भूकंप-संवेदी क्षेत्र होने से खतरे में हैं बहुमंजिली इमारतें

जलपाईगुड़ी : उत्तर बंगाल और संबंधित हिमालय क्षेत्र भूकंप के मामले में संवेदनशील क्षेत्र होने के चलते यहां भवन निर्माण में विशेष तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए. लेकिन ऐसा पूरी तरह हो नहीं रहा है. नतीजतन पहाड़ समेत उत्तर बंगाल में बहुमंजिला इमारतें खतरे में हैं. रविवार को जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज परिसर में द […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 24, 2018 2:08 AM
जलपाईगुड़ी : उत्तर बंगाल और संबंधित हिमालय क्षेत्र भूकंप के मामले में संवेदनशील क्षेत्र होने के चलते यहां भवन निर्माण में विशेष तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए. लेकिन ऐसा पूरी तरह हो नहीं रहा है. नतीजतन पहाड़ समेत उत्तर बंगाल में बहुमंजिला इमारतें खतरे में हैं. रविवार को जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज परिसर में द इंस्टीच्यूशन ऑफ इंजीनियर्स इंडिया के नॉर्थ बेंगॉल सर्कल की 42वीं आमसभा में उक्त बातें सामने आयीं.
इन विशेषज्ञ वक्ताओं का कहना है कि जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, सिलीगुड़ी, कूचबिहार और अलीपुरद्वार भूकंप-प्रवण शहर हैं. इसलिये इन शहरों में भवन निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल अधिक से अधिक होना चाहिए. तभी बहुमंजिली इमारतें भावी प्राकृतिक आपदा जैसे भूकंप से होने वाले व्यापक धन-जन के नुकसान से बच सकती हैं. आमसभा में करीब एक सौ प्रतिनिधियों की भागीदार रही.
जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज के सिविल विभाग के अध्यक्ष प्रो गौतम वैरागी ने बताया कि यह क्षेत्र भूकंप के मामले में संवेदनशील है. इसलिये यहां फ्लैट, मकान, शॉपिंग मॉल, सरकारी दफ्तर और भवन आदि के निर्माण में भूकंपरोधी अत्याधुनिक तकनीक इस्तेमाल करने की जरूरत है. ऐसा नहीं करने पर भूकंप आने की स्थिति में यहां के लोगों को बड़े पैमाने पर धन-जन की हानि उठानी पड़ सकती है. उदाहरण के तौर पर वर्ष 2013 के 18 सितंबर को उत्तर बंगाल और सिक्किम में आये भूकंप के दौरान भारी तबाही हुई थी.
सबसे अधिक सिक्किम में करीब एक सौ लोगों की मौत हो गयी थी. ऐसा इसलिये हुआ कि भवन निर्माण में भूकंप रोधी तकनीकों का इस्तेमाल नहीं किया गया था. उन्होंने बताया कि बाजार में इस तरह की कई तकनीक और औजार आये हैं. लेकिन उनका उपयोग करने से पूर्व उनकी जांच भी होनी चाहिये.
आईआईटी खड़गपुर के अवकाशप्राप्त इंजीनियर उदय चटर्जी ने बताया कि बाजार में आजकल कई तरह के टीएमटी बार आये हैं. लेकिन हमें इस बात की तस्दीक करनी होगी कि ये बार भूकंप के दबाव को कितनी मात्रा में और किस रूप में झेल सकते हैं. इसके लिए विशेषज्ञों से परामर्श लेना जरूरी है.
जलपाईगुड़ी गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्युत विभाग के अध्यापक गौतम पांडा ने बताया कि विगत 2013 में आये उत्तर बंगाल और सिक्किम में भूकंप के बाद उन्होंने जिला प्रशासन को अत्याधुनिक तनकीकों के उपयोग की सलाह दी थी. एक रिपोर्ट भी तैयार कर जमा दी गयी थी.
उन्होंने कहा कि पहाड़ में भी भूकंप प्रतिरोधी तकनीक का इस्तेमाल या नियमों का अनुपालन नहीं हो रहा है. पहाड़ी ढलान पर बहुमंजिली इमारतों का निर्माण कर पहाड़ पर दबाव बढ़ा दिया गया है. इससे पहाड़ में दरार पड़ने की आशंका रहती है. वे सभी सरकारी या गैरसरकारी संस्थाओं को इस बारे में तकनीकी सलाह देने के लिये तैयार हैं.

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