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मालदा में इस बार दिखेगी अफ्रीकी आदिवासियों की झलक
मालदा : मालदा पश्चिम में स्थित घोड़ापीर सार्वजनीन दुर्गोत्सव पूजा कमेटी का मंडप इस बार अफ्रिका के मसाइमारा आदिवासियों की तर्ज पर सजाया जा रहा है. इस पूजा मंडप में दर्शनार्थियों को अफ्रिका के मसाइमारा की सुगंध मिलेगी. भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए तृतीया से ही पूजा मंडप को दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया […]
मालदा : मालदा पश्चिम में स्थित घोड़ापीर सार्वजनीन दुर्गोत्सव पूजा कमेटी का मंडप इस बार अफ्रिका के मसाइमारा आदिवासियों की तर्ज पर सजाया जा रहा है. इस पूजा मंडप में दर्शनार्थियों को अफ्रिका के मसाइमारा की सुगंध मिलेगी. भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए तृतीया से ही पूजा मंडप को दर्शनार्थियों के लिए खोल दिया जायेगा.
मालदा जिले में इस बार छोटे से बड़े पूजा पंडालों को विभिन्न थीम पर बनाया जा रहा है. इस मामले में घोड़ापीर सार्वजनीन दुर्गापूजा कमेटी काफी आगे है. इस बार का थीम है ‘अरण्य का अधिकार’. घोड़ापीर पूजा कमेटी के सचिव कमल घोष ने बताया कि यह उनलोगों के दुर्गापूजा 21वां वर्ष है.
इसबार चार लाख का बजट रखा गया है. प्रतिमा व मंडप सजावट मालदा के कारीगर विवेक दास ने की है. उनका दावा है कि इसबार दर्शनार्थियों को नया अनुभव कराया जायेगा. पूजा कमेटी के अध्यक्ष सुब्रतो सोम ने बताया कि पूरे विश्व में जिस प्रकार से जंगल को नष्ट किया जा रहा है. वह मानव सभ्यता के लिए खतरे का संकेत है. इस स्थिति में अफ्रीका के मसाइमारा व भारत के कोल-विल-मुंडरई के जंगल में अरण्य को देवता के रूप में पूजा जाता है.
इस बार के पूजा पंडाल में उन आदिवासियों की जीवन शैली को दर्शाने की कोशिश की गयी है.मूर्तिकार विवेक दास ने बताया कि मिट्टी से बनी प्रतिमा को अष्टधातु की मूर्ति की तरह रंगा गया है. मसाइमारा के अदिवासियों की तरह मां दुर्गा के अस्त्र भी भाला ही रखा गया है. प्रतिमा के पीछे चाला में सैंकड़ो भाला से सजाया गया है.
रंग व रौशनी से देवी दुर्गा लाल रंग में रंग जायेगी. मसाइमारा आदिवासियों के घर को जिस प्रकार पेड़ की खाल से बनाते है. वैसे ही नारियल के पेड़ की खाल से पंडाल बनाया जा रहा है. इसमें तार के पत्तों, कृत्तिम हाथी दांत, बाइसन के सिंग के साथ ही चिता, हरिण, बाघ, सिंह मिट्टी से बनाये गये है. पंडाल के प्रवेश पथ पर अफ्रीकन प्रजाति की पक्षी का पर लगा हुआ मुकुट पहना दो मसाई पुरुष की मूर्ति रहेगी.
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