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बड़े इलाके की आस्था का केंद्र महामाया काली मंदिर

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी शहर के मंदिरों में तीन नंबर वार्ड के गुरुंग बस्ती इलाके में स्थित श्री श्री महामाया काली मंदिर का अपना एक अलग महत्व है. सन 1948-49 में इस मंदिर की स्थापना हुई. तब से लेकर इसकी महिमा बढ़ती ही जा रही है. गुरुंग बस्ती ही नहीं, बल्कि प्रधान नगर, चंपासरी, समर नगर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 27, 2018 1:46 AM

सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी शहर के मंदिरों में तीन नंबर वार्ड के गुरुंग बस्ती इलाके में स्थित श्री श्री महामाया काली मंदिर का अपना एक अलग महत्व है. सन 1948-49 में इस मंदिर की स्थापना हुई. तब से लेकर इसकी महिमा बढ़ती ही जा रही है. गुरुंग बस्ती ही नहीं, बल्कि प्रधान नगर, चंपासरी, समर नगर व दूरदराज से भी भक्त माता के दर्शन को आते हैं.

यह मंदिर बदलते सिलीगुड़ी शहर का भी गवाह है. नित्य पूजा-पाठ के अलावा यहां प्रत्येक अमावस्या को ढाक-ढोल बजाकर विशेष आराधना की जाती है. हर वर्ष कार्तिक अमावस्या पर धूमधाम से वार्षिक पूजा का भी आयोजन किया जाता है. इलाके के लोगों का कहना है कि वे लोग हर शुभ काम से पहले माता का आर्शीवाद लेने आते हैं.
इलाके के एक वरिष्ठ नागरिक राम अवतार झा ने बताया कि आज से 100 वर्ष पहले यह पूरा इलाका राज राजेश्वरी जोत के नाम से प्रसिद्ध था. पहले यहां एक ईंट भट्ठा हुआ करता था. रासमुनी राय के मानस पुत्र बीरेन राय सरकार तथा दिगेन राय सरकार ने 25 कट्टा जमीन मंदिर के लिए दान की थी. 1968 में सरकार द्वारा उसे वेस्ट लैंड घोषित कर दिया गया. लेकिन उससे पहले वर्ष 1948-49 में वहां मंदिर की स्थापना हो गयी थी. श्री झा ने बताया कि पहले काठ का मंदिर हुआ करता था, जिसमें मिट्टी की मूर्ति को रखकर इलाके के लोग पूजा करते थे. वर्ष 2000 में मंदिर कमेटी के गठन के बाद मंदिर का नवनिर्माण कराया गया.
मंदिर के पुजारी मलय चक्रवर्ती ने बताया कि वार्षिक पूजा के दौरान पूरे इलाके को भव्य रूप से सजाकर मेला भी लगाया जाता है. मंदिर में स्थापित मां काली की प्रतिमा को एक ही पत्थर से तराशा गया है और उसे जयपुर से मंगवाया गया है.
मंदिर को संवारने में जुटी है प्रबंध कमेटी
मंदिर की देखरेख के लिए कमेटी के गठन के बाद काठ के इस मंदिर की तस्वीर बदलनी शुरू हुई. कमेटी के सचिव पलाश सिन्हा ने बताया कि इलाके के लोगों तथा कमेटी के सदस्यों के सहयोग से वर्ष 2000 में मंदिर को पक्का किया गया और पत्थर की प्रतिमा स्थापित की गयी. कमेटी के अध्यक्ष संतोष साहा ने बताया कि जिस मंदिर को वह बचपन से देखते आ रहे हैं, उसका अध्यक्ष होने पर उन्हें गर्व है.
मंदिर कमेटी में गोपाल साहा, रामभजन महतो, गणेश त्रिपाठी, मनोहर सिंह, विनय साहा, विनय ठाकुर, रवीन साहा, मंटू साहा भी शमिल हैं. मंदिर में माता के दर्शन करने आये मंदिर कमेटी के सदस्य तथा उसी इलाके के निवासी श्याम सुदंर सिंह तथा काली साहा ने बताया कि वे अपने दिन की शुरुआत करने से पहले माता के दर्शन को आते है.
68 की उम्र में भी रोज मंदिर साफ करती हैं नीता
जिस उम्र में लोगों के लिए चलना-फिरना मुश्किल हो जाता है, उस उम्र में भी नीता बर्मन रोज माता की सेवा करती हैं. वह सुबह सबसे पहले आकर पूरे मंदिर को साफ करके माता का दर्शन करती हैं. वह कहती हैं कि इस मंदिर से उनका वर्षों पुराना रिश्ता रहा है. हर मुसीबत की घड़ी में माता ने उनका साथ निभाया है, इसीलिए वह इस उम्र में भी धूप हो या बरसात नित्य माता के दर्शन को आती हैं और मंदिर की धुलाई करती हैं.

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