आधुनिक चकाचौंध में लुप्त हो रही पतंगबाजी, विश्वकर्मा पूजा से पहले शुरू हो जाता था रंग-बिरंगा पतंग उत्सव

कालियागंज : वैसे 17 सितंबर को पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा धूमधाम से मनाई जाती है. लेकिन बंगाल में विश्वकर्मा पूजा के दिन से रंग-बिरंगे पतंग उड़ाना बच्चों से वयस्क लोगों का शगल था. हालांकि फेसबुक और व्हाट्सएप के प्रचलन के साथ पतंगबाजी का शौक अब अतीत बनता जा रहा है. पहले की तरह ना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 17, 2018 7:04 AM
कालियागंज : वैसे 17 सितंबर को पूरे देश में विश्वकर्मा पूजा धूमधाम से मनाई जाती है. लेकिन बंगाल में विश्वकर्मा पूजा के दिन से रंग-बिरंगे पतंग उड़ाना बच्चों से वयस्क लोगों का शगल था. हालांकि फेसबुक और व्हाट्सएप के प्रचलन के साथ पतंगबाजी का शौक अब अतीत बनता जा रहा है. पहले की तरह ना तो किसी के पास वक्त है और न ही पतंग उड़ाने का पहले जैसा उत्साह.
स्थानीय लोगों का कहना है कि पहले विश्वकर्मा पूजा के दिन से मंजा लगे हुए धागों के सहारे एक दूसरे का पतंग काटना और उन्हें आकाश में उड़ाने की बात अब इतिहास बन गई है. अब लड़के-लड़कियों को पतंग उड़ाते हुए नहीं देखा जाता. जबकि पहले विश्वकर्मा पूजा के बाद से ही आकाश में रंग-बिरंगे पतंग छाये रहते थे. कालियागंज के एक पतंग विक्रेता ने बताया कि अब बच्चों के पास पतंग उड़ाने का समय नहीं है. ये लोग अब रात दिन फेसबुक और व्हाट्सएप में ही व्यस्त रहते हैं. पहले की तरह आज पतंग की बिक्री नहीं है. हालांकि अब भी कुछ लड़के-लड़कियां हैं जो पतंग खरीदने के लिए आ जाते हैं.
अस्थायी रूप से पतंग विक्रेता देवाशीष राय ने बताया कि पढ़ाई का अतिरिक्त दबाव कहें या सोशल मीडिया का असर, अब माता-पिता के अलावा बेटे-बेटियां भी पतंग उड़ाने के लिए मैदानों में नहीं उतरते. जबकि पहले पूरे साल ही पतंग की बिक्री होती. अब केवल विश्वकर्मा पूजा के दिन लोग औपचारिकता निभाते हैं. एक पतंग व्यवसायी अनवर अली ने बताया कि पतंग का कारोबार मंदा पड़ गया है. पहले पूरे साल पतंग की बिक्री होती. जहां पहले पतंग बनाने में 20 से 25 हजार कारीगरी लगे रहते, वहीं अब मुश्किल से चार से पांच हजार कारीगर काम करते हैं.
साल के अधिकतर महीनों में काम नहीं होने से ये कारीगर दूसरे व्यवसायों की तरफ रुख कर रहे हैं. पहले विश्वकर्मा पूजा के अलावा पौष संक्रांति, सरस्वती पूजा और अक्षय तृतीया के दिन बड़ी संख्या में लोग पतंग उड़ाते. हर गली-मोहल्लों के लड़के-लड़कियां विश्वकर्मा पूजा से पहले ही धागे में मंजा लगाने का काम शुरु हो जाता. लेकिन अब वो सारी चीजें अतीत का हिस्सा बन गई है. अब लोगबाग विश्वकर्मा पूजा के पंडालों के दर्शन करने और टीवी के सामने बैठकर आनंद लेने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं.

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