उम्रकैद का आरोपी निकला बेगुनाह

कोलकाता : कहते हैं कि भले ही सौ दोषी छूट जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए. बिमलेंदु मंडल के मामले में भी यह सच हुआ लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. उन्होंने अपनी जिंदगी के 14 साल जेल में गुजारे. पत्नी की हत्या के मामले में लगे आरोपों पर लोअर कोर्ट के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 8, 2018 2:07 AM
कोलकाता : कहते हैं कि भले ही सौ दोषी छूट जाएं लेकिन एक बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए. बिमलेंदु मंडल के मामले में भी यह सच हुआ लेकिन तबतक देर हो चुकी थी. उन्होंने अपनी जिंदगी के 14 साल जेल में गुजारे. पत्नी की हत्या के मामले में लगे आरोपों पर लोअर कोर्ट के फैसले पर कोलकाता हाइकोर्ट ने दखल दिया, जिसके बाद बिमलेंदु की रिहाई गत 30 जुलाई को होनी थी. लेकिन जब तक फैसला आया तब तक वह मर चुके थे. रिहाई से दो वर्ष पहले ही उनकी मौत हो गयी थी.
गौरतलब है कि बिमलेंदु मंडल उर्फ बिमल को वर्ष 2004 में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा दी गयी थी. उस वक्त बिमल ने बांकुड़ा कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कोलकाता हाई कोर्ट में अपील दायर की थी. इस केस की कभी सुनवाई नहीं हो सकी क्योंकि वह गरीब शख्स खुद को निर्दोष साबित करने के लिए एक वकील कर पाने में भी असमर्थ था.
हालांकि हाइकोर्ट में 13 वर्षों बाद यह केस फिर से खोला गया. बिमलेंदु की अपील पढ़कर जज ने एक वकील से यह आग्रह किया कि वह बिना फीस के इस केस को स्वीकार करें. लोअर कोर्ट द्वारा दिए गये फैसले के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि बिमलेंदु की दो साल पहले मौत हो चुकी है.
सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट के दो न्यायाधीशों मुमताज खान और जय सेनगुप्ता ने लोअर कोर्ट की सुनवाई में खामी की बात को स्वीकार किया है. यही नहीं, सोमवार को बिमलेंदु पर लगे सभी आरोप हटा लिए गये और हाइकोर्ट इस बात से भी बेखबर रहा कि उनकी पहले ही मौत हो चुकी है. अलीपुर सेंट्रल जेल से मिले डेटा के मुताबिक, बिमल को वर्ष 2016 में नैशनल मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था. उसी वर्ष (2016) बिमल ने 29 दिसंबर को आखिरी सांस ली जबकि हाई कोर्ट ने मामले में सुनवाई 13 दिसंबर 2017 को शुरू की.
पत्नी के भाई ने दर्ज कराया था मुकदमा
हाइकोर्ट का आदेश आने के बाद जब बिमल की खोजबीन शुरू की गयी तो पता चला कि उनकी मौत हो चुकी है. पड़ोसी बताते हैं कि पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले में रहनेवाले पति-पत्नी बिमला और अनिमा मोंडाल के बीच अक्सर विवाद होता था. 13 अगस्त 2002 को अनिमा का शव झील से मिला. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, जहर की वजह से उनकी मौत हुई थी.
तीन दिनों बाद अनिमा के भाई शिवेंद्र घोष ने अपनी बहन के पति बिमल पर एफआईआर दर्ज करा दी. इसके बाद 24 सितंबर 2004 को बांकुड़ा कोर्ट ने बिमल को आरोपी बनाते हुए उम्रकैद की सजा सुनायी. बिमल ने हाकोर्ट में गुहार लगायी थी लेकिन उनकी याचिका खारिज कर दी गयी. इसके बाद 13 दिसंबर 2017 को हाइकोर्ट ने केस फिर से खोला.

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