेश दिया. उन्होंने चिंता जाहिर की कि तंत्र के कर्णधारों की क्रूरता आज के दौर में इस कदर बढ़ चली है कि अभिव्यक्ति स्वयं खतरे में दिख रही है. प्रेमचंद ने जिस मानवतावादी मूल्यबोध की सर्जना की, उसे लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है.
जयगांव कॉलेज की प्रोफेसर सरोज कुमारी शर्मा ने रचनाकार प्रेमचंद के अन्य विचारधाराओं से प्रभावित दृष्टिकोण के साथ आलोचकों द्वारा प्रदत्त प्रतिमानों के साथ व्यावहारिक धरातल पर आनुपातिक संयोग की पड़ताल को जरूरी बताया. अभय नारायण श्रीवास्तव ने प्रेमचंद की लोकप्रियता को व्यावहारिक धरातल प्रदान करते हुए आलोचकीय दृष्टि समृद्ध करने पर बल दिया.
ग्रंथागार के उपाध्यक्ष प्रोफेसर अजय कुमार साव ने प्रेमचंद के सृजन कर्म से जुड़े आलोचकीय प्रतिमानों के तहत अत्यंत ही चर्चित आदर्शवाद, आदर्शोन्मुख यथार्थवाद, और मार्क्सवाद को केंद्र में रखा. उन्होंने कहा कि कमल किशोर गोयनका जैसे आलोचक जब प्रेमचंद की मार्क्सवादी रचना दृष्टि को खारिज करते हैं और कैदी, जिहाद, बालक जैसी कहानियों के आधार पर जिस मानवता को स्थापित कर आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को आलोचना का प्रतिमान बनाना चाहते हैं, वास्तव में वह एक भावुक प्रतिक्रिया मात्र है.
इस अवसर पर शिक्षिका वंदना गुप्ता, आरती साह, गजलकार बबिता अग्रवाल, व्यंग्यकार करन सिंह जैन, पत्रकार इरफान और सिलीगुड़ी महाविद्यालय के विद्यार्थी अपनी सक्रिय सहभागिता निभाते रहे. संगोष्ठी का कुशल संचालन सिलीगुड़ी महाविद्यालय के हिंदी विभाग में अतिथि अध्यापक ब्रजेश कुमार चौधरी ने किया.

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