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सिलीगुड़ी : हिम्मत को नौ दिनों की रिमांड

सिलीगुड़ी में महायज्ञ और वेदकथा जारी सिलीगुड़ी : वेदों के महाज्ञाता और प्रखर कथावाचक (सहारनपुर निवासी) आचार्य वीरेंद्र जी इन दिनों सिलीगुड़ी के दौरे पर आये हुए हैं. वह यहां आर्य समाज सिलीगुड़ी इकाई के बैनर तले आयोजित पांच दिवसीय महायज्ञ ‍व वेदकथा धार्मिक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे हैं. स्थानीय गुरुंगबस्ती स्थित आर्य समाज […]

सिलीगुड़ी में महायज्ञ और वेदकथा जारी
सिलीगुड़ी : वेदों के महाज्ञाता और प्रखर कथावाचक (सहारनपुर निवासी) आचार्य वीरेंद्र जी इन दिनों सिलीगुड़ी के दौरे पर आये हुए हैं. वह यहां आर्य समाज सिलीगुड़ी इकाई के बैनर तले आयोजित पांच दिवसीय महायज्ञ ‍व वेदकथा धार्मिक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे हैं.
स्थानीय गुरुंगबस्ती स्थित आर्य समाज मंदिर में इसी कार्यक्रम के दौरान विशेष बातचीत में आचार्यश्री ने आर्य की परिभाषा, उद्देश्य, वैदिक धर्म, वेद-आध्यात्मिक ज्ञान, मोक्ष प्राप्ती आदि पर काफी जानकारी दी.आचार्य श्री का कहना है आर्य का तात्पर्य होता है श्रेष्ठ और अच्छे इंसानों का समाज ही आर्य समाज कहलाता है. जिसका उद्देश्य वेदों का प्रचार-प्रसार, महिला शिक्षा को बढ़ावा, समाज में फैली कुरीतियों व दुराचारों को दूर करना है. साथ ही राष्ट्र का नवनिर्माण करना है.
आचार्यश्री ने कहा कि मांसाहार, शराब आदि जीवन को दूषित करनेवाले अभक्षक खाद्य पदार्थों से मानव जीवन को बचाने और वेदों का व्यापक रुप से प्रचार-प्रसार करने के उद्देश्य से ही 1875 में महर्षि दयानंद सरस्वती ने तत्कालीन बम्बई में आर्य समाज की नींव डाली थी.
आर्य समाज अपने स्थापना काल से ही देश-दुनिया में कन्या शिक्षा के साथ ही गुरुकुल शिक्षा प्रथा को लागू कर रहा है और समाज को संस्कारित करता आ रहा है. आचार्य श्री कहते हैं कि धर्म वैदिक धर्म है और वैदिक धर्म ही सनातन धर्म है, जो वेदों का अनुसरण करता है और वेद का प्रचार-प्रसार करनेवाली संस्था आर्य समाज है.
एक सवाल के जवाब में उन्होंने वेद की परिभाषा को चरितार्थ करते हुए कहा कि वेद ईश्वरीय ज्ञान है, सनातन धर्म का आधार है, पूर्ण है, संसार का पहला ज्ञान है.
इसी वेद ज्ञान को भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण ने अपनाया. इन महापुरुषों का जीवन वेदों के अनुकूल रहा. इसी वजह से उनका जीवन चरित्र और उनके विचार हमारे लिए आदर्श और अनुकरणीय हैं. उन्होंने जीवात्मा की भी परिभाषा देते हुए कहा ‘यह ब्रह्मांड एक विशाल फलदार व छायादार वृक्ष है. इस वृक्ष पर दो तरह के पक्षी रहते हैं.
एक पक्षी भोग करता है तो दूसरा भोग करनेवालों को देखता है. भोग करनेवाला पक्षी ही जीवात्मा यानी इंसान रुपी पक्षी है और दूसरा पक्षी परमात्मा है जो भोग नहीं करता लेकिन इंसान रुपी पक्षी की हर हरकतों पर नजर रखता है.अन्य एक सवाल के जवाब में आचार्य श्री ने कहा कि सत्य का आचरण, नि:स्वार्थ सेवा, सत्संग, सवाध्याय और ईश्वर की उपासना करते हुए इंसान मोक्ष को प्राप्त कर सकता है.
महायज्ञ व वेदकथा कार्यक्रम के चौथे दिन भी कार्यक्रम स्थल गुरुंगबस्ती स्थित आर्य समाज मंदिर के सभाकक्ष में भारी तादाद में अनुयायी उमड़ रहे हैं. कथावाचन के दौरान आचार्य वीरेंद्र जी ने कहा लालच करने यानी अपना मानने में जितना दुख होता है तिरस्कार करने यानी किसी भी चीज को अपना न मानने में उतनी ही सुख की अनुभूति होती है.
जिस दिन इंसान यह मान ले कि इस संसार में जो भी है वह परमात्मा का है, मेरा नहीं है, यह केवल मेरे इस्तेमाल के लिए है लेकिन इस पर कोई अधिकार नहीं है, उसी दिन वह जीवात्मा परम सुख को प्राप्त करेगी. पांच दिवसीय इस कार्यक्रम को सफल बनाने में आयोजक कमेटी के प्रधान राजकुमार शर्मा, संयोजक (वेद सप्ताह) राजेश बिंदल, मंत्री विनोद बंसल समेत सभी अनुयायियों द्वारा कड़ी मेहनत की जा रही है.

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