बसुनियाबाड़ी में राजवंशी कुलवधू रूप में पूजी जाती हैं देवी दुर्गा
मयनागुड़ी : उत्तर बंगाल की सर्वाधिक प्राचीन दुर्गा पूजा में बसुनियाबाड़ी की दुर्गा पूजा का अपना विशिष्ट स्थान है. यहां मां दुर्गा को राजवंशी समुदाय की कुलवधू के रूप में पूजा जाता है. यह दुर्गा पूजा पिछले 207 साल से पारंपरिक रुप से की जा रही है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1810 में आमगुड़ी के […]
मयनागुड़ी : उत्तर बंगाल की सर्वाधिक प्राचीन दुर्गा पूजा में बसुनियाबाड़ी की दुर्गा पूजा का अपना विशिष्ट स्थान है. यहां मां दुर्गा को राजवंशी समुदाय की कुलवधू के रूप में पूजा जाता है. यह दुर्गा पूजा पिछले 207 साल से पारंपरिक रुप से की जा रही है. उल्लेखनीय है कि वर्ष 1810 में आमगुड़ी के निवासी धनवर बसुनिया ने इस दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी.
जानकारी अनुसार धनवर बसुनिया पहले कूचबिहार में निवास करते थे. बाद में कोचबिहार रियासत द्वारा बहिष्कृत किये जाने पर वे आमगुड़ी चले आये. चापगढ़ परगना अंतर्गत आमगुड़ी में भाग्य ने साथ दिया और उन्होंने काफी धन अर्जित किया. इस तरह से धनवर बसुनिया की गिनती धनी किसानों में होने लगी. उसके बाद ही उन्होंने कोचबिहार रियासत की तर्ज पर देवी दुर्गा की आराधना शुरु की. जनश्रुति है कि धनवर बसुनिया ने चूंकि कोचबिहार रियासत की पूजा देख ली थी, इसलिए उन्हें निष्कासन का दंश भोगना पड़ा था.
बसुनिया परिवार की दुर्गा पूजा में आम तौर पर होने वाली चमक-दमक नहीं होती है. यहां की देवी दुर्गा को सामान्य किसान की कुलवधू के रुप में साधारण साड़ी और परिधान में सजाकर पूजा जाता है. यहां तक कि उनके शरीर पर गहने भी नहीं होते हैं. बताते हैं कि यहां दुर्गा पूजा के लिए पुरोहित और ढाकी बुलाने के लिए असम तक न्योता जाता था.
बांग्लादेश के रंगपुर से प्रतिमा मंगवायी जाती थी. बसुनिया परिवार के सदस्य सुनील बसुनिया ने बताया कि उन्होंने बड़े बुजुर्ग से सुना है कि यहां की पूजा देखने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते थे. दुर्गा पूजा के पांच दिन बड़े निष्ठा के साथ पूजा होती थी और मेला भी लगता था. हालांकि अब पहले की तरह भीड़-भाड़ नहीं होती है. इसके बावजूद यहां दुर्गा पूजा परंपरा और रीति-रिवाज को मानते हुए की जाती है.